कोरोना वायरस के कारण इस साल कई लोगों की शादियां टली हैं। अब अगले चार महीनों तक हर तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लगने वाली है। दरअसल भगवान विष्णु 1 जुलाई से चार महीनों के लिए विश्राम करने पाताल लोक चले जाएंगे। प्रभु हरि जब तक शयन अवस्था में रहते हैं उस दौरान किसी भी तरह के मांगलिक कार्यक्रमों का आयोजन नहीं किया जाता है। इसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
साल 2020 में देवशयनी एकादशी 1 जुलाई को है। इस दिन भगवान विष्णु निद्रा अवस्था में चले जाएंगे। देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी, हरिशयनी एकादशी और वंदना एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
एकादशी तिथि का प्रारंभ- जून 30, 2020 को शाम 07:49 पर
एकादशी तिथि का समापन- 1 जुलाई 2020 को शाम 05:29 बजे
पारण का समय- 2 जुलाई 2020 को सुबह 05:27 से 08:14 तक
पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यंत (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को ‘देवशयनी’ तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। यानी कि जब तक भगवान विष्णु निद्रा से नहीं जागते तब तक कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है।
ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी का व्रत विधि पूर्वक करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। मनुष्य के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और आर्थिक समस्याएं भी समाप्त होती हैं। इस व्रत में भगवान विष्णु के साथ पीपल के वृक्ष की पूजा करने से व्रती को विशेष लाभ मिलता है।
एकादशी व्रतों का जिक्र वेद और पुराण में भी मिलता है। एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और हर मनोकामना पूर्ण होती है।
एक जुलाई से चतुर्मास प्रारंभ हो जाएंगे। अर्थात भगवान विष्णु चार माह तक पाताल लोक में निवास करेंगे। इस बीच कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जा जाते हैं। मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु जी के शयन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती हैं। चार माह बाद सूर्य देव जब तुला राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन भगवान विष्णु का शयन समाप्त होता है। इसे देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस दिन से फिर सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ हो जाते हैं।
भगवान विष्णु जब विश्राम के लिए पाताल लोक पहुंच जाते हैं, उसके बाद से ही सभी तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। इस दौरान शादी, विवाह, गृह प्रवेश, नए वाहन या घर की खरीदारी, मुंडन आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इन चार महीनों के दौरान व्यक्ति को भगवान की आराधना में समय बिताना चाहिए।
1 जुलाई के बाद चार मास का समय पूर्ण होने पर सूर्य तुला राशि में प्रवेश करता है और उसी दिन विष्णु जी की शयन अवधि समाप्त होती है। इस विशेष दिन को देव उठानी एकादशी कहा जाता है। इस साल 25 नवंबर को देवोत्थानी एकादशी का मुहूर्त है। इस दिन भगवान विष्णु जी अपनी निद्रा से जागते हैं और एक बार फिर मांगलिक कार्यों का आयोजन शुरू हो जाता है।
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