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ज्योतिष शास्त्र अनुसार जानें कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति का क्या फल होता है?

कुंडली में राहु और चंद्रमा दोनों ग्रह महत्वपूर्ण होते हैं। इसी तरह राहु और चंद्रमा की युति भी जातक के लिए प्रभावशाली घटना मानी जाती है। राहु और केतु को छाया ग्रहों के रूप में भी जाना जाता है। चंद्रमा कुंडली में महत्वपूर्ण ग्रह होता है। चंद्रमा अपने चक्र में सभी ग्रहों के साथ आवास करता है। चंद्रमा की स्थिति कुंडली में आपकी मानसिक एवं भावनात्मक स्थिति को बताती है। चंद्रमा आपके भावों, संवेदनाओं, भावनाओं और आभासों को दर्शाता हैं।

राहु भी कुंडली में महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। राहु कुंडली में आपके जीवन में आने वाली आकस्मिक घटनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। राहु के गुण आपके स्वभाव को प्रभावित करते हैं और इससे आपकी प्रवृत्ति, समझ और ज्ञान के स्तर का भी पता चलता है।

इन दोनों ग्रहों की स्थिति और दृष्टि कुंडली में देखी जाती है, इससे आपको अपने जीवन में आने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है और आप उनसे बचने के लिए संभवतः उपाय कर सकते हैं।

कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति का महत्व

राहु-चंद्रमा युति का जातक की कुंडली में बहुत महत्व होता है। राहु और चंद्रमा दोनों ग्रह अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। चंद्रमा मनोवृत्ति, भावना, भावों का आधार और राहु भावों का अधिपति होता है, जो कि विचारों को स्पष्ट करता हैं।

अगर जातक की कुंडली में राहु और चंद्रमा की युति होती है, तो इससे जातक की मनोवृत्ति पर असर पड़ता है। इस योग के असामान्य प्रभाव के कारण जातक मनस्ताप की स्थिति में रहते हुए भी अपनी इच्छाओं और विचारों के बारे में सोचता रहता हैं। इसके कारण जातक की मानसिक व्यवस्था धीमी हो जाती है, जिससे वह निरंतर अस्थिर और असंतुलित रहता है।

यही कारण है कि राहु और चंद्रमा की युति के माध्यम से जातक की मानसिक स्थिति और उसके विचारों का पता लगाया जा सकता है। ज्योतिष में, राहु-चंद्रमा की युति को दोष के रूप में देखा जाता है, जिसे कुंडली में अशुभ माना जाता है।

यह भी पढ़ें: जानें कुंंडली में किस योग के बनने से जातक के जीवन में आता है धन

कुंडली में कैसे बनती है राहु और चंद्रमा की युति?

राहु और चंद्रमा की युति की स्थिति कुंडली में महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इस युति के कारण जातक को शुभ और अशुभ प्रभावों का सामना करना पड़ता हैं। यह युति जब होती है, तो इसे ग्रहों के संयोग के रूप में देखा जाता है। इस युति के संयोग से उत्पन्न दोष को कुंडली में कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है। इस योग का प्रभाव कुंडली में बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे निष्ठुरता, संयुक्तियों में समस्या, निराशा और संदेह के रूप में व्यक्त किया जाता है। इस युति से व्यक्ति के जीवन में नकारात्मक बदलाव होते है, जो जातक के जीवन के लिए अच्छे नहीं माने जाते हैं।

यह भी पढ़ें: जानें कुंडली में कौन सा ग्रह बनता है विवाह में देरी का कारण?

