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केमद्रुम योग शुभ या अशुभ ?

कुछ लोग बहुत परिश्रम करते हैं, फिर भी उन्हे सुख प्राप्ती नही होती। हमेशा के लिये उन्हे गरिबी में ही जीवन बिताना पडता है और बहुत सारे परेशानियों  का सामना करना पडता हैं। ज्योतिष शास्त्र में चंद्र का यह एक ऐसा योग हैं , जिसकी वजह से मनुष्य को जिंदगी भर आर्थिक संकटों से जुझना पडता है। चंद्रमा का यह अशुभ योग हैं, जिसे केमद्रुम योग के नाम से जाना जाता हैं।

केमद्रुम योग कैसे उत्पन्न होता हैं

कुंडली में यदि चंद्र के स्थान से द्वितीय और द्वादश स्थान पर कोई ग्रह न हो तब केमद्रुम योग का जन्म होता हैं। अगर चंद्रमा का किसी भी ग्रह के साथ मिलाव ना हो और चंद्रमा पर किसी  ग्रह की  शुभ दृष्टी  ना हो तो केमद्रुम योग बनता है। इस योग के अंदर छाया ग्रह राहू-केतू की गणना नहीं की जाती।

प्राचीन ग्रंथों में विश्लेषण

जातक पारिजात नाम के ग्रंथ में केमद्रुम योग के बारे में यह श्लोक किया गया है –

योगे केमद्रुमे प्रापो यस्मिन कश्चि जातके। राजयोगा विशशन्ति हरि दृष्टवां यथा द्विषा: ।।

अर्थात्- जन्म के समय यदि किसी कुंडली में केमद्रुम योग हो और उसी कुंडली मैं सैकडों राजयोग हो। तो केमद्रुम योग की वजह से विफल हो जातें हैं।अर्थात केमद्रुम योग अन्य सैकड़ों राजयोगो का प्रभाव नष्ट कर देता है।

इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को पत्नी, पुत्रपौत्रादी,धन धान्यादी,गृह,वाहन,व्यवसाय, माता- पिता आदि सुख नहीं मिल पाते। उस व्यक्ती के जीवन में  सभी सुखों का नाश हो जाता है। और इसीलिये इस योग को दारिद्र्यता दायक योग के नाम से भी जाना जाता हैं।

अगर कोई व्यक्ती किसी धनवान घर का क्यूँ न हो पर उसके कुंडली में अगर केमद्रुम योग बनता हो। तो उसके जीवन में धन का अभाव रहता हैं। उसे धन सुख प्राप्त नहीं होता। केमद्रुम योग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह योग संघर्ष और अभाव ग्रस्त जीवन देता है। इसीलिए ज्योतिष के अनेक विद्वान इसे दुर्भाग्य का सूचक कहते हैं।  परंतु  यह अवधारणा को पूर्णतः सत्य नहीं कह सकते।

केमद्रुम योग के बारे में सकारात्मकता

केमद्रुम योग से युक्त कुंडली होने वाले मनुष्य को कभी कभी व्यवहार में सफलता के साथ- साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं। वस्तुतः अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं ।

पर यदि इसके सकारात्मक पक्ष का विस्तार पूर्वक विवेचन करें तो हमे पता चलता हैं कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में रूपांतरित हो जाता है, इसलिए किसी भी व्यक्ती की कुंडली देखते समय केमद्रुम योग होने पर उस कुंडली के सभी योगो का ध्यान पुर्वक अध्ययन आवश्यक है और उसके बाद  ही फल के बारे में विस्तृत से बताना चाहिए।

यदि कुण्डली में लग्न के केन्द्र में चन्द्रमा या कोई भी ग्रह हो तो यह योग खत्म हो जाता है , और इस योग से उत्पन्न अशुभ फल भी समाप्त होते है । कुण्डली में बन रही कुछ अन्य स्थितियां भी इस योग को भंग करती है, जैसे  चंद्रमा शुभ स्थान में हो या चंद्रमा शुभ ग्रहों से युक्त हो या पूर्ण चंद्रमा लग्न में हो या चंद्रमा दसवें भाव में उच्च का हो या केन्द्र में चंद्रमा पूर्ण बली हो अथवा कुण्डली में सुनफा, अनफा या दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है ।  

यदि चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है।

केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है । शुभ ग्रहों में माने गये बुध्, गुरु और शुक्र  यह ग्रह भी यदि  केंद्रस्थानी हो तो यह योग समाप्त हो सकता है । ऐसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है तथा उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है ।

केमद्रुम योग पर उपाय

जिनके कुंडली में केमद्रुम योग होता हैं उन्हे चांदी का कडा धारण करना चाहिए ।
कहते हैं शिव सभी संकटों से मुक्त करते है । इसलिये भगवान शंकर की पूजा करने से बहुत लाभ मिलता है। साथ ही सोमवार को पूर्णिमा के दिन अथवा सोमवार को चित्रा नक्षत्र के समय से लगातार चार वर्ष तक का व्रत रखें । इससे भी केमद्रुम योग के अशुभ प्रभाव कम होने मदद मिलती है ।

घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित कर नियमित रूप से श्री सूक्त का पाठ करना से भी इस स्थिती में लाभ देता है। भगवान शिव के साथ-साथ माता लक्ष्मी की स्तुति भी विशेष रूप से लाभकारी होती है। लेकिन ऐसा करने में परेशानी यह हो सकती है कि कहीं आप मंत्रोच्चारण सही तरीके से न कर पायें तो, या फिर आपको पूजा की विधि ही ज्ञात न हो इसलिये  ज्योतिषशास्त्र में पारंगत किसी विद्वान ज्योतिषाचार्य की सहायता लें सकते हैं। या फिर देश-भर के जाने-माने ज्योतिषाचार्यों से सवांद करने के लिये आप astrotalk.com की भी मदद ले सकते हैं।

सोमवार के दिन भगवान शिव के मंदिर जाकर शिवलिंग पर गाय का दूध चढ़ाएं और पूजा करें। भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करें। रूद्राक्ष की माला से शिवपंचाक्षरी मंत्र ” ऊँ नम: शिवाय” का जप करें ऐसा करने से इस योग के अशुभ फलों का प्रभाव कम होकर। शुभ फलों में बढोतरी होती हैं।

यह भी पढिये – *चिंता की अग्नी भस्मसात करे, उससे पहले यह जान ले*

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