माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। हालांकि उनके जन्म के संबंध में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन पौराणिक मान्यताओं की मानें तो वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के पुत्र के रूप में हुआ था। वरुण, महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र थे। महर्षि वाल्मीकि के बड़े भाई भृगु ऋषि थे। इस साल 2022 में वाल्मीकि जयंती 9 अक्टूबर को है। इस लेख में ऋषि वाल्मीकि के बारे में कुछ अहम बातें जानेंगे।
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महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसलिए पंचांग के अनुसार वाल्मीकि जयंती हर साल पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। महाकाव्य में वाल्मीकि ने संस्कृत में 24,000 श्लोक, 7 सर्ग और अनेक श्लोक लिखे हैं। महर्षि वाल्मीकि की जयंती के दिन लोग महर्षि वाल्मीकि के सम्मान में एक जुलूस निकालते हैं और इस दिन को मनाते हुए भक्ति गीत और भजन गाते हैं।
वाल्मीकि जयंती हिंदू धर्म में बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है। वाल्मीकि, प्रचेता ब्राह्मण के पुत्र थे। वरुण का ही एक नाम प्रचेता है। ऐसा माना जाता है कि वाल्मीकि पहले एक डाकू थे जिन्हें रत्नाकर के नाम से जाना जाता था। वह लोगों को मार पीट करके लूटा करते थे, लेकिन एक दिन उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई, जिसके बाद से उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया और महर्षि वाल्मीकि भगवान राम के बहुत बड़े भक्त बन गए। इसलिए इस पर्व पर जीवन के परिवर्तन की कहानी सुनाई जाती है।
जिससे मनुष्य बुरे कर्मों को छोड़कर अच्छे कर्म कर भक्ति के मार्ग पर चले। वैसे तो इस दिन को महा ऋषि वाल्मीकि जी की याद में मनाया जाता है, लेकिन उन्होंने रामायण लिखी थी जो उनके अस्तित्व को एक नई पराकाष्ठा प्रदान करता है। इसी कारण इस दिन सभी को अपने जीवन में कुछ ना कुछ अच्छा करने का प्रण लेना चाहिए और हमेशा सच्चाई और धर्म के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होना चाहिए।
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लोग इस दिन प्रसिद्ध संत और कवि वाल्मीकि जयंती को पूरे मन से याद करते हैं। विभिन्न कस्बों और गांवों में वाल्मीकि के चित्र को लेकर ढेर सारे जुलूस निकाले जाते हैं। इस दिन हिंदू भक्त उनकी जमकर पूजा करते हैं। कई जगहों पर उनके चित्र की पूजा की जाती है।
इस दिन, भारत के अधिकतर भगवान राम के मंदिरों में रामायण का पाठ किया जाता है। भारत में महर्षि वाल्मीकि को समर्पित कई मंदिर हैं। वाल्मीकि जयंती के अवसर पर इन मंदिरों को फूलों से भव्य रूप से सजाया जाता है। ढेर सारी अगरबत्ती जलाई जाती हैं, जिससे एक शुद्ध और आनंदमय वातावरण बनता है। इन मंदिरों में कीर्तन और भजन कार्यक्रम होते हैं। इस दिन, अनेक भक्त भगवान राम के मंदिरों में जाते हैं और महर्षि वाल्मीकि की याद में रामायण के कुछ छंदों का पाठ करते हैं।
वाल्मीकि जयंती पर गरीबों और जरूरतमंदों को मुफ्त भोजन बांटा जाता है। इस दिन दान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। साथ ही क्षेत्र के कई हिस्सों में हनुमान पूजा भी की जाती है। आप भी अपने घर में आराम से सुंदरकांड के पाठ के साथ हनुमान पूजा कर सकते हैं। अपने से छोटे बच्चों को सही मार्ग पर चलने की सीख दे सकते हैं और बड़ो से मंगल शुभकामनाएं ले सकते हैं।
महर्षि वाल्मीकि जयंती पर भारत में सार्वजनिक अवकाश नहीं बल्कि वैकल्पिक अवकाश होता है। इसलिए, नियोक्ता इस दिन को एक वैकल्पिक अवकाश के रूप में मानते हैं और इस दिन पूर्णकालिक कार्यसूची बनाए रखते हैं। इस दिन स्कूल, विश्वविद्यालय, शैक्षणिक संस्थान, कॉलेज और अन्य संगठन पूरी तरह कार्यात्मक रहते हैं। अधिकांश व्यवसाय चालू रहते हैं, लेकिन कर्मचारियों के पास अपनी मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार आधे या पूरे दिन की छुट्टी लेने की छूट होती है।
परिवहन सेवाएं भी उसी दिनचर्या के अनुसार चलती हैं और इस दिन सड़कों पर काफी भीड़ भी होती है। साथ ही शॉपिंग मॉल और खुदरा दुकानें भी खुली रहती हैं। इस दिन को भारत वासियों द्वारा खूब धूमधाम से मनाया जाता है, खासकर इस दिन को हिंदू धर्म के विशेष पूजा करते हुए दिन को मनाते हैं क्योंकि दिन की शुरुआत से ही भक्तों का मंदिर में भजन कीर्तन शुरू हो जाता है और साथ ही सड़कों पर अलग-अलग तरह के पोस्टर और बैनर लेकर वाल्मीकि जयंती की धूम को उजागर करते हैं।
