दिवाली के ठीक एक दिन बाद गोवर्धन पूजा भारत के प्रमुख हिस्सों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। जहां 5 दिवसीय उत्सव के पहले तीन दिन धन, समृद्धि और कल्याण के लिए प्रार्थना की जाती है। चौथे दिन यानी गोवर्धन पूजा देवताओं को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। जिस तरह दिवाली खूब धूम-धाम से मनाया जाता है, वैसे पूजा का भी विशेष महत्व है। यह 5 दिवसीय उत्सव होता है जिसमें प्रत्येक दिन का अपना महत्व होता है। इसी तरह पूजा का भी अपना विशेष महत्व है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, गोवर्धन पूजा कार्तिक महीने में ‘एकम’ या शुक्ल पक्ष के पहले चंद्र दिवस में आता है और यह हिंदू उत्सव का एक प्रमुख हिस्सा है। इस साल गोवर्धन पूजा 25 अक्टूबर 2022 को है।
दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का शुभ त्योहार भगवान कृष्ण की लीला को याद करने के लिए मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 25 अक्टूबर 2022 को है। हिंदू पौराणिक कथाओं में इसका विशेष महत्व है। क्योंकि भगवान कृष्ण ने इस दिन अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर और ग्रामीणों और जानवरों को भगवान इंद्र के क्रोध से बचाया था। साथ ही उन्हें पराजित कर उन्हें उनकी गलती का एहसास करवाया था। इसलिए दिवाली के अगले दिन पूजा की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भक्त कार्तिक महीने में प्रतिपदा तिथि, शुक्ल पक्ष के दिन यह त्योहार मनाया जाता है। इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कृष्ण के उपासक उन्हें गेहूं, चावल, बेसन से बनी सब्जी और पत्तेदार सब्जियां चढ़ाते हैं।
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इस पर्व का शुभ मुहूर्त तिथि के अनुसार 25 अक्टूबर 2022 का है। पंचांग के मुताबिक 25 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा का मुहूर्त सुबह 6:33 से सुबह 8:48 तक है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक युवा और जिज्ञासु भगवान कृष्ण ने एक बार अपने पिता नंद महाराज से एक पूछा। सवाल था कि ब्रज के लोग भगवान इंद्र की पूजा क्यों करते हैं? उत्तर में उन्होंने कहा इंद्र की कृपा और पर्याप्त बरसात का पानी पाने के लिए। लेकिन भगवान कृष्ण ने लोगों को इस ओर ध्यान देने के बजाय काम करने की सलाह दी। इससे भगवान इंद्र क्रोधित हो गए। उन्होंने वृंदावन में वर्षा से तबाही मचा दी। ब्रज के लोगों ने मदद के लिए भगवान कृष्ण का आह्वान किया। उन्होंने तब स्थिति को संभालते हुए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और ब्रज के लोगों ने बिना भूख और प्यास की भावना के सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इस तरह भगवान कृष्ण ने भगवान इंद्र को पराजित कर दिया और ब्रज के लोगों को उनके क्रोध से भी बचा लिया।
ब्रज के लोगों को भगवान श्री कृष्ण ने अन्न से भरपूर पर्वत प्रदान किया। इसीलिए इस दिन सभी भक्त भगवान कृष्ण की आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। इस पूजा में भोजन की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अलावा, भगवान कृष्ण के उपासक इस पर्व पर भजन, कीर्तन, करने के साथ-साथ ढेर सारे दिये भी जलाते हैं और अपने घरों की साफ-सफाई कर उसे सजाते भी हैं। इस साल गोवर्धन पूजा 25 अक्टूबर 2022 को है। अन्नकूट दिवाली के चौथे दिन मनाया जाता है। विक्रम संवत कैलेंडर में दिवाली का चौथा दिन नए साल के पहले दिन के रूप मे मनाया जाता है। यह त्योहार पूरे भारत और विदेशों में अधिकांश हिंदू संप्रदायों द्वारा मनाया जाता है।
