भारतीय सभ्यता में एक अनोखी बात देखी गयी है, जिस फल, वृक्ष आदि का महत्व जन मानस के लिए अत्यधिक होता है, उसे धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग कर लिया जाता है। ऐसा ही एक फल है नारियल। नारियल सबसे शुद्ध फलों में से एक माना जाता है क्यूँकि इसका खाने योग्य भाग एक सख़्त खोल के भीतर रहता है। नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। नारियल का इतना महत्व क्यूँ है यह जानने के लिए इस फल के औषधीय व आध्यात्मिक गुणों का विचार आवश्यक है।
नारियल में विटामिन, कैल्सीयम, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, और अनेक खनिज तत्वों की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। इस का तेल सर पर लगाने से मस्तिष्क ठंडा रहता है। इसके तेल से त्वचा के दाग धब्बे कम हो जाते है। नारियल से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। रात को नारियल का पानी पीने से अच्छी नींद आती है। पेट के कीड़े भी नारियल के सेवन से मर जाते है। नारियल के तेल में निम्बू का रस मिलाकर लगाने पर रुशी व खुश्की दूर हो जाती है। साथ ही, की गिरी व पानी पाचन तंत्र को आराम देने वाला होता है जिससे पाचन तंत्र सम्बंधित रोगों समाप्त होते है। इसके अलावा, इस के पेड़ का लगभग हर भाग उपयोग में लाया जा सकता है इसलिए इसे कल्पवृक्ष’ भी कहते है।
नारियल के अनेक औषधीय गुण होने के साथ-साथ हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। इसकी दैविक तरंगो को अपनी ओर आकृष्ट करता है, इसलिए इसे सात्विकता प्रदान करने वाला फल माना जाता है। इसके द्वारा अनिष्ट शक्तियों का नशा होता है। यही कारण है कि कोई किसी नवीन कार्य से पूर्व नारियल को फोड़ते है जिससे अमंगल ऊर्जा का नाश होता है। गरी अथवा नारियल में तीन आँखों जैसी आकृति होती है जो त्रिदेव का सूचक मानी जाती है। इसे मनुष्य में त्रीनेत्र के समरूप माना जाता है जिसके प्रभाव से व्यक्ति शुभ-अशुभ में भेद कर पाता है।
मंदिर में चढ़ावे के रूप में भी नारियल अर्पित करते है जो अपने शीश रूपी अहंकार को अर्पण करने के समान माना जाता है। इस के जल को गंगा जल व गौमूत्र के समान पवित्र माना गया है। इस के जल को पूजा उपरांत शुद्धि कारण हेतु गंगा जल कि सम्मान कार्य में लिया जाता है। एक मत यह भी है की नारियल की रचना मनुष्य मस्तिष्क के अनुरूप विश्वामित्र ऋषि द्वारा की गयी। साथ ही, इसका का पानी व गरी प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
नारियल को तोड़कर अपने अहंकार का त्याग करने के सादृश्य माना जाता है। इसलिए किसी नए भवन या नयी वस्तु जैसे कार आदि में पूजन से पूर्व नारियल फ़ोडा जाता है जो यह दर्शाता है कि नहीं वस्तु प्राप्ति पर हम अपने अहंकार को नष्ट करते है। नारियल टूटने के पश्चात कोमल गिरी व पानी को शीतलता ओर विनम्रता के प्रतीक के रूप में ग्रहण करते है। नारियल अर्पित करते समय आँखों वाला भाग देवता की तरफ़ होना चलिए जिससे देवों की शक्ति नारियल में प्रवाहित होकर हमें प्राप्त हो सके।
नारियल को श्रीफल भी कहते क्यूँकि नारियल को लक्ष्मी माता का स्वरूप माना जाता है। पूजा के कलश के ऊपर रखकर या चढ़ावे के रूप में नारियल का प्रयोग किया जाता है। नारियल की पवित्रता के कारण बुरी नज़र उतारने के लिए इसका उपयोग किया जाता है, नारियल में अनिष्ट शक्तियों को समाप्त करने की शक्ति होती है।
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