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कैसे बनता है स्त्री की कुंड़ली में वैधव्य योग और इसके उपाय

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की कुंडली में कई तरह के योग बनते हैं। कुछ शुभ योग जातक को शुभ परिणाम देते हैं कुछ अशुभ योग जातक को अशुभ परिणाम देते हैं। आपको बता दें कि यह योग जातक की कुंडली में एक अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि इन योगों के कारण जातक के जीवन में कई तरह के बदलाव होते हैं। बता दें कि ज्योतिष शास्त्र में कई तरह के योग होते हैं जैसे भद्र योग, अतिगंड योग, वैधृति योग, इंद्र योग, सिद्धि योग उन्हीं में से एक ऐसा भी होता है जो अगर किसी स्त्री की कुंडली में बन जाए, तो वह उस स्त्री के जीवन के लिए श्राप की तरह होता है। आपको बता दें कि यह योग वैधव्य योग होता है।

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वैधव्य योग का अर्थ होता है विधवा या विदुर होना। यह योग जिस भी महिला की कुंडली में बनता है वह महिला विधवा हो जाती है। इसलिए यह योग काफी घातक और अशुभ योग माना जाता है। यह योग भी ग्रह दशाओं के कारण बनता है जिसमें ग्रह अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। वैधव्य योग के कारण स्त्री का जीवन काफी कष्टदायक हो जाता है उसे अपने जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बिना पति के समाज एक स्त्री को बुरी नजर से देखता है साथ ही वह अपने बच्चों का भी पालन भी करती है जिसमें उसे काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। चलिए जानते हैं कि वैधव्य योग स्त्री की कुंडली में कैसे बनता है और इसके उपाय

क्या है वैधव्य योग?

आपको बता दें कि वैधव्य योग का अर्थ होता है विधवा होना और यह योग्य किसी स्त्री की कुंडली में बनता है, तो उसके पति की मृत्यु हो जाती है। जिसके बाद वह स्त्री विधवा हो जाती है। इसीलिए यह योग काफी घातक और अशुभ माना जाता है, क्योंकि जब भी किसी स्त्री की कुंडली में बनता है, तो उसे स्त्री के लिए यह श्राप से कम नहीं होता है। साथ ही हिंदू परंपरा में किसी स्त्री का विधवा होने का अभिशाप से कम नहीं है, इसीलिए यह योग बेहद कष्टकारी होता है। क्योंकि महिलाओं को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

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कैसे बनता है वैधव्य योग

  • आपको बता दें कि जब सप्तम भाव का स्वामी मंगल होने व शनि की तृतीय सप्तम या दशम दृष्टि पडने के कारण वैधव्य योग बनता है।
  • साथ ही सप्तमेश का संबंध शनि,मंगल से बनता हो वह सप्तमेश निर्बल हो, तो वैधव्य योग बनता है।
  • आपको बता दें कि सप्तमेश शनि मंगल को देखता है, तो वैधव्य योग बनता है।
  • अगर किसी स्त्री की कुंडली में द्वितीय भाव में मंगल हो और शनि की दृष्टि पड़ती हो व सप्तमेश अष्टम में हो या षष्ट में हो या द्वादश में हो कर पीड़ित हो वैधव्य योग बनता है।
  • इसी के साथ वैधव्य योग के लिए सप्तम भाव महिला की कुंडली में पति का या पति की आयु का भाव लग्न से द्वितीय होता है, तो दांपत्य जीवन के लिए कारक शुक्र का अध्ययन करते है।
  • बता दें कि जिस महिला की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल पाप ग्रहों से युक्त हो तथा पाप ग्रह सप्तम भाव में स्थित मंगल को देखते है, तो वैधव्य योग बनता है।
  • इसी के साथ चंद्रमा से सातवें या आठवें भाव में पाप ग्रह हो, तो मेष, वृश्चिक राशि का राहु और आठवें या बारहवें स्थान में हो, तो वृषभ कन्या एवं धनु लग्न में वैधव्य योग बनता है।
  • सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तथा चंद्रमा छठे या फिर सातवें भाव में हो, तो वैधव्य योग बनता है।
  • बता दें कि अगर मकर लग्न हो, तो सप्तम भाव में कर्क, सूर्य, मंगल के साथ हो तथा चंद्रमा पाप पीड़ित हो, तो वैधव्य योग बनता है।
  • साथ ही यदि लग्न एवं सप्तम दोनों स्थानों में पाप हो, तो वैधव्य योग बनता है।
  • साथ ही षष्टम एवं अष्टम भाव के स्वामी अगर षष्टम या व्यय भाव में पापग्रहों के साथ मौजूद होते है, तो वैधव्य योग बनता है।

द्विभार्या योग या बहु विवाह क्या होता है

आपको बता दें कि इस योग का अर्थ होता है कि किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाने के बाद उसका दूसरा विवाह करवाना दुर्भाग्य योग्य या बहु विवाह योग कहा जाता है। जो स्त्री के साथ ससुराल पक्ष के द्वारा किया जाता है। कई बार इस योग के तहत महिला के एक या एक से अधिक विवाह के योग बनते हैं। इसके लिए ग्रह दशा काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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द्विभार्या योग या बहु विवाह योग कैसे बनता है

  • आपको बता दें कि जब यह योग किसी स्त्री की कुंडली में बनता है, तो उसके लिए काफी घातक साबित होता है।
  • इस योग का अर्थ होता है कि महिला का दोबारा विवाह यानी उसके पति की मृत्यु के पश्चात उसका दोबारा विवाह कराना।
  • आपको बता दें कि लग्न में उच्च राशि का ग्रह हो और लग्नेश उच्च राशि में होता है, तो महिला के तीन से ज्यादा विवाह योग बनते हैं।
  • साथ ही बलवान चंद्र और शुक्र एक राशि में बैठे हो, तो बहु विवाह के योग बनते हैं।
  • आपको बता दें कि बलवान शुक्र सप्तम भाव में पर दृष्टि बना रहा हो, तो अनेक विवाह के योग होते हैं।
  • साथ ही सप्तम भाव पाप ग्रह से युक्त होकर लग्नेश, धरेश और अष्टमेश तीनों सप्तम भाव में होते है, तो बहु विवाह योग बनते हैं।
  • इसी के साथ सप्तमेश शनि पाप ग्रह के साथ बैठा हो, तो विवाह के योग होते हैं।

उपाय

  • आपको बता दें कि अगर किसी महिला की कुंडली में विधवा होने का योग बनता है, तो 5 साल तक मंगला गौरी का पूजन करें।
  • इसी के साथ महिला को विवाह पूर्व कुंभ विवाह करना चाहिए।
  • अगर किसी महिला को विवाह होने के बाद वैधव्य का पता चलता है, तो उसे मंगल और शनि से जुड़े उपाय करने चाहिए।
  • साथ ही जिस पाप ग्रह के कार्य वैधव्य योग उत्पन्न हो रहा है उस पाप ग्रह की शांति करवानी चाहिए।
  • विवाह उपरांत वैधव्य योग के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए भगवान शिव जी की नियमित रूप से पूजा करनी चाहिए।
  • साथ ही घर के मुख्य दरवाजे पर आम के पत्तों का वंदनवार लगाना चाहिए।
  • वहीं आपको 15 दिन बाद पुराने पत्तों को हटाकर नए पत्तों को लगाना चाहिए।
  • बृहस्पति की दशा को सही करने के लिए आपको बृहस्पति पूजा भी करनी चाहिए।

साथ ही आपको अधिक जानकारी के लिए किसी अनुभवी ज्योतिष से सलाह लेनी चाहिए।

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