कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। अहोई अष्टमी का पर्व संतान सुख और उसकी कुशलता हेतु रक्षा जाता है। अहोई अष्टमी को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत संतानवती माताएं अपनी संतान की लम्बी आयु एवं उसके संपूर्ण जीवन की शुभता हेतु रखती हैं। अहोई माता की पूजा करके संतान माताएं अपनी संतान के दीर्घ जीवन का आशीर्वाद अहोई माता से प्राप्त करती हैं।
भारतीय जीवन एवं परंपराओं का एक अद्भुत सा मेल देखने को मिलता है। यहां का प्रत्येक दिवस ही जीवन की उमंगता एवं उल्लास का अभिप्राय बनता है। इसी क्रम में जब हम विवाह जीवन के सुख की कामना करते हैं तो उसमें विवाह की आधारशिला का एक स्वरुप संतान और वंश वृद्धि भी जुड़ता है। एक दंपति अपने जीवन में कुल की वृद्धि ओर कुल की शुभता को बढ़ाने हेतु संतान की कामना करती हैं। संतान का सुख प्राप्त होने पर संतान के जीवन की मंगल कामना भी उस का एक मात्र उद्देश्य होता है। ऎसे में कार्तिक कृष्ण अष्टमी के दिन किया जाने वाला अहोई अष्टमी व्रत संतान के समस्त कष्टों को दूर करने वाला होता है।
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 08-11-2020 को प्रात:काल 07:29
अष्टमी तिथि समाप्त: 09-11-2020 को प्रात:काल 06:50
मान्यता अनुसार पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण कहा गया है। किंतु आज के समय में संतान पुत्र हो या पुत्री दोनों के लिए ही माताएं इस व्रत को करने का प्रण लेती हैं और अपने बच्चों के जीवन के कुशल क्षेम हेतु वह ये व्रत को अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ पूर्ण करती हैं। इसी के साथ ही जो दंपत्ति नि:संतान हैं उनके लिए भी यह व्रत वरदान स्वरुप होता है। इसलिए जो भी व्यक्ति संतान की इच्छा रखते हैं उन्हें इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।
अहोई अष्टमी का त्यौहार मुख्य रुप से आंचलिक क्षेत्रों से जुड़ा रहा है। उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में अहोई माता के निमित्त अहोई अष्टमी का व्रत प्राचीन काल से मनाए जाने की परंपरा रही है। इसी के साथ यदि आधुनिक समय की बात की जाए तो अब यह पर्व भारत वर्ष में ही भक्ति और विश्वास के साथ मनाया जाता है। कई जगहों पर आज भी घरोम की दीवारों पर इस पर्व के दिन अहोई माता का चित्र अंकित किया जाता है।
मुख्य रुप से ग्रामीण क्षेत्रों में हम इस छाप को जीवंत रुप से देख सकते हैं। होई को गेरु इत्यादि से घर की दीवार पर बनाया जाता है। इसके अलावा किसी मोटे वस्त्र पर होई काढकर उसे दीवार पर टांग कर पूजा की जाती है, वहीं आधुनिक रुप में शहरों की बात की जाए तो अब घर की दीवारों पर माता का चित्र अंकित करने के साथ ही माता की तस्वीर व मूर्ति का पूजन किया जाता है। होई के चित्र में आठ कोष्ठक की एक चित्र बनाते हैं और उसी के पास साही तथा उसके बच्चों के चित्र बनाए जाते हैं। कुछ स्थानों पर परिवार के पुरुष सदस्यों एवं बच्चों का नाम भी अंकित किया जाता है।
अहोई अष्टमी का पर्व पारंपरिक रुप से चली आ रही परिवार के जो नियम हैं उन्हीं के अनुसार किया जाता है। परंपराओं के अनुसार कुछ स्थानों पर अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला रखा जाता है, तारों की छांव में पूजा की जाती है तो कुछ स्थानों पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर इसका पूजन संपन्न होता है। अहोई अष्टमी के दिन प्रात: काल स्नान इत्यादि कार्य से निवृत्त होकर माता अहोई का स्मरण एवं पूजा की जाती है। संतान की लम्बी आयु और उस के सुख की कामना को मन में धारण करते हुए व्रत का संकल्प लिया जाता है। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र के साथ सेह और उनके पुत्रों का चित्र भी बनाया जाता है। संध्या समय इन चित्रों की पूजा की जाती है। कुछ लोग चांदी की अहोई बना कर भी पूजा करते हैं।
पूजा स्थान पर पानी का कलश भर कर रखा जाता है। धूप, दीप, रोली, अक्षत व पुष्प इत्यादि से पूजा व आरती की जाती है और कथा सुनी जाती है. दूध व चावल का भोग लगाया जाता है। पूजा के पश्चात सासु मां और घर में बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है। कुछ लोग तारों को देख कर तो कुछ लोग चंद्रमा को देख कर पूजा व अर्घ्य देकर व्रत को संपन्न करते हैं।
अहोई अष्टमी के दिन व्रत की व्रत कथा को अवश्य सुनना चाहिए, अहोई अष्टमी कथा इस प्रकार है – प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी व सात पुत्रों के साथ सुख पूर्वक जीवन रह रहे थे। दीपावली आने से पूर्व घर की साफ-सफाई और लीपा-पोती के कार्य में हाथ बंटाने में साहूकार की पत्नी नदी के पास मिट्टी लेने जाती हैं वह जिस स्थान से मिट्टी खोद रही होती है वहां पर सेह की मांद भी होती है।
अंजाने में साहुकार की पत्नी की कुदाल से सेह का एक बच्चा मर जाता है। साहूकार की पत्नी को यह देख बहुत दु:ख होता है लेकिन होनी को कोई टाल नहीं सकता है। कुछ समय पश्चात साहुकार के एक-एक करके सातों पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। साहुकार और उसकी स्त्री अत्यंत दु:खी होते हैं। अनजाने में सेह के बच्चे की हत्या होने के कारण उसके सातों बेटों की मृत्यु हो गई। यह जानकर एक वृद्ध महिला ने उसे अहोई अष्टमी के दिन माता भवानी की पूजा और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करने को कहती हैं।
साहूकार और उसकी पत्नी ने कार्तिक मास में अष्टमी तिथि का व्रत कर माता अहोई की पूजा की और अपने पाप की क्षमा याचना करते हैं। अहोई माता के आशीर्वाद से उन्हें पुत्रों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार प्रति वर्ष नियमित रुप से वो दंपत्ति भक्ति भाव के साथ माता अहोई का पूजन करने लगे और सुख पूर्वक अपना जीवन जीते हैं।
जय अहोई माता, जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता।। जय।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।
नमो नारायण: ऊं नम: शिवाय
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