मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख की अनुभूतियाँ होती है जिसका मुख्य कारण होता है सफलता और असफलता को लेकर हमारा दृष्टिकोण। इस भाव के साथ जुड़ी होती है निराशा और आशा की भावनाएँ। किसी व्यक्ति से आप पूछे कि क्या उसने अपने जीवन में सफलता को प्राप्त कर लिया है या नहीं। तो उसका उत्तर होगा अभी नहीं, अभी तो जीवन मैं यह करना है वह करना है, लक्ष्यों की एक लम्बी लिस्ट सबके पास है। कोई भी स्वयं को सफल नहीं मानता। क् जीवन को हम एक दौड़ के रूप में देखतें है, जिसके हम प्रथम स्थान पर होना चाहते है।
जीवन को सभी दौड़ मानकर चल रहे है यही कारण है की सफलता का भाव बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है। जीवन को एक दौड़ मानने के कारण हमने सफलता का दायरा बहुत संकीर्ण कर लिया है। दौड़ में तो प्रथम स्थान वाला ही सफल माना जाएगा, ओर अन्य असफल। इस असफलता के भाव से जन्म लेती है निराशा, निराशा से जन्म लेती है हीन भावना, और हीन भावना से जन्म होता है अवसाद (डिप्रेशन) का। यहाँ हमें सोच बदलने की आवश्यक है, जीवन एक सुखद यात्रा है जो निरंतर चलती रहती है और कोई चाहे या ना चाहे यह इसी प्रकार निरंतर चलती रहेगी।
हम पाँच तत्वों के बने पुतले मात्र नहीं है हम एक चैतन्य शक्ति हैं जो निरंतर कुछ सीख रही है, हर एक नए पल के साथ। ज़रा सोचिए आप जो आज हैं, ओर आप जो एक वर्ष पहले थे क्या दोनों में अंतर नहीं है। हो सकता है आप किसी प्रतियोगी परीक्षा में सफल ना हो सकें हो, या फिर आपको किसी सम्बंध को निभाने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा हो, या कोई अन्य बात जो आपको असफलता का भान दे रही हो, किंतु यदि आपने सम्पूर्ण शक्ति के साथ अपना प्रयास किया है तो आप किसी भी दशा मैं सफल ही माने जाएँगे।
यदि आपने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न किया है और आप अपने प्रयास से संतुष्ट है तो आप सफल है। यदि आपको लगता है आपके प्रयासों में कुछ कमी थी तो उसपर सकारात्मक विचार कर फिर से जुट जाइए लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास में। आप जितनी मेहनत करेंगे उतने उत्तम बनते जाएँगे और यही सफलता की सच्ची कसौटी है। निराशा का मन में उत्पन्न होना, हीन भावना का मन में घर करने देना, स्वयं का सम्मान ना करना, वास्तव में इसे असफलता कहेंगे। स्वयं को ऐसे ऊर्जा से भर देना चाहिए जैसे आकाश में सूर्य है।
बादलों के कारण छुप जाने से सूर्य का महत्व कम नहीं हो जाता या सूर्य निराश होकर अपना तेज कम नहीं कर लेता। ऐसे ही हमें असफलता, निराशा रूपी बादलों के कारण अपनी ऊर्जा को कम नहीं समझना चाहिए। दो हज़ार के नोट के ऊपर चाहे जितनी भी धूल जमी हो या कितनी भी सिलवटें हों जब तक उसका अस्तित्व है तब तक उसकी क़ीमत दो हज़ार ही रहेगी। हमारे साथ भी ऐसा ही है, हम ऊर्जा के भंडार है। हमें बस करना इतना है की अपनी ऊर्जा को बढ़ाते रहना है ओर सकारात्मक दिशा में बढ़ते जाना है।
अपने भीतर की ऊर्जा का बढ़ाने के कुछ मार्ग यहाँ बताएँ जा रहे है, इनपर कार्य करके आप स्वयं को शक्तिशाली बना सकते है जिससे आपको जीवन में सफलता भी प्राप्त होगी और आपको कभी निराश घेर नहीं पाएगी-
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