भारत में अनेकों मंदिर और पूजा स्थान है। हर मंदिर किसी न किसी बात के कारण प्रसिद्ध है। ऐसा ही एक मंदिर है जो मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित है। यह एक चौंसठ योगिनी मंदिर है और भारत में ऐसे चार चौंसठ योगिनी मंदिर है। यह मंदिर काफ़ी प्राचीन व प्रमुख है और अभी भी अच्छी दशा में है। इस मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी भी कहा जाता था क्योंकि यहां पर दूर-दराज तथा देश विदेश से लोग तंत्र-मंत्र की विद्या सीखने आते थे। इस मंदिर की यह विशेषता थी कि यहां पर आकर तंत्र विद्या सीखने वाला व्यक्ति बहुत सफलतापूर्वक तांत्रिक विद्या सीख जाया करता था। इस वजह से इस मंदिर की प्रसिद्धि देश के अलावा विदेशों में भी बहुत अधिक थी जिसके कारण तांत्रिक यहां पर आकर विद्या सीखने के लिए विवश हो जाया करते थे।
इस मंदिर के अंदर 64 कमरे हैं और प्रत्येक कमरे में शिवलिंग के साथ देवी योगिनी की मूर्ति भी स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि बाद में इस मंदिर से कुछ मूर्तियां चोरी कर ली गई थी तथा कुछ मूर्तियां अब दिल्ली में स्थित संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई है। इस मंदिर में 64 योगिनी की मूर्तियां थी और इसी कारण इसका नाम चौसठ योगिनी मंदिर पड़ा।
नवी शताब्दी में इस मंदिर में तंत्र-मंत्र की साधना की जाती थी और यहां पर तांत्रिकों को शिव की योगिनियों को जागृत करने की कला सिखाई और समझाई जाती थी। इस मंदिर में स्थापित 64 योगिनियों को काली देवी का अवतार माना जाता है। माता काली ने जब घोर दैत्य के साथ युद्ध किया था तो तब उस समय उन्होंने यह सभी अवतार लिए थे।
ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर आज ही भगवान शिव की तंत्र साधना के कवच द्वारा ढका हुआ है। इसीलिए रात के समय यहां पर किसी भी इंसान को रुकने की बिल्कुल भी अनुमति नहीं दी जाती। यह आदेश केवल इंसानों के लिए ही नहीं है बल्कि रात्रि में यहां पर किसी पक्षी को भी रुकने की आज्ञा नहीं है। इसलिए इस मंदिर में कोई भी व्यक्ति चाहते हुए भी रात के समय बिल्कुल भी नहीं रुक सकता। बता दें कि दिन के समय यहां पर पक्षियों और इंसानों को कितने भी समय तक ठहरने की इजाज़त है।
दिल्ली में मौजूद संसद भवन का डिज़ाइन इस मंदिर से काफ़ी अधिक मिलता है। इस प्राचीन मंदिर का नक्शा बाहर से भी संसद जैसा लगता है और अंदर से भी वैसा ही है। इसके खंबे बिल्कुल संसद भवन जैसे हैं। इस मंदिर में कुल 101 खंबे हैं जिसके ऊपर यह टिका हुआ है। जबकि संसद भवन बनाने वाले वास्तुकारों में से कोई भी कभी भी चौसठ योगिनी के इलाके में नहीं गया था और ना ही ऐसा किसी ने दावा किया है कि इस मंदिर को संसद भवन बनाने वाले वास्तुकारो ने देखा था। इसलिए यह बहुत अजीब बात है कि बिना देखे संसद भवन का नक्शा बिल्कुल 64 योगिनी मंदिर से मेल खाता हुआ है। यह एक रहस्य ही है कि यदि वास्तुकारो ने 64 योगिनी मंदिर नहीं देखा था तो फिर इन दोनों इमारतों में इतनी समानता कैसे हैं।
प्राचीन समय मे एक समय ऐसा था जब चौसठ योगिनी मंदिर में देश-विदेश से तांत्रिकों का जमावड़ा लगा रहता था। यहां पर तांत्रिक इसलिए आते थे ताकि वह तंत्र मंत्र की साधना में सफलता प्राप्त कर सकें। इसीलिए यह मंदिर तंत्र मंत्र तथा साधना सीखने की यूनिवर्सिटी बना हुआ था जिसके कारण लोग यहां पर बड़े पैमाने पर तांत्रिक विद्या हासिल करने के लिए आया करते थे। यह मंदिर यज्ञ साधना तंत्र विद्या आदि के लिए संसार भर में काफी प्रसिद्ध था। आज भी इस मंदिर में कुछ तांत्रिकों द्वारा यज्ञ आदि किये जाते हैं।
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