नवरात्रि के नौवें दिन यानी नवमी तिथि पर मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। मां के नाम का अर्थ है सभी प्रकार की सिद्धि और मोक्ष देने वाली देवी। देवी सिद्धिदात्री की पूजा स्वयं देवी, देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, दानव, ऋषि, मुनि, भक्त और गृहस्थ आश्रम में जीवन व्यतीत करने वाले लोग भी करते हैं।
माता के स्वरूप की बात करें, तो मां लक्ष्मी की तरह माता सिद्धिदात्री भी कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और देवी की चार भुजाएं हैं जिसमें उन्होंने शंख, गदा, कमल, और चक्र धारण किया हुआ है। पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव ने कठिन तपस्या करके देवी सिद्धिदात्री से आठ सिद्धियां प्राप्त की थी।
इसके अलावा, माता सिद्धिदात्री की कृपा से ही महादेव का आधा शरीर नर और आधा शरीर नारी का हो पाया था। तब से महादेव का यह स्वरूप अर्धनारीश्वर कहलाया। चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा-अराधना की जाती है और इसी के साथ नवरात्रि का समापन हो जाता है। देवी सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इतना ही नहीं माता की पूजा करने से जातक को सभी रोग, शोक और भय से मुक्ति मिल जाती है।
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नवरात्रि के नौवें दिन महानवमी की पूजा भक्ति- भाव से की जाती है। नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना का विधान होता है। साथ ही इस दिन रामनवमी का उत्सव भी बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। नौवें दिन कन्या पूजन करके नवरात्रि का समापन किया जाता है। साथ ही चैत्र नवरात्रि 2023 पर महानवमी पूजा 30 मार्च 2023, गुरुवार के दिन की जायेगी।
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माता सिद्धिदात्री की कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर हर आम व्यक्ति सारे सुखों का भोग करता हुआ मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। नवदुर्गाओं में देवी सिद्धिदात्री अंतिम यानि नौवीं देवी स्वररूपा मानी जाती है। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। साथ ही माता सिद्धिदात्री की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं पूरी हो जाती है।
देवी सिद्धिदात्री को मां दुर्गा का प्रचंड रूप कहा जाता है। ऐसे में शत्रु विनाश करने की अदमय ऊर्जा माता के अंदर समाहित होती है। कहते हैं जिस किसी भी भक्तों की पूजा से देवी प्रसन्न हो जाती है, तो उस जातक के शत्रु उसके इर्द-गिर्द भी नहीं टिक पाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की कुंडली का छठा और ग्यारहवां भाव देवी सिद्धिदात्री की पूजा से मजबूत होता है। साथ ही माता की पूजा से व्यक्ति के तृतीय भाव में भी शानदार ऊर्जा उत्पन्न होती है। जिन भी जातकों के जीवन में शत्रु भय अधिक बढ़ गया हो या कानूनी मामले ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे हो या अदालत से संबंधित मामलों में जातक को सफलता ना मिल रही हो, तो ऐसे जातकों को देवी सिद्धिदात्री की पूजा करनी चाहिए, इससे जातक को शुभ फल प्राप्त हो सकता है और जातक की सभी परेशानी खत्म हो जाएगी।
माना जाता है कि कन्या पूजन से घर में सुख-समृद्धि आती है और दुख दरिद्रता का नाश होता है। साथ ही माता को प्रसन्न करने के लिए भी कन्या पूजन बेहद ही उपयुक्त साधन बताया गया है। हालांकि, कन्या पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जिन कन्याओं को आपने अपने घर पर निमंत्रण दिया है या जिन्हें भोजन करा रहे हैं उनकी उम्र 2 से 10 वर्षों के बीच होनी चाहिए। मुमकिन हो तो कम से कम 9 कन्याओं को भोजन जरूर कराएं। साथ ही, कन्या पूजन में हमेशा एक बालक को भी शामिल करना चाहिए। माना जाता है कि बालक बटुक भैरव का रूप होते हैं और इनके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
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मंत्रः
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्रः
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
स्तुतिः
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्रः
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
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देवी सिद्धिदात्री से संबंधित पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि, जब पूरे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था तब उस अंधकार में ऊर्जा की एक छोटा-सी किरण प्रकट हुई थी। धीरे-धीरे यह किरण बड़ी होती गई और इसने एक पवित्र दिव्य नारी का रूप धारण कर लिया था। कहा जाता है यही देवी भगवती का नौवां स्वरूप माता सिद्धिदात्री के रूप में परिणित हुआ।
देवी सिद्धिदात्री ने प्रकट होकर त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, और महेश को जन्म दिया। इसके अलावा, ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शंकर को जो आठ सिद्धियां प्राप्त थीं वह भी देवी सिद्धिदात्री की ही कृपा थी। माता सिद्धिदात्री की ही कृपा से शिव जी का आधा शरीर नर और आधा नारी का हुआ, जिससे उनका नाम अर्धनारेश्वर पड़ा।
इसके अलावा, एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि, जब सभी देवी देवता महिषासुर के अत्याचारों से परेशान हो गए थे, तब तीनों देवों ने अपने तेज से देवी सिद्धिदात्री की उत्पति की थी। जिन्होंने कई वर्षों तक महिषासुर से युद्ध किया और अंत में दानव महिषासुर का वध करके तीनों लोकों को उसके अत्याचार से मुक्त किया।
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