आपकी कुंडली में कुछ ऐसे भाग्यशाली योग होते हैं, जो आपके भविष्य एवं वर्तमान पर गहरा असर डालते हैं। ऐसा ही एक राजयोग है “केंद्र त्रिकोण राजयोग”, जिसे प्रमुख राजयोग में श्रेणी में गिना जाता है। यह योग अपने नाम को परिभाषित करते हुए केंद्र और त्रिकोण के ग्रहों के आपसी संबंधों से केंद्र त्रिकोण राज योग बनता है।
कुंडली में जब 3 केंद्र भाव जैसे 4, 7, 10 और 3 त्रिकोण भाव जैसे 1, 5, 9 जब आपस में युति, दृष्टि संबंध अथवा राशि परिवर्तन करते हैं, तब केंद्र त्रिकोण राजयोग बनता है। केंद्र त्रिकोण राजयोग जातक के लिए भाग्यशाली माना जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप भाग्योदय, पेशे में उन्नति, सरकारी या कॉर्पोरेट कार्यालय में शीर्ष स्थान मिलता है।
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वैदिक ज्योतिष में माता लक्ष्मी को त्रिकोण भाव की देवी के रूप में वर्णित किया गया है और भगवान विष्णु को केंद्र भाव के देवता के रूप में बताया गया है। केंद्र त्रिकोण राजयोग में, यदि नवम भाव (त्रिकोन भाव) उच्च का हो, और लग्न में स्थित हो, या वर्गोत्तम नवमांश में त्रिकोन(नवम) या केंद्र(चतुर्थांश) भाव में स्थित हो, तो शुभ लक्ष्मी योग बनता है। उदाहरण के तौर पर यदि मंगल मेष राशि में पहले घर में और बृहस्पति धनु राशि में नवम भाव में हो तो लक्ष्मी योग बनता है।
यह योग जातक को धन वैभव, सुख एवं समृद्धि प्रदान करता है। यदि कुंडली में लग्न या पहला घर केंद्र और त्रिकोण भाव दोनों हैं; इसके शासक ग्रह (लग्नाधिपति) को इस योग में केंद्र या त्रिकोण के स्वामी के रूप में शामिल किया जा सकता है।
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मजबूत त्रिकोण राजयोग वाले व्यक्तियों पर साढ़े साती का प्रभाव कम पड़ता है। यह शुभ राजयोग, केंद्र त्रिकोण राजयोग से थोड़ा अलग है। यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में तीनों त्रिकोण या केंद्र में से किसी एक में मजबूत योग बनाते हैं, तो जातक बहुत भाग्यशाली माना जाता है। यह योग असाधारण रूप से उत्कृष्ट परिणाम देता है और जातक को एक अद्भुत भाग्य प्रदान करता है और धन, समृद्धि और प्रसिद्धि जैसे सभी प्रकार की विलासिता प्रदान करता है।
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ज्योतिषीय जन्म कुंडली में एक साथ स्थित तीन त्रिकोणों द्वारा गठित बारह लग्नों के लिए यह भाग्यशाली योग इस प्रकार हैं:
मेष: तीनों त्रिकोण स्वामी मंगल, सूर्य, बृहस्पति (अग्नि राशि: मेष, सिंह, धनु अधिक) मेष राशि में एक साथ स्थित हों तब।
वृषभ: त्रिकोण स्वामी शुक्र, बुध, शनि (पृथ्वी राशि: वृष, कन्या, मकर अधिक) एक साथ वृष राशि में स्थित हों तब।
मिथुन: त्रिकोण के सभी स्वामी बुध, शुक्र, शनि (वायु राशि) मिथुन राशि में एक साथ विराजमान हों तब।
कर्क: यदि सभी त्रिकोणों का स्वामी चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति (जल राशि: कर्क, वृश्चिक, मीन अधिक) कर्क राशि में एक साथ स्थित हों तब।
सिंह: त्रिकोण के सभी स्वामी सूर्य, बृहस्पति, मंगल (अग्नि राशि) सिंह राशि में एक साथ विराजमान हों तब।
कन्या: यदि सभी त्रिकोण स्वामी बुध शनि शुक्र (पृथ्वी राशि) एक साथ कन्या राशि में स्थित हों तब।
तुला: यदि सभी त्रिकोण स्वामी शुक्र, शनि, बुध (वायु राशि) तुला राशि में एक साथ हों तब।
वृश्चिक: त्रिकोण के सभी स्वामी मंगल, बृहस्पति, चंद्रमा (जल चिह्न) वृश्चिक राशि में एक साथ विराजमान हों तब।
धनु: यदि सभी त्रिकोण स्वामी बृहस्पति, मंगल, सूर्य (अग्नि राशि) धनु राशि में एक साथ हों तब।
मकर: त्रिकोण के सभी स्वामी शनि, शुक्र, बुध (पृथ्वी राशि) एक साथ मकर राशि में विराजमान हों तब।
कुम्भ: यदि सभी त्रिकोण स्वामी शनि, बुध, शुक्र (वायु राशि) कुम्भ में एक साथ हों तब।
मीन: यदि सभी त्रिकोण स्वामी बृहस्पति, चंद्रमा, मंगल (जल राशि) एक साथ मीन राशि में स्थित हों।
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वैदिक शास्त्र में राजयोग को शुभ बताया जाता है। यह योग जब किसी व्यक्ति की कुंडली में दर्शित होता है, तब उनके जीवन में भाग्योदय होता है और उनका जीवन राजा के समान व्ययतीत होता है। ऐसे कुछ राजयोग हैं जो हर व्यक्ति अपने कुंडली में चाहता है, वह हैं- सिंहासन राजयोग, ध्वज राजयोग, चाप राजयोग, केंद्र त्रिकोण राजयोग। इससे संबंधित कोई भी अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए AstroTalk के अनुभवी ज्योतिषियों से बात करें।
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