भारतीय संस्कृति में व्रत और त्यौहारों का एक अलग ही रंग और संबंध देखने को मिलता है. इस श्रेणी में आश्विन मास में आने वाली शरद पूर्णिमा का मुख्य स्थान है. शरद पूर्णिमा केवल एक त्यौहार तक ही सीमित नही है अपितु यह हमारे जीवन के सभी पहलूओं पर असर डालने वाली होता है. पूर्णिमा तिथि एक ऎसा समय होता है जब हमारे और प्रकृति के भीतर मौजूद संरचना में एक बदलाव दिखाई देता है. इस समय पर हम सभी मे मौजूद कुछ गुण अलग ढ़ंग से विस्तार को पाते हैं जो नए बदलाव का अर्थ दर्शाते हैं.
यह पर्व संपूर्ण भारत में उत्साह और भक्ति के साथ मनाए जाने की परंपरा प्राचीन समय से ही चली आ रही है. भारत के विभिन्न प्रांतों में इस पूर्णिमा का रंग अलग-अलग रुप में दिखाई देता है. उत्तर भारत से दक्षिण भारत ओर पूर्व भारत से पश्चिम तक के स्थानों पर इस पूर्णिमा की अपनी मनयताएं ओर आधार हैं, पर इन सभी के मध्य एक बात विशेष रुप से उल्लेखनीय है कि यह समय सभी को नवीनता और चेतना का नया आयाम देने वाला होता है.
इस पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा, रास पूर्णिमा, कोजागर पूर्णिमा, अमृत पूर्णिमा, आरोग्य पूर्णिमा, कौमुदि पूर्णिमा इत्यादि नामों से भी जाना जाता है.
निर्णय सिंधु के अनुसार शरद पूर्णिमा का व्रत प्रदोष और निशिथ काल व्यापिनी पूर्णिमा के दिन ही किया जाने का विधान बताया गया है. शरद पूर्णिमा के व्रत के दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. इस दिन व्रत का नियम धारण करने वाले भक्त को जीवन में आर्थिक और शारीरिक रुप से लाभ की प्राप्ति होती है. इस पूर्णिमा के दिन प्राचीन एवं मान्यताओं के अनुसार रात्रि जागरण करते हुए भगवान श्री विष्णु ओर देवी लक्ष्मी जी का पूजन करना चाहिए.
देशभर के प्रत्येक स्थानों पर इस विशेष शरद पूर्णिमा के दिन विभिन्न प्रकार के आयोजन किए जाते हैं. यह रात्रि एक अत्यंत ही अलौकिक रात्रि समय है. ऎसे में इस रात्रि के समय पर शुभता का वास अधिक होता है. दीप ओर प्रकाश के द्वारा इस दिन रात्रि का अंधकार चंद्रमा की रोशनी के साथ मिलकर समाप्त हो जाता है. इस जगमगाती रात्रि के समय पर ही देवता भी पृथ्वी पर वास करने की कामना रखते हैं. मान्यताओं और किवदंतियों के आधार पर यह विशेष रात्रि का सुख देवों के लिए भी दुलर्भ बताया गया है. इसी अमृत की प्राप्ति के लिए देव, गंधर्व सभी पृथ्वी पर आते हैं.
इस पूर्णिमा के दिन पर चंद्रमा की उज्जवलता में अमृत का वास माना गया है. इस शुभ तिथि अवसर पर जहां चंद्रमा अपने चरम सौंदर्य को पाता है वहीं पृथ्वी को इस दिन अमृत वर्ष की प्राप्ति होती है. चंद्रमा की उज्जवल रोशनी के कण-कण में अमृत का वास होता है. ऎसे में चारों ओर प्रेम व सौंदर्य के दर्शन होते है. यह समय जीवन में नवीन सुख का आगमन दर्शाता है. जीवन को आरोग्य देता है. इच्छाओं को अमृत से सींचता है.
परंपराओं ओर आधुनिकता का संगम बनी यह पूर्णिमा उस तर्क के साथ विश्वसनीयता को भी दर्शाता ये पर्व सभी के प्रश्नों पर खरा उतरता है. यह केवल धार्मिक विश्वास ही नही है अपितु खगोल शास्त्र से संबंधित उन गणनाओं का योग भी है जो दर्शाता है की क्यों ये पूर्णिमा इतनी विशेष बन जाती है.
