ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जानें कुंडली में कब बनते हैं दो विवाह योग?
हिंदू धर्म में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है, क्योंकि विवाह के माध्यम से दो लोग एक नए बंधन में बंधते है। लेकिन कई बार कुछ कारणों से जातक का दूसरा विवाह हो जाता हैं। बता दें कि दूसरे विवाह के लिए जातक की कुंडली में बने योग काफी महत्वपूर्ण माने जाते है, क्योंकि इन योगों के कारण जातक का दूसरा विवाह हो सकता है। साथ ही यह योग ज्योतिष में दो विवाह योग के रूप में जाना जाता है। इसके कारण महिला या पुरुष की दूसरी शादी होती है। ज्योतिष में इसे एक अशुभ योग माना जाता है, क्योंकि किसी रिश्तों को खत्म करके दूसरा रिश्ता बनना व्यक्ति के लिए थोड़ा मुश्किल होता हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह योग जातक की कुंडली में ग्रह और भावों की स्थिती के कारण बनता है, जिससे जातक को दूसरा विवाह करना पड़ता हैं। चलिए इस लेख में जानें कि जातक की कुंडली में कब और कैसे यह योग बनता है और विवाह से संबंधित उपाय क्या हैं।
विवाह में जन्म कुंडली का महत्व
जन्म कुंडली विवाह में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि जन्म कुंडली शादी के समय दो लोगों की गुणवत्ता, संगतता उनके जीवनसाथी के साथ भविष्य में सम्भावित समस्याओं के बारे में विवरण प्रदान करती है। व्यक्ति की जन्म कुंडली में उनके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के लिए योग और दोषों का विवरण होता है।
इसके अलावा, जन्म कुंडली में नक्षत्र, ग्रहों, दशाओं, योगों और दोषों के आधार पर विवाह के समय सावधानी बरतनी चाहिए। अगर कुंडली में कोई दोष हो, तो उससे बचने के लिए जातक को ज्योतिषी की सलाह अनुसार उपाय जरूर करने चाहिए।
जातक की कुंडली के आधार पर विवाह में दो लोगों की गुणवत्ता, संगतता, प्रेम और सम्बन्धों में ताकत की समीक्षा की जाती है। जन्म कुंडली व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में भी बताती है, जो जातक के जीवनसाथी के साथ जुड़े विभिन्न मामलों में उपयोगी हो सकता है।
इसके अलावा, जन्म कुंडली के माध्यम से ज्योतिषी विवाह के लिए सम्भावित दोषों का पता लगा सकते हैं और विवाह की सफलता के लिए उपाय बता सकते हैं। कुंडली में नक्षत्र, ग्रह और भावों के स्थान आदि के आधार पर विवाह में समस्याएं आ सकती हैं जैसे कि दो विवाह योग, मांगलिक दोष, गुण मिलान में कमी, भावों की दृष्टि आदि। ज्योतिषी उपाय के माध्यम से इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है और विवाह को सफल बनाने में मदद की जा सकती है।
दो विवाह की भविष्यवाणी के लिए कुछ ग्रहों का महत्व अधिक होता है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण ग्रह हैं:
शनि ग्रह – शनि का महत्व दूसरे विवाह के लिए अधिक होता है। अगर शनि की स्थिति बेहतर होती है, तो जातक की कुंडली में दो विवाह का योग नहीं बनता।
राहु ग्रह – राहु भी दो विवाह के लिए महत्वपूर्ण ग्रह है। राहु की स्थिति अधिक खराब होने से दो विवाह का योग बनता है।
केतु ग्रह – केतु ग्रह दो विवाह के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर केतु की स्थिति शुभ होती है, तो दो विवाह के योग नहीं बनते हैं।
बुध ग्रह – बुध दो शादी के लिए महत्वपूर्ण ग्रह है। बुध की स्थिति अधिक खराब होने से दो विवाह का योग बनता है।
गुरु ग्रह – गुरु की स्थिति दो विवाह पर प्रभाव डालती है। गुरु की स्थिति अधिक शुभ होने से दो विवाह का योग कम प्रभावशाली होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दो विवाह के लिए चन्द्रमा, शुक्र और गुरु ग्रह बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। चन्द्रमा दो विवाह के संबंध में महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह निर्धारित करता है कि किस अवसर पर विवाह होगा। शुक्र ग्रह आकर्षक, सौंदर्य और भोग के लिए जाना जाता है और इसलिए दो विवाह के लिए अहम होता है। गुरु ग्रह भाग्य और धर्म के लिए जाना जाता है और इसलिए दो विवाह के लिए भी महत्वपूर्ण होता है।
इन ग्रहों के संयोग से विवाह योग बनता है, जो दो विवाह के लिए अनुकूल होता है। यदि इन ग्रहों में कोई दोष होता है, तो उसे दूर करने के लिए उपाय किए जा सकते हैं, जो दो विवाह को रोक सकते हैं और विवाह के लिए सुखद रिश्ते बनाने में मदद कर सकते हैं।
दो विवाह योग के लिए कौन से भाव जिम्मेदार होते हैं?
