“काल” राहु और “सर्प” का केतु प्रभुत्व करते हैं। यथा, किसी भी व्यक्ति के जीवन में काल सर्प दोष तब बनता है जब राहु और केतु सभी ग्रहों पर प्रभाव डाल रहे हों या सरे ग्रह कुंडली में राहु-केतु के बीच में आजायें। शाब्दिक अर्थ में, काल ‘समय’ को संदर्भित करता है, सर्प को ‘सांप’ और ‘दोष’ अथार्थ ‘रोग’। यह एक विपत्तिपूर्ण ज्योतिषीय संभावना है जो कई दुर्भाग्य के साथ इसके जातक को प्रभावित कर सकता है। साथ ही, चूंकि राहु और केतु पिछले जीवन कर्मों को इंगित करते हैं, यह जातक के पिछले जन्मों में उनके द्वारा किए गए बहुत सारे अस्वस्थ बुरे कर्मों का फल भी होता है।
कुंडली में दोष प्रायः पीड़ा और दुःख का करक बनते हैं। कालसर्प दोष ऐसे ही दोषों में से एक है जिसके कारण जातक को लम्बे समय तक अशुभ और कष्टदायक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। काल सर्प दोष का एक प्रमुख प्रभाव यह है कि ऐसी स्थिति में राहु और केतु के अलावा बाकि सात ग्रहों कि शुभ दृष्टि से जातक वंचित हो जाता है। हालाँकि, यह जितना कष्टवर्दक होता है उतना ही फल दायक भी। परन्तु, इसका असर व्यक्ति जीवन में ४२ वर्षों के लिए होता है जो कि एक लम्बी अवधी है।
यथा, कल सर्प दोष का निवारण अत्यंत आवश्यक होता है। काल सर्प दोष निवारण के लिए उपाय कुछ इस प्रकार हैं-
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