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इस पर्व के दिन भगवान इंद्र पर भगवान कृष्ण की जीत की सराहना की जाती है, जहां भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की मदद से अपने गांव के लोगों को भगवान इंद्र के क्रोध से बचाया था। हालांकि कहानी यह है कि वृंदावन के लोगों ने भरपूर फसल के लिए बरसात के मौसम में भगवान इंद्र की पूजा की थी। भगवान कृष्ण ने अपने गांव में सभी को प्रचुर वर्षा के लिए प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाया और भगवान इंद्र के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिससे इंद्र जी ने कोध्रित होकर गांव में भारी बारिश की लेकिन कृष्ण जी ने सभी को शक्तिशाली गोवर्धन पर्वत के नीचे आश्रय दिया। इसी वजह से लोग कृष्ण जी की महिमा का गुणगान करने और गोर्वधन के महत्व को याद करने के लिए पर्व मनाया जाता है।
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गुजरात में यह दिन गुजराती नव वर्ष के उत्सव का आह्वान करता है जबकि महाराष्ट्र में, गोवर्धन पूजा को ‘बाली पड़वा’ या ‘बाली प्रतिपदा’ के रूप में मनाया जाता है। किंवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु के एक अवतार वामन ने बाली को हरा दिया और उसे ‘पाताल लोक’ में धकेल दिया, इसलिए ऐसा माना जाता है कि राजा बाली इस दिन पृथ्वी पर आते हैं। इस त्योहार को देश के कई हिस्सों में ‘विश्वकर्मा दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है, जहां लोग अपने औजारों और उपकरणों की पूजा करते हैं।
गोवर्धन पूजा समारोह कई अनुष्ठानों और परंपराओं से जुड़ा हुआ है। पूजा भक्तों के द्वारा एक पहाड़ी के रूप में गाय के गोबर के ढेर बनाने के साथ शुरू होती है, जो गोवर्धन पर्वत का प्रतिनिधित्व करती है और इसे फूलों और कुमकुम से सजाया जाता है। इसके बाद भक्त गाय के गोबर की पहाड़ियों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और अपने परिवार की सुरक्षा और खुशी के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा विधि में लोग अपनी गायों या बैल को स्नान कराते हैं और केसर और माला से उनकी पूजा करते हैं। अन्नकूट पूजा भी गोवर्धन पूजा का एक अभिन्न अंग है, जहां भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाया जाता है, गोवर्धन आरती की जाती है, जिसके बाद इस ‘अन्नकूट प्रसाद’ को परिवार तथा दोस्तों के साथ साझा किया जाता है।
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मथुरा और गोकुल में गोवर्धन पूजा अत्यंत भक्ति के साथ मनाई जाती है। इस पर्व के दिन ब्रज में तीर्थ स्थल पर हजारों भक्तों द्वारा दौरा किया जाता है, जहां वे पहाड़ के चारों ओर ग्यारह मील पथ की ‘परिक्रमा’ करने और वहां स्थित कई मंदिरों में फूल चढ़ाने के बाद पहाड़ को भोजन प्रदान करते हैं।
अन्नकूट का अर्थ है, भोजन का पहाड़। इसकी तैयारी गोवर्धन समारोह का अभिन्न अंग है। इस दिन पूरे देश में भगवान कृष्ण के मंदिरों को सजाया जाता है। साथ ही इस दिन ‘थाल’ या ‘कीर्तन’ गोवर्धन पूजा समारोह का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। भगवान कृष्ण के सभी मंदिरों में भक्ति भजनों का पाठ किया जाता है। गोवर्धन पूजा के लिए तैयार भोजन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस दिन भोजन के पहाड़ के रूप में कृष्ण जी को चढ़ाया जाता है। प्रसाद के रूप में फल, शाकाहारी व्यंजन, अनाज जैसे गेहूं चढ़ाए जाते हैं। ‘अन्नकूट की सब्जी’ इस अवसर पर बनाई जाने वाली एक लोकप्रिय शाकाहारी व्यंजनों मे से एक है। कुछ जगहों पर जन्माष्टमी की तरह छप्पन भोग भी बनाया जाता है। खीर, लड्डू, पंजीरी, पंचामृत, सूजी का हलवा, काजू बर्फी और माखन आधारित व्यंजनों जैसे लोकप्रिय व्यंजनों को प्रसाद भी भगवान कृष्ण को चढ़ाया जाता है।
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