हिन्दू ज्योतिष शास्त्र गणना के कथन में आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन चंद्रमा आरोग्य प्रदान करता है. इस दिन चंद्रमा का स्वरुप और उसमें से निकलनी वाली किरणें इतनी अधिक प्रभावशाली होती है की इनके द्वारा मानसिक और शारीरिक रुप से सभी प्राणियों पर असर देखने को मिलता है. इस दिन की संपूर्ण रात्रि में चंद्रमा द्वारा व्याप्त रोशिनी से अमृत बरसता है.
चंद्रमा की रोशनी में इस दिन अगर कुछ समय के लिए बैठा जाए, तो आध्यतमिक चेतना गुढ़ता को प्राप्त करती है. रोगों से बचाव होता है इसलिए आज भी लोग इस दिन दूध से बनी खीर को चंद्रमा की रोशनी में कुछ समय रखते हैं और उसके बाद उसका सेवन करते हैं इसके द्वारा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है.
श्री भागवत अनुसार इस दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था. यह प्रेम की परकाष्ठा को दर्शाता है. ऎसा प्रेम जो निश्छ्चल स्वरुप से सभी प्राणियों के हृदय में वास करता है. मथुरा और वृंदावन के क्षेत्रों में इस खास अवसर पर लीलाओं का आयोजन होता है.
शरद पूर्णिमा से संबंधित अनेकों कथाएं ओर कहानियां भारतीय जीवन दर्शन में उपलब्ध होती हैं. शरद पूर्णिमा के दिन व्रत धारण करने वाले भक्त के लिए इस कथा का श्रवण एवं पठन अत्यंत शुभफलदायी माना गया है. व्रत हों या फिर उपासक हों सभी इस कथा का पाठ करके अपने जीवन में शुभ गुणों का मार्ग प्रश्स्त कर सकते हैं शरद पूर्णिमा की कथा का आरंभ इस प्रकार होता है- एक नगर हुआ करता था जिसमें एक साहुकार अपने परिवार के साथ सुख पुर्वक रहा करता था. साहुकार के दो कन्याएं थी. साहुकार की छोटी बेटी हर काम लापरवाही से करती थी लेकिन बड़ी बेटी बहुत सजगता से करती थी. बड़ी लड़की धार्मिक कार्यों में भी निपुण थी किंतु छोटी कोई भी पूजा पाठ व्रत इत्यादि कार्य सफलता से नहीं कर पाती थी.
कुछ समय बीतने के पश्चात साहुकार ने अपनी कन्याओं का विवाह सुंदर व योग्य लड़कों के साथ संपन्न किया. दोनों ही कन्याएं सुख पुर्वक जीवन व्यतीत कर रही होती हैं लेकिन छोटी बेटी को एक कष्ट था उसे जो संतान होती वह मृत्यु को प्राप्त हो जाती थी. जब छोटी ने साधु ब्राह्मणों से अपने दुख का कारण जानना चाहा तो उन्होंने उसे बताया की तुम ने जब भी पूर्णिमा के दिन व्रत किया वह अधूरा ही किया इस कारण तुम्हें संतान कष्ट हो रहा है.
इस बात को जानकर छोटी ने इस भूल की क्षमा मांगते हुए उपाय जानना चाहा. तब उन साधु ब्राह्मणों ने उसे बताया की आने वाली शरद पूर्णिमा के दिन यदि वह अपने व्रत का संकल्प पूर्ण कर पाएगी तो उसे संतान का सुख अवश्य प्राप्त हो सकता है. छोटी ने वैसा ही किया और शरद पूर्णिमा का व्रत विधि विधन के साथ संपूर्ण किया. व्रत के शुभ फल से उसे संतान का सुख प्राप्त होता है. तब से छोटी, अपनी बड़ी बहन की ही तरह पूर्णिमा के व्रतों को पूरे विधान के साथ करने का संकल्प लेती है. शरद पूर्णिमा का व्रत सभी के जीवन में सुख और समृद्धि को प्रदान करने वाला व्रत है. “ नमो नारायण” .
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