जब भी आप किसी भी हिन्दू मंदिर में जाते हैं, तो वहां पुरोहित आपको प्रसाद के रूप में पंचामृत या चरणामृत ग्रहण करने के लिए देते हैं। किन्तु क्या कभी आपने यह सोचा है कि पंचामृत और चरणामृत में अंतर क्या है या क्या आप जानते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है? शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि, चरणामृत का अर्थ भगवान के चरणों का पेय है, जबकि पंचामृत का अर्थ है पांच अमृत या पांच पवित्र पदार्थों से बना पेय पदार्थ। जब आप इस पवित्र पंचामृत या चरणामृत को ग्रहण करते हैं, तब आपके भीतर सकारात्मक भावनाएँ उभरती हैं और आपके जीवन में शुभ वातावरण उतपन्न होता है।
पंचामृत और चरणामृत में अंतर बहुत सरल है किन्तु दोनों पवित्र पेय पदार्थों के अपने-अपने महत्व है। आइए जानते हैं, क्या है पंचामृत और चरणामृत में अंतर।
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यह माना जाता है और ऐसा शास्त्रों में भी वर्णित है कि यदि आप चरणामृत का सेवन करते हैं, तो आप पुनर्जन्म से नहीं गुजरते हैं:
“अकालमृत्यु हरणं सर्वव्यधि विनाशम।
विष्णुपदोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्याते।। “
इस श्लोक का अर्थ यह है कि भगवान विष्णु के पावन चरणों का यह अमृत सभी कष्ट एवं पापों का संहार करता है। साथ ही यदि आप चरणामृत का सेवन करते हैं, तो आप पुनर्जन्म के जंजाल से बच जाएंगे आपको मृत्यु के उपरांत मोक्ष प्राप्त होता होगा।
तांबे के बर्तन में निर्मित चरणामृत औषधीय रूप से सबसे अधिक लाभकारी होता है। साथ ही तिल, तुलसी के पत्तों को डालने से इसका औषधीय महत्व अधिक बढ़ जाता है। यह न केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य में प्रभावशाली असर करता है बल्कि कई बीमारियों को नष्ट करने में भी सहायक होता है।
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पंचामृत मंदिर में दिए जाने वाले चरणामृत के समान है, लेकिन इसमें पांच अमृत पदार्थ शामिल हैं, जो हैं दही, दूध, घी, शहद और शक्कर। इन सभी पाँचो पदार्थ को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। मन की शांति के साथ-साथ पवित्र पंचामृत कई रोगों पर औषधीय आक्रांता है। पंचामृत आत्म-प्रचार और आत्म-संतुष्टि के पांच तरीकों का प्रतीक है। इसी वजह से इस पवित्र द्रव्य में पञ्च अर्थात पाँच-अमृत मिलाए गए हैं।
दूध, पंचामृत का प्रथम पदार्थ है जो शुभता का प्रतीक है। दूसरा पदार्थ दही है, पंचामृत में दही रखना पुण्य का प्रतीक है। तीसरा पदार्थ घी है जो स्नेह का प्रतीक है। शास्त्रों में कहा गया है कि पंचामृत में घी डालने से सभी के साथ मधुर एवं सरल संबंध बनाता है। चौथा पदार्थ शहद है और इस पदार्थ को अधिक शक्तिशाली रूप में इंगित किया गया है। यह न केवल मिठास का प्रतीक है बल्कि आपको जीवन में मजबूत और सफल बनाने के लिए प्रेरक माना जाता है। अंतिम और पदार्थों के समान महत्वपूर्ण पदार्थ है शक्कर, शहद की तरह ही मीठी शक्कर आपको बताती है कि आपको अपने जीवन के संग अन्य हर किसी के जीवन में मिठास को घोलना चाहिए। साथ ही आपको मधुर बोलना चाहिए और सबके साथ अच्छा व्यवहार रखना चाहिए।
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शास्त्रों में पंचामृत और चरणामृत ग्रहण करने का कोई विशेष नियम नहीं है किन्तु, कई बार आपने देखा और किया भी होगा कि पंचामृत या चरणामृत का सेवन करने के बाद अपने सिर पर हाथ रख लेते हैं। लेकिन आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, यह क्रिया सकारात्मक प्रभाव देने से उलट नकारात्मक प्रभाव दिखा सकता है।
इसके अलावा, आपको इसे अपने दाहिने हाथ से इसे ग्रहण करना चाहिए। साथ ही, मन में शुद्ध विचार और आत्म-शांति के साथ इस पवित्र द्रव्य को प्राप्त करना चाहिए। यह पंचामृत और चरणामृत को अधिक प्रभावशाली बनाता है।
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पंचामृत और चरणामृत दोनों का महत्व हिन्दू पूजा एवं अनुष्ठान में अत्यधिक है। पंचामृत और चरणामृत न केवल आपकी आत्मा को शुद्ध करते हैं बल्कि आपके मन को भी शांत करते हैं। दोनों के अपने-अपने उपचार और रोग निवारण गुण हैं। साथ ही, हिंदू धर्म और जैन धर्म और अन्य भारतीय धर्मों में भी इनका अधिक महत्व है।
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