हिन्दू पञ्चाङ्ग में दो तिथियों को महत्वपूर्ण माना गया है, एक पूर्णिमा और दूसरी है अमावस्या। इन दोनों तिथियों पर भगवान के आराधना से सकारात्मक एवं लाभदायक परिणाम प्राप्त होते हैं। आपको बता दें कि पूर्णिमा के दिन हमें भगवान की पूजा करनी चाहिए और अमावस्या के दिन पितरों के नाम पर ध्यान और दान करना चाहिए। आपकी जानकारी में अधिक वृद्धि लाते हुए, हम आपको बता दें कि शुक्ल पक्ष में पन्द्रहवें तिथि को पूर्णिमा होती है और कृष्ण पक्ष में तीसवीं तिथि को अमावस्या। इसमें फाल्गुन पूर्णिमा ,बौद्ध पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा सम्मिलित हैं और इस सभी पूर्णिमा तिथियों का अपना-अपना महत्व है। हर वर्ष की तरह वर्ष 2022 में भी 12 पूर्णिमा के तिथि पड़ रही हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि 2022 में पूर्णिमा की तिथि और महत्व क्या है:
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ज्योतिष शास्त्र एवं वैदिक ग्रंथों में इस तिथि का विस्तार से महत्व बताया गया है। आपकी जानकारी में अधिक वृद्धि लाते हुए हम बताना चाहते हैं कि इन्ही तिथियों पर देवताओं का एवं धर्मगुरुओं का अवतरण हुआ था। यह तिथि उस दिन घटित होती है जिस दिन आसमान में चन्द्रमा पूर्ण रूप में दिखाई देता है अथवा सोलह कलाओं से युक्त होता है।
इस दिन पवित्र स्नान, व्रत एवं दान करना जातक के सभी कामनाओं को पूर्ण करता है। साथ ही विवाहित महिलाऐं इस दिन बरगद यानि वट वृक्ष की उपासना करती हैं, तब उनके परिवार के सौभाग्य में अधिक वृद्धि होती है और खुशियां घर आती हैं। इस दिन खास कर जगत के पालनहार भगवान शिव एवं माता पार्वती की आराधना की जानी चाहिए। उनके आराधना से जातक को जीवन में सभी प्रकार के कष्टों से निवारण प्राप्त होता है। साथ ही पूर्णिमा के दिन जातक के कुंडली में चंद्र दोष खत्म होता है।
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पूर्णिमा के दिन चाँद धरती के संबंध में आता है, जिससे समुद्र में ज्वार-भाटा उतपन्न होता है। और क्योंकि मानव शरीर में भी 85% जल है, इसलिए पूर्णिमा के दिन व्यक्ति भी अपने शरीर में कुछ बदलावों को महसूस करता है। जैसे इस दिन शरीर के भीतर रक्त में न्यूरॉन कोशिकाएं अधिक क्रियाशील स्थिति में होती हैं, जिससे व्यक्ति अधिक भावुक या उत्तेजित महसूस करता है।
साथ ही इस दिन रात में मन अधिक बेचैन रहने लगता और व्यक्ति को नींद कम आती है। इसके अलावा जिनकी मानसिक स्थिति कमजोर होती है, उनके मन में हत्या या आत्महत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं। इसके साथ पूर्णिमा के दिन व्रत की सलाह इसलिए दी जाती है, क्योंकि जिन-जिन लोगों के पेट में चय-उपचय की क्रिया अस्थिर होती है, उन लोगों के शरीर पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक नकारात्मक पड़ता है। आपको बता दें कि यह सभी तर्क वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध किए जा चुके हैं।
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