ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह सभी नौ ग्रहों में से एक ऐसा ग्रह है जिसका नाम कुंडली में आते ही व्यक्ति के मन में भय और आशंकाओं के बादल मंडराने लगते हैं। ज्योतिष शास्त्र में शनि को अत्यंत शक्तिशाली परंतु पाप ग्रह माना गया है। साथ ही शनि ग्रह के स्वामी शनिदेव को न्याय का देवता भी माना जाता है। अर्थात व्यक्ति के जीवन में इस ग्रह के प्रभावों एवं उनके परिणाम उस व्यक्ति के कर्मों के आधार पर निर्धारित होते हैं। शनि ग्रह के विभिन्न दशाओं के प्रतिकूल प्रभावों को व्यक्ति अपने अच्छे कर्मों द्वारा अनुकूल कर सकता है। आज हम इस लेख में शनि की साढ़ेसाती पर विचार करेंगे।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समस्त नवग्रहों में शनि का स्थान सातवाँ होता है तथा यह ग्रह बारह राशियों में से दो राशियों का स्वामी ग्रह है। ये राशियां हैं मकर एवं कुंभ राशि।
यदि हम शनि के मित्र एवं शत्रु ग्रहों की बात करें तो बुध एवं शुक्र ये दो ऐसे ग्रह हैं जिन्हें शनि का मित्र ग्रह माना जाता है। वहीं दूसरी ओर सूर्य,चंद्र एवं मंगल को शनि का शत्रु ग्रह माना जाता है।
शनि ग्रह की एक और विशेषता है जो इस ग्रह को अन्य सभी ग्रहों से अलग बनाती है, वह है इसकी मंद गतिशीलता। दरअसल शनि ग्रह किसी भी राशि में अत्यंत धीमी गति से गोचर करने वाला ग्रह है।
इस ग्रह का प्रत्येक राशि में गोचर की समयावधि ढाई वर्षो तक का होती है। इसका अर्थ है शनि प्रत्येक राशि में ढाई वर्षों तक विराजमान रहता है।
न्याय के देवता शनि की विभिन्न दशाओं को उसके प्रत्येक राशि में गोचर करने की समयावधि के अनुसार नाम दिया गया है, जैसे शनि की ढैय्या ( ढाई वर्षों तक ),शनि की साढ़ेसाती ( साढ़े सात वर्षों तक ),शनि की महादशा ( उन्नीस वर्षों तक ) आदि।
आज हम इन्ही दशाओं में से एक शनि की साढ़ेसाती के प्रभावों एवं उनके उपायों के विषय में जानेंगे।
शनि की साढ़ेसाती एक ऐसी दशा है जिसकी समयावधि साढ़े सात वर्षों तक की होती है और इसी कारण इस दशा को साढ़ेसाती के नाम से जाना जाता है।
चूंकि शनि एक अत्यंत मंद गति से गोचर करने वाला ग्रह है अतः यह ग्रह ढाई वर्षों तक एक ही राशि में गतिशील रहता है। इसके बाद यह दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
शनि एक बेहद शक्तिशाली ग्रह है, अतः इसकी प्रभावशीलता इसकी वर्तमान राशि के साथ-साथ अगली और पिछली राशियों पर भी होती है।
इस प्रकार ढाई -ढाई वर्षो तक के तीन राशियों में इसके गोचर की कुल अवधि साढ़े सात वर्षों की होती है। इसे ही हम शनि की साढ़ेसाती की दशा कहते हैं।
सामान्यतः लोगों में यह धारणा आम होती है कि शनि के साढ़ेसाती का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर सदैव नकारात्मक ही होता है,परंतु यह सत्य नहीं है। विभिन्न ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव सकारात्मक भी होता है।
आइए जानते हैं क्या हैं शनि की साढ़ेसाती के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव जो किसी व्यक्ति के जीवन पर उस समय अपना असर दिखाते हैं जब उसकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती की दशा चलती है।
जब किसी व्यक्ति के कुंडली में शनि की साढ़ेसाती का समयकाल प्रारंभ होता है तो उसे अपने व्यक्तिगत जीवन, रोज़गार, व्यपार आदि में विभिन्न प्रकार की विध्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
परंतु कई लोगों के जीवन में शनि की साढ़ेसाती के सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। कई लोगों के जीवन में साढ़ेसाती का काल लाभ,वैभव,सम्मान आदि लेकर आता है। अतः शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव सकारात्मक अथवा नकारात्मक कुछ भी हो सकता है।
किसी व्यक्ति के जीवन में शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव कैसा रहेगा यह उस व्यक्ति के कुंडली में अन्य ग्रहों की दिशा एवं दशा पर निर्भर करता है। इसके अलावा व्यक्ति के अच्छे बुरे कर्मों का प्रभाव भी शनि की दशा को प्रभावित करते हैं।
साढ़ेसाती के नकारात्मक प्रभावों को कम करने अथवा दूर करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ महत्वपूर्ण उपाय भी बताएं गए हैं।
इन उपायों के द्वारा हम शनि की साढ़ेसाती की प्रतिकूल दशाओं को अनुकूल बना सकते हैं। चलिए जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण उपायों को जिन्हें कर के आप भी इनका लाभ उठा सकते हैं :
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