जगत के पालनहार भगवान विष्णु को संसार की नैया पार लगाने के लिए जाना जाता है। समय-समय पर जब धरती पर अत्याचार और बुराई ने पांव पसारे। तब भगवान विष्णु ने विभिन्न अवतार लेकर धरती से अनेकों बुराईयों का सर्वनाश किया। जिस कारण उनके भक्त उन्हें जगन्नाथ भगवान, सत्यनारायण, वैष्णव, रंगनाथ स्वामी, पदमनाथ स्वामी, श्री हरि और जगत के पालनहार आदि नामों से पुकारते है। एक ओर जहां हम सभी भगवान विष्णु के समस्त अवतारों से भली भांति परिचित है तो वहीं दूसरी ओर खासकर वैशाख, कार्तिक और श्रावणमास में भगवान विष्णु की आराधना बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। साथ ही जगत के पालनहार भगवान विष्णु के मंत्रों की महत्ता शास्त्रों में भी वर्णित है।
मुख्य रूप से गुरुवार यानि बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु की आराधना का दिन माना जाता है। इसी दिन श्री हरि के मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करना विशेष रूप से फलदाई माना जाता है। कहा जाता है जो भक्त नियमित रूप से भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करता है, साथ ही विष्णु भगवान को स्मरण करता है। उसके जीवन के सारे कष्टों का अंत हो जाता है। साथ ही उस मनुष्य के जीवन में सफलता के सारे मार्ग खुल जाया करते है।
गुरुवार के अतिरिक्त प्रत्येक महीने की एकादशी, द्वादशी, पूर्णिमा और चातुर्मास में भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने पर व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और व्यक्ति को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, देवताओं में श्री विष्णु और मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, ठीक उसी प्रकार से सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ है।
शास्त्रों के अनुसार साल में पड़ने वाली 24 एकादशियों पर भगवान विष्णु की पूजा विशेष फल देती है। आज योगिनी एकादशी के दिन श्री हरि की पूजा और मंत्रों का उच्चारण करने से व्यक्ति को अपयश और सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है। कहते है जो व्यक्ति एकादशी के दिन श्री हरि की पूजा अर्चना करता है, उसे सीधे विष्णुलोक में जगह मिलती है।
योगिनी एकादशी का व्रत विधि-विधान से करने पर मनुष्य को जीवन की सारी व्याधियों से छुटकारा मिल जाता है। प्रचलित है कि इस दिन प्राप्त होने वाला व्रत का फल 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान मिलने वाला फल है।
योगिनी एकादशी के संदर्भ में कहा जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कहानी सुनाई। जिसमें एक दिन राजा कुबेर के श्राप से कोढ़ी होकर हेममाली नामक यक्ष मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंचा। जहां ऋषि ने अपने ज्ञान से उसके दुखी होने का कारण जानकर उसको योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। जिस पर यक्ष ने ऋषि की बात मानी और योगिनी एकादशी का व्रत किया। जिसके बाद वह यक्ष दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया।
तभी से योगिनी एकादशी का महत्व और बढ़ गया। साथ ही योगिनी एकादशी के दिन पीपल के पेड़ की पूजा का भी शास्त्रों में जिक्र किया गया है। वहीं इस दिन श्री हरि के मंत्रों का जाप करके विधि विधान से पूजा करने पर इस एकादशी का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
भगवान विष्णु के इन विविध फलदायी मंत्रों का जाप कर मनुष्य अपने जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली पा सकता है।
दन्ताभये चक्र दरो दधानं,
कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया
लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करने से पहले भक्त सूर्योदय में सबसे पहले स्नान करें। तत्पश्चात् श्री हरि की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं। उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति की स्वच्छ जगह पर स्थापना करें। इसके बाद हरि मंत्रों के जाप के साथ धूप या दीपक से भगवान विष्णु की आरती करें। साथ ही भगवान विष्णु को तुलसी की माला, केसर चंदन, फूल और केसरिया या पीले वस्त्र पूजा में चढ़ाए। श्रीहरि मंत्रों के जाप के समय भगवान को गुड़, चने की दाल और दूध से बने पकवान का भोग लगाएं और परिवार के सदस्यों में वितरित कर दें। उसके बाद पीले आसान पर बैठकर हरि मंत्रों का श्रद्धानुसार जाप करें।
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