राहु और चंद्रमा की युति का कुंडली के सभी भावों पर प्रभाव

प्रथम भाव

पहले भाव में राहु और चंद्रमा की युति व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन पर अधिक प्रभाव डालती है। इस युति के कारण व्यक्ति स्वाधीनता पसंद नहीं करते हैं और अक्सर अपने अनुभवों से दूसरों को सीख देना चाहते हैं। इस भाव में यह युति बचपन के किसी भय को उजागर कर सकती हैं।

द्वितीय भाव

दूसरे भाव में राहु-चंद्रमा की युति व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर अधिक प्रभाव डाल सकती है। यह भाव धन, संपत्ति और आर्थिक स्थिति से संबंधित होता है। राहु और चंद्रमा की युति इस भाव में होती है, तो व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।

तृतीय भाव

तीसरे भाव में यह युति व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक प्रभाव डालती है। यह भाव मनोवैज्ञानिक गुणों, संगीत, कला और उपचार से संबंधित होता हैं। 

चतुर्थ भाव

यह युति चौथे भाव में अधिक प्रभावी होती है। इस भाव में यह युति व्यक्ति के संबंधों और सामाजिक स्थान से जुड़े मुद्दों पर असर डालती है। यह युति व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर असर डाल सकती है, जिससे समाज में जातक की छवि प्रभावित हो सकती हैं।

पंचम भाव

पांचवे भाव में इस युति का प्रभाव जातक की संतान पर होता है। इस युति के कारण जातक की संतान उत्तम विकास और सफलता का अनुभव कर सकती हैं।

छठा भाव

छठे भाव में इस युति का प्रभाव जातक की सेहत और उनकी दैनिक गतिविधियों पर होता है। यह भाव जातक के दैनिक जीवन के व्यवहार, कार्य-क्षेत्र और संबंधों पर असर डालता है।

सातवां भाव

सातवें भाव में इस युति का प्रभाव जातक के भाग्य और उनके अनुभवों पर होता है। 

आठवां भाव

आठवें भाव में राहु-चंद्रमा की युति धार्मिक अथवा आध्यात्मिक गतिविधियों पर प्रभाव डालती है। इस भाव में राहु की स्थिति के कारण धार्मिक अथवा आध्यात्मिक गतिविधियों में रुकावट आ सकती हैं।

नवम भाव

नौवे भाव में राहु-चंद्रमा की युति विदेश जाने के संबंध में प्रभाव डालती है। इस भाव में राहु की स्थिति के कारण विदेश जाने में परेशानियां आ सकती हैं।

दशम भाव

दसवें भाव में इस युति की वजह से जातक को धन से जुड़े मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है। जातक के लिए आर्थिक समस्याओं से बचने के लिए बचत और निवेश के लिए सावधान रहना जरूरी हो सकता है।

ग्यारहवां भाव

ग्यारहवें भाव में राहु-चंद्रमा की युति जातक के सामाजिक जीवन के साथ-साथ करियर और प्रोफेशनल लाभ से जुड़े मुद्दों पर असर डालती है। यह जातक के प्रोफेशनल जीवन में समस्याएं पैदा कर सकती है और उनकी उन्नति को रोक सकती है।

बारहवां भाव

बारहवें भाव में यह युति जातक के लिए स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से संबंधित समस्याएं पैदा कर सकती हैं। जातक को बीमारियों से बचने के लिए अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए।

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इस युति के अशुभ प्रभावों के लिए करें ये अचूक उपाय

राहु और चंद्रमा की युति को दूर करने के लिए कुछ उपाय हैं। ये उपाय व्यक्ति की जन्मकुंडली के अनुसार अलग-अलग होते हैं। कुछ सामान्य उपाय निम्नलिखित हैं:

  • मंत्र जप: राहु-चंद्रमा की युति के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए मंत्र जप किया जा सकता है। “ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः” यह मंत्र जप करने से राहु की दशा में लाभ मिल सकता है।
  • दान: इस युति को दूर करने के लिए दान किया जा सकता है।
  • रत्न धारण: राहु-चंद्रमा की युति को दूर करने के लिए नीलम रत्न धारण किया जा सकता है। इसके अलावा, हीरा, मूंगा, लहसुनिया, अमेथिस्ट, गोमेद आदि रत्नों को भी धारण किया जा सकता है।
  • व्रत: इस युति को दूर करने के लिए अष्टमी व्रत और सावन मास के सोमवार व्रत किए जा सकते हैं।

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