हिंदू धर्म में जीवन व्यापन की सहज प्रक्रिया में कोरोना और इस जैसे अनेक संक्रामक बीमारियों के बचाव का मार्ग निश्चित है। हम इस लेख में देखेंगे कैसे हिंदू मान्यताओं के महत्व को समझ आज भारत के लोग इस कोरोना महामारी से अपना बचाव कर सकते है। इनमें से बहुत से बाते तो ऐसी है जो हमारे दिनचर्या में सहज रूप से शामिल और कुछ बातें जो समय से साथ धूमिल हो गयी है।
हिंदू पारम्परिक रूप से दोनो हाथ जोड़कर नमस्ते करके एक दूसरे का अभिवादन करते है। समय के साथ विदेशी सभ्यता के प्रभाव में एक दूसरे से हाथ मिलाने का चलन बढा है जो अब इस महामारी के कारण बदल रहा है। आज भारतीय ही नहीं, पूरा विश्व अभिवादन के इस तरीक़े को अपना रहा है। कोरोना ही नहीं किसी भी तरह के संक्रमण से बचने के लिए यह उपाय कारगर हो सकता है।
बचपन से ही भारतीय को यह सीख दी जाति है कि बाहर से आने के बाद या खेलकर आने के बाद अपने हाथ, पैर व मुँह धोकर घर में प्रवेश करें। यह आदत समय के साथ पक्की होती जाती है। जिससे बीमारी के कारक जीवाणु, विषाणु घर में प्रवेश नहीं कर पाते।
हिंदू मान्यताओं में ब्रह्म मुहूर्त को आध्यात्मिक,धार्मिक एवं अध्ध्यनात्मक क्रियाओं के लिए सर्वोत्तम माना गया है। सभी माता पिता अपने बच्चों को सुबह जल्दी उठकर पढ़ने के लिए प्रेरित करते है। यह तो सहज ज्ञान है की ब्रह्म मुहूर्त में मन विश्राम कर शक्तिशाली अवस्था में रहता है। आज के युग में यह कोई रहस्य नहीं है की दुनिया भर कि लोग रात का अधिकांश समय सोने के बजाए अपने फ़ोन की स्क्रीन से सामने बिता रहे है, तो जल्दी सो कर जल्दी उठना पहले से भी अधिक अनिवार्य हो गया है। ऐसा करने से मन ओर शरीर को पर्याप्त आराम मिलेगा और उसके रोग से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होगी।
ऐसा नहीं है की स्नान मात्र हिंदू सभ्यता के लोग ही करते रहे है, किंतु जिस प्रकार हिंदुओं ने स्नान को शुद्धता ओर पवित्रात्मा से जोड़कर इसे अपने जीवन में धारण किया है वह और कहीं देखने को नहीं मिलता। कोई धार्मिक अनुष्ठान हो या नियमित पूजा-पाठ बिना स्नान किए नहीं किया जाता। वे, जिनकी धार्मिक प्रवृति समाप्त नहीं हुई है नियमित रूप से स्नान कर पूजा सम्पन्न करते है।
भारतीय घरों में चप्पल जूते का स्थान घर के बाहर निश्चित होता है। घर के भीतर के चप्पल अलग होते है। भारतीय घर में प्रवेश करने से पहले अपने चप्पल बाहर या देहली पर ही उतार देते है। यह सब सहज भाव से किया जाता है ख़ास कर किसी अन्य व्यक्ति के घर में प्रवेश करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है। ऐसा करने से बाहर के सूक्ष्म जीव व गन्दगी घर में प्रवेश नहीं करती।
क्वॉरंटीन शब्द से तो आज बच्चे बूढ़े सभी परिचित है लेकिन हिंदू सभ्यता में यह प्रक्रिया बिना किसी विशेष नाम के सदियों से चली आ रही है। हिंदू धर्म में यह परम्परा है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उस व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने वाले रिश्तेदार स्वयं को बारह दिनों तक दुनिया से अलग-थलग कर लेते है।
तेरह दिनों के बाद ही परिजन घर से बाहर निकलते है। इसका वैज्ञानिक कारण है की व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके शरीर में वास करने वाले परजीवी बाहर अन्य व्यक्तियों को संक्रमित कर सकते है। मृत देह के नाक कान तो रुई से ढक दिए जाते है किंतु यदि फिर भी संक्रमण परिजनों को हो जाए तो समाज में ना फैले इसके लिए यह अघोषित एकांतवास परिजन करते है।
हिंदू धर्म में पशुओं के प्रति करुणा का भाव स्वाभाविक रूप से है। गाय को माता के रूप में आदर दिया जाता है, पूजनीय माना जाता है। अनेक जानवर देवी देवताओं के वाहन हैं, जिनका सम्मान किया जाता है। श्री विष्णु जी के भी अनेक पशु योनि के अवतार जैसे वराह, नर्सिंग, मच्छ, कुर्म आदि दिखाए गये है।
जिस सभ्यता में पशुओं के लिए इतनी सम्मान ओर प्रेम हो, वह सभ्यता दुनिया की सबसे अधिक शाकाहारी जनसंख्या वाली सभ्यता है, यह आश्चर्य की बात नहीं। यह एक बहुत बड़ा कारण है की भारत में पशुओं द्वारा मनुष्यों में संक्रामक रोग होने की सम्भावना बहुत कम है ।
इसी प्रकार के अनेक रहस्य छिपें हुए है हिंदू सभ्यता के ख़ज़ाने में। यह सब बहुत विशेष जटिल नियम-क़ायदे नहीं, सहज सामाजिक आदतें है जो सदियों से चली आ रही है, किंतु इनका महत्व आज के परिदृश्य में अधिक स्पष्ट है, यदि हम इन बातों को ध्यान में रखें तो कोरोना से लड़ सकते हैं।
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