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क्या है राजभंग योग: जातक की कुंड़ली में राजभंग योग कैसे बनता है?

जिस तरह जातक के जीवन की भविष्यवाणी के लिए ग्रह, तारों की युति