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पाटण का सूर्य मंदिर – जानें क्या है इस मंदिर का इतिहास और वर्तमान स्थिति के बारे में

जिस भी व्यक्ति को कला एवं संस्कृति से बेहद प्रेम एवं लगाव है , तथा उसे भारत की सांस्कृतिक विरासत को समझने एवं परखने की कला है उन्हें मोढ़ेरा के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर को एक बार जरूर देखना चाहिए। कला एवं संस्कृति का अद्भुत संगम विरले ही आपको कहीं देखने को प्राप्त होगा।

कहाँ पर स्थित है ?

गुजरात के प्रसिद्ध शहर अहमदाबाद से क़रीब 100 किलोमीटर दूर और पाटण नामक स्थान से 30 किलोमीटर दक्षिण दिशा में पुष्पावती नदी के किनारे बसा एक प्राचीन स्थल है- मोढेरा ।

इसी मोढेरा नामक गाँव में भगवान सूर्य देव का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है, जो गुजरात के प्रमुख ऐतिहासिक व पर्यटक स्थलों के साथ ही गुजरात की प्राचीन गौरवगाथा एवं कला का भी जीता जागता प्रमाण है।

इतिहास मंदिर का –

मोढेरा सूर्य मन्दिर का निर्माण सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ई. में करवाया था । और, अब यह सूर्य मन्दिर अब पुरातत्व विभाग की देख-रेख में आता है।

विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण के संहार के बाद अपने गुरु वशिष्ठ को एक ऐसा स्थान बताने के लिए कहा, जहाँ पर जाकर वह अपनी आत्मा की शुद्धि कर सकें और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पा सकें।

तब गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को ‘धर्मरण्य‘ जाने की सलाह दी थी।

कहा जाता है भगवान राम ने ही धर्मारण्य में आकर एक नगर बसाया जिसे आज मोढेरा के नाम से जाना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने यहाँ एक यज्ञ भी किया था और वर्तमान में यही वह स्थान है, जहाँ पर यह सूर्य मन्दिर स्थापित है।

विशेषता-

  • इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसके निर्माण के दौरान चुने का उपयोग नहीं हुआ है।
  • चालुक्य शैली में निर्मित इस मंदिर को राजा भीमदेव ने दो हिस्सों में बनवाया था।
  • जिसमें से पहला हिस्सा गर्भगृह का और दूसरा सभामंडप का है।
  • मंदिर का गर्भगृह 51 फुट और 9 इंच लम्बा तथा 25 फुट 8 इंच चौड़ा है।
  • इन स्तंभों पर विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों के अलावा रामायण और महाभारत के प्रसंगों को बेहतरीन कारीगरी के साथ मंदिर के दीवालों पर उकेरा गया है।
  • इसके अलावा इसकी खासियत है कि इन स्तंभों को नीचे की ओर देखने पर वह अष्टकोणाकार और ऊपर की ओर देखने से वह गोल नजर आते हैं।
  • इस मंदिर का निर्माण कुछ इस प्रकार किया गया था कि जिसमें सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भगृह को प्रकाशित करे।
  • सभामंडप के आगे एक विशाल कुंड निर्मित है। लोग इसे सूर्यकुंड या रामकुंड के नाम से जानते हैं ।
  • अपनी इन्हीं खूबसूरती के कारण मोढेरा के इस सूर्य मन्दिर को गुजरात का खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस मन्दिर की शिलाओं पर भी खजुराहो जैसी ही नक़्क़ाशीदार अनेक शिल्प कलाएँ मौजूद हैं।
  • इस विश्व प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापत्य कला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पूरे मन्दिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने बिल्कुल भी नहीं हुआ है।

वर्तमान परिस्थिति-

अब यहाँ कोई पूजा-अर्चना नहीं होती क्योंकि, मुस्लिम शासक अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने यहाँ के मंदिर को खंडित कर दिया था । इसके साथ ही भगवान सूर्य देव की स्वर्ण प्रतिमा तथा गर्भगृह के खजाने को भी इस मुस्लिम शासक ने आक्रमण करके लूट लिया था। परन्तु गुजरात के पर्यटन निगम के द्वारा जनवरी के तीसरे सप्ताह में उत्तरायण त्योहार के बाद मंदिर में ‘उत्तरार्ध महोत्सव’ मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष इस समारोह में तीन दिवसीय नृत्य महोत्सव का आयोजन होता है। `

हालांकि आज 1000 साल के बाद भी इस मंदिर में चारों दिशाओं से प्रवेश के लिए अलंकृत तोरण बने हुए हैं एवं, मंडप के बाहरी ओर चारों और 12 आदित्यों, दिक्पालों, देवियों और अप्सराओं की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। मन्दिर के बाहरी ओर चारो तरफ़ दिशाओं के हिसाब से उनके देवताओं की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की गई हैं।

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