द्वादश भाव – द्वादश भाव दो विवाह योग के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस भाव का संबंध भविष्य में क्षति या हानि से होता है। लेकिन यह भाव विवाह से भी जुड़ा होता है। यदि कुंडली में द्वादश भाव में स्थित ग्रह या बुध, शुक्र या गुरु होते हैं, तो इससे जातक के दो विवाह संभव होते है।
सप्तम भाव – सप्तम भाव विवाह के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह भाव प्रेम और विवाह का अधिकारी है। जब सप्तम भाव में कोई ग्रह या शुक्र, गुरु, बुध, सूर्य या चन्द्रमा होते हैं, तो दो विवाह संभव होते हैं।
द्वितीय भाव – द्वितीय भाव में स्थित ग्रह विवाह के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस भाव का संबंध भोजन, वाणी और निधि से होता है। यदि द्वितीय भाव में सुख से संबंधित ग्रह हों, तो विवाह में संघर्ष और अनिश्चितता हो सकती है। इसलिए द्वितीय भाव में स्थित ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए उपाय किए जाते हैं।
दो विवाह का योग कुछ विशेष ग्रहों के संयोग से बनता है। इन ग्रहों के विशेष स्थानों या योगों के कारण व्यक्ति के दो विवाह हो सकते हैं। ये ग्रह और उनके संयोग निम्नलिखित हैं:
शनि ग्रह: शनि की दशा के दौरान अगर साढ़े साती या ढैय्या चल रही हो और शनि अशुभ स्थिति में हो, तो दो विवाह का योग बन सकता है। यह उपयुक्त ग्रह के साथ संयोग में होने पर भी संभव है।
शुक्र ग्रह: अगर शुक्र सप्तम भाव में या तुला राशि में है, तो जातक की दो शादी हो सकती हैं।
राहु-केतु: राहु-केतु सप्तम भाव में होते हुए या सप्तम भाव के साथ संयोग में होते हुए दो विवाह का योग बन सकता है।
बुध ग्रह: द्वितीय भाव में बुध होने पर या बुध की स्थिति अनुकूल होने पर दो विवाह का योग का बनता हैं।
सूर्य या चंद्रमा: अगर सूर्य या चंद्रमा सप्तम भाव में स्थिति है या द्वितीय भाव में उनकी उच्च स्थिति में है, तो दो विवाह का योग बन सकता है।
गुरु ग्रह: सप्तम भाव या द्वितीय भाव में गुरु की स्थिति दो शादियों का सकेंत देती हैं।
जातक का दूसरा विवाह कई कारणों से हो सकता है, जैसे:
कुंडली में दूसरे विवाह के योग: कुंडली में दूसरे विवाह के योग होने पर जातक का दूसरा विवाह हो सकता है।
विवाहित जीवन में समस्याएं: विवाहित जीवन में समस्याएं या संघर्षों के कारण जातक अकेलापन महसूस करता है और दूसरे विवाह का फैसला लेता है।
विवाहित संबंधों में असंतोष: विवाहित संबंधों में असंतोष होने के कारण भी जातक दूसरा विवाह करता है।
विवाह समस्याएं: विवाह संबंधी समस्याएं, जैसे वंश का नहीं होना, दम्पति के बीच विवाह जीवन में समस्याएं उत्पन्न होना आदि भी जातक को दूसरे विवाह के लिए मजबूर कर सकती हैं।
दोषपूर्ण ग्रहों के कारण: कुंडली में दोषपूर्ण ग्रहों की स्थिति दो विवाह के योग का कारण बन सकती है।
कुंडली मिलान में दोष: जब कुंडली मिलान करते समय दोष मिलता है, तो भी दो विवाह का योग बनता है।
दृष्टि दोष: जब कुंडली में दोषपूर्ण ग्रह दृष्टि होती हैं, तो जातक के दो विवाह होते है।
कुंडली में दोष: अगर कुंडली में दोष होते हैं जैसे कि मांगलिक दोष, कालसर्प दोष, पितृ दोष आदि तो भी दो विवाह योग बनता हैं।
ज्योतिष शास्त्र में विवाह संबंधित कई उपाय बताए गए हैं, जो विवाह के लिए मददगार होते हैं। कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:
गुरु मंत्र – गुरु मंत्र का जप करना विवाह के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
मंगल मंत्र – मंगल मंत्र का जप करने से विवाह के लिए शुभ फल प्राप्त होते हैं।
गायत्री मंत्र – गायत्री मंत्र का जप करना विवाह से संबंधित समस्याओं को दूर करने में मददगार होता है।
शुक्र मंत्र – शुक्र मंत्र का जप करने से शुक्र ग्रह की दशा में आने वाली विवाह संबंधित समस्याएं को दूर करने में मदद मिलती है।
कुंडली मिलान – विवाह के लिए कुंडली मिलान बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह दो जातकों की कुंडली के गुण मिलान करके उनके विवाह से संबंधित समस्याओं को पहले से ही दूर करता है।
दान – विवाह संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिए दान करना भी एक उपाय है। धान, गुड़, घी, सफेद कपड़े आदि दान करने से विवाह से संबंधित समस्याएं कम होती हैं।
रत्न धारण: कुछ रत्नों से विवाह समस्याएं दूर हो सकती है। यह रत्न आपकी जन्म राशि और लग्न के अनुसार चुना जाता है।
व्रत: विवाह संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए विभिन्न व्रत रखे जाते हैं। कुछ उदाहरण हैं – सोमवार व्रत, संतोषी माता व्रत, शुक्रवार व्रत, शनि व्रत, गणेश व्रत आदि।
अपने विवाह के बारें में विस्तार से जानने के लिएप्रसिद्द और अनुभवी ज्योतिषी से बात करने के लिए यहां क्लिक करें