अयोध्या को हिंदू धर्म के लोग धार्मिक नगरी के रूप में जानते हैं। यहां भगवान राम के साथ-साथ उनके परम भक्त हनुमान जी के प्राचीन मंदिर हनुमानगढ़ी की भी बहुत मान्यता है। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यह भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर अयोध्या में सरयू नदी के दायीं ओऱ एक टीले पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 70 से भी ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यह मंदिर गुफानुमा है। इसमें हनुमान जी की लगभग 6 इंच की मूर्ति है।
भगवान हनुमान जी के इस मंदिर के पीछे एक रोचक कहानी है। इस कहानी से आपको पता चल जाएगा कि यह मंदिर कितना चमत्कारी है। दरअसल सुल्तान मंसूर अली लखनऊ का प्रशासक था। वह एक सुखी जीवन जी रहा था लेकिन एक बार उसके एकलौते पुत्र की अचानक तबीयत खराब हो गई। उस समय चिकित्सा सुविधाएं इस प्रकार नहीं थीं कि इलाज किा जा सके। हालांकि इसके बावजूद भी मंसूर ने अपने बच्चे के इलाज के लिए हर संभव कोशिश की और बड़े-बड़े हकीमों और वैद्य से उसाक इलाज करवाया। लेकिन किसी को भी मंसूर के बेटे का रोग समझ नहीं आया और अंत में सब ने अपने हाथ खड़े कर दिये।
जब सुल्तान थक हार गया तो उसने हनुमान जी के चरणों में अपना माथा झुका दिया। हालांकि पहले भी लोगों ने उसे यह करने की सलाह दी थी लेकिन वह माना नहीं, अंत में जब कोई चारा नहीं रहा तो उसने हनुमान जी के सामने अपने बच्चे को स्वस्थ करने की गुहार लगाई। उसके ऐसा करने के बाद न जाने क्या चमत्कार हुआ और सुल्तान का बेटा एकदम स्वस्थ हो गया। उसके स्वास्थ्य में अचानक ही सकारात्मक बदलाव आने लगे।
अपने बच्चे के ठीक होने के बाद सुल्तान मंसूर अत्यंत प्रसन हुआ और उसकी श्रद्धा भगवान हनुमान जी के प्रति बढ़ गई। मंसूर ने ही इस मंदिर का जीर्णोधार करवाया। उसने हनुमान जी के मंदरि को बनाने के लिए 52 बीघा जमीन हनुमानगढ़ी और इमली वन के लिए दे दी। वर्तमान में जो हनुमानगढ़ी मंदिर है उसे शुजाउद्दौला ने बनवाया था।
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लोग पहले भी हनुमान जी को पूजने के लिए यहां जाते रहे हैं, लेकिन पहले टीले पर एक पेड़ के नीचे हनुमान जी की छोटी सी मूर्ति विराजमान थी। वर्तमान में जो हनुमानगढ़ी मंदिर है उसे शुजाउद्दौला ने बनवाया था। इसमें उन्हें बाबा अभयराम का सहयोग मिला था। यहां भी लगभग वैसी ही कहानी है जैसे सुल्तान मंसूर के साथ हुई थी। दरअसल शुजाउद्दौला के बेटे की एक बार तबीयत खराब हो गई थी और जब कोई भी हकीम कुछ कर नहीं पाया तो। बाबा अभयराम से मिन्नत की गई, बाबा ने मंत्रों के जाप और हनुमानजी के चरणामृत से शुजाउद्दौला के बेटे की जान बचा दी। इसके बाद अभयराम के साथ मिलकर शुजाउद्दौला ने हनुमानगढ़ी को भव्य रूप दिया।
हनुमान जी उन देवों में से एक हैं जिनको आज भी जागृत माना जाता है। यानि वह कलयुग में भी हम लोगों के बीच हैं। हनुमानगढ़ी में आज भी भक्त अपनी मन्नतें लेकर आते हैं और मनचाहे फल पाते हैं। हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति न केवल सांसारिक सुख प्राप्त करता है बल्कि उसे आध्यात्मिक ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। वह भय से मुक्ति प्रदान करते हैं व्यक्ति को सत मार्ग पर अग्रसर करते हैं।
हनुमान जी की पूजा करने के सलाह अक्सर विद्यार्थियों को दी जाती है। ऐसा इसलिए कि विद्यार्थियों को बुद्धि, ज्ञान और ब्रह्मचर्य की अत्यंत आवश्यकता होती है। जो भी जातक भगवान हनुमान जी की पूजा करता है उसे यह सब गुण प्राप्त होते हैं। जो भी जातक ज्ञान चाहता है और बुद्धि को तेजस्वी बनाना चाहता है उसे भगवान हनुमान की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
हनुमान जी भगवान राम के परम भक्त थे और उन्होंने निस्वार्थ भाव से भगवान राम की भक्ति की। उनकी भक्ति से हमको यह संदेश मिलता है कि हमको भी निस्वार्थ भाव से भगवान को पूजना चाहिए। सच्ची खुशी यही है। कहते हैं कि, पार न लगोगे श्रीराम के बिना राम न मिलेंगे हनुमान के बिना। यदि आपको भगवान राम का आशीर्वाद चाहिए तो भी हनुमान जी की भक्ति करनी अति आवश्यक है।
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