अगर आप भी कर रहे है विवाह की तैयारी, तो नाडी दोष का रखें ध्यान
सनातन धर्म में विवाह से पहले स्त्री और पुरुष दोनों की कुंडली मिलान करना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि कुंडली मिलान के अनुसार स्त्री और पुरुष के गुणों का मिलान किया जाता है और कुंडली मिलना बेहद आवश्यक होता है। अगर जातक की कुंडली नहीं मिलती है, तो उसके वैवाहिक जीवन में परेशानियां उत्पन्न होती हैं। वहीं कुंडली में 8 बिंदुओं के आधार पर गुणों का मिलान भी किया जाता है। अगर कुंडली में नाड़ी दोष होता है, तो उसका विधि-विधान से निवारण भी किया जाता है। आपको बता दें कि इन गुणों के कुल 36 अंक होते हैं इसमें से 18 गुणों का मिलना बेहद जरूरी होने के साथ नाडी दोष नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए होता है ताकि आने वाले दांपत्य जीवन में कोई परेशानी ना हो और स्त्री और पुरुष का आपसी तालमेल अच्छा बना रहे।
कुंडली मिलान की प्रक्रिया में ज्योतिष विद्या सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी के साथ कुंडली मिलान में नाड़ी दोष काफी महत्वपूर्ण और बड़ा दोष माना जाता है। आपको बता दें कि अगर नाड़ी दोष स्त्री या पुरुष की कुंडली में होता है, तो फिर विवाह नहीं किया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार यदि नाड़ी दोष होने के बाद भी स्त्री या पुरुष का विवाह कर दिया जाता है, तो आगामी दांपत्य जीवन में कई तरह के रोग होने की संभावना बनी रहती है। इसी के साथ स्त्री और पुरुष की होने वाली संतानों को रक्त संबंधी रोग हो सकता है। साथ ही स्त्री और पुरुष संतान सुख से वंचित रह सकते हैं। चलिए जानते हैं कि क्या होता है नाड़ी दोष और इसके उपाय-
आपको बता दें कि कुंडली मिलान की प्रक्रिया में सबसे बड़ा दोष नाडी दोष होता है और यह काफी खतरनाक माना जाता है। क्योंकि इसके कारण जातक के विवाह में परेशानियां आती हैं। साथ ही यह दोष काफी अशुभ होता है। आपको बता दें कि जातक की कुंडली में नाड़ी दोष बनने से निर्धनता, वर-वधू में एकता ना होना, रोग जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
इसी के साथ नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आद्य नाड़ी, मध्य नाड़ी तथा अंत्य नाड़ी। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। और कुल 27 नक्षत्रों में से 9 विशेष नक्षत्रों में चंद्रमा स्थित होने से जातक की कोई एक नाड़ी होती है।
आद्य नाड़ी : आपको बता दें कि चंद्रमा जब अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में होता है, तो जातक की आद्य नाड़ी होती है।
मध्य नाड़ी : इसी के साथ जब चंद्रमा भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में होता है, तो जातक की मध्य नाड़ी होती है।
अंत्य नाड़ी : साथ ही जब चंद्रमा कृत्तिका, रोहिणी, अश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती नक्षत्र में होता है, तो जातक की अंत्य नाड़ी होती है।