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महर्षि वाल्मीकि जयंती का इतिहास धार्मिक रूप से बहुत महत्व रखता है और इसका अलग प्रतीक है। महर्षि वाल्मीकि या आदि कवि के रूप में लोकप्रिय ऋषि वाल्मीकि, महाकाव्य रामायण के प्रसिद्ध लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उनके जन्म के दिन को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है और बहुत सम्मान और उत्सुकता के साथ मनाया जाता है। ऋषि होने से पहले, वो एक डकैत थे, लेकिन वाल्मीकि नाम प्राप्त करने के बाद वर्षों तक अपने पापों के लिए पश्चाताप करते रहे। उनका नाम ॠषि वाल्मीकि कैसे पड़ा, इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है।
ऐसा कहा जाता है कि जब वो ध्यान कर रहे थे, तो उनका शरीर इतना स्थिर हो गया कि उनके चारों ओर चींटियों की पहाड़ियां बन गईं। अपने ध्यान और पश्चाताप के बाद उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। उन्हें वाल्मीकि या वाल्मीकि संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा एक ईश्वरीय अवतार के रूप में अत्यधिक सम्मानित किया जाता है। पारंपरिक भारतीय कविता में, “महाकाव्य मीटर” महर्षि वाल्मीकि को अत्यधिक मान्यता प्राप्त है, क्योंकि उन्होंने छंद लिखना शुरू किया था, यह सुझाव देते हुए कि छंद सार्वजनिक गायन के लिए थे।
पौराणिक कथाओं में वाल्मीकि जयंती का अवसर महान ऋषि और कवि महर्षि वाल्मीकि के जन्म की याद दिलाता है, जिन्हें आदि कवि के नाम से जाना जाता है। वो महत्वपूर्ण धार्मिक महाकाव्य रामायण के निर्माण के साथ जुड़े थे, जो भगवान विष्णु के दिव्य अवतारों में से एक माना जाता है, भगवान राम के जन्म, कर्म और दानव-राजा रावण पर उनकी जीत का महिमामंडन किया गया है।
इसी के साथ महर्षि वाल्मीकि को स्वयं भगवान का अवतार माना जाता है और उनके अनुयायी खुले दिल से इनकी पूजा करते हैं। उन्हें आमतौर पर भगवा रंग के कपड़े पहने और हाथों में एक कलम और कागज पकड़े हुए दिखाया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उनका जन्म रत्नाकर के रूप में हुआ था और उन्हें एक क्रूर डाकू के रूप में भी जाना जाने लगा था, क्योंकि वो एक गांव से दूसरे गांव जाने वाले लोगों को लूटते थे और अपने उग्र कृत्यों के लिए जाने जाते थे। हालांकि, एक बार नारद मुनि ने उन्हें तपस्या और पश्चाताप का मार्ग दिखाया। सही मार्ग पर चलने और असंख्य दिनों तक तपस्या करने के बाद, उनके कार्यों को सही दिशा और अंजाम मिला।
उसी दिन से वे वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए। महाकाव्य रामायण में ही महर्षि वाल्मीकि की उपस्थिति का उल्लेख किया गया है। एक गलतफहमी के कारण भगवान राम द्वारा मां सीता को महल से और राज्य से निकालने के बाद, महर्षि ने उन्हें अपने में रहने का विकल्प दिया और उनकी देखभाल भी की। उन्होंने अपने साथ-साथ मां सीता और भगवान राम के बच्चों का भी पालन-पोषण किया और उन्हें जीवन की प्रकृति को समझने में मदद की।
पंचांग के अनुसार वाल्मीकि जयंती आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस वर्ष महर्षि वाल्मीकि की जयंती 9 अक्टूबर 2022 को मनाई जाएगी।
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महर्षि वाल्मीकि जयंती को परगट दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
वाल्मीकि डकैत थे। वह एक गांव से दूसरे गांव की यात्रा करने वाले लोगों को लूटते थे।
ऋषि वाल्मीकि का जन्म रत्नाकर के रूप में हुआ था।
वहीं वाल्मीकि जयंती मनाने के पीछे अनेक कारण है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण यही है कि इस दिन वाल्मीकि जी को याद करने और उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों को प्रचलित करने के लिए लोगों द्वारा खूब धूमधाम से मनाया जाता है।
इसी के साथ वाल्मीकि जयंती को अनेक लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। कोई इस दिन राम मंदिर में जाकर भजन कीर्तन करता है, तो कोई सड़कों पर वाल्मीकि जी का पोस्टर हाथ में लेकर जुलूस निकालता है। इसी तरह से सभी लोग इस दिन को काफी धूमधाम से मनाते हैं और इस दिन को अत्यधिक यादगार बनाने की कोशिश करते हैं।
एक दिन संयोगवश नारद मुनि जंगल के उसी रास्ते गुजर रहे थे, जहां रत्नाकर रहा करते थे। उस समय रत्नाकर डाकू थे। रत्नाकर ने नारद मुनि को लूटने के उद्देश्य से पकड़ लिया। लेकिन नारद मूनि ने उन्हें कुछ ऐसे ज्ञानवर्धक बातें बताईं, जिससे रत्नाकर पूरी तरह बदल गए। तभी से उनके जीवन में ऐसा बदलाव आया कि वह डाकू से महर्षि बन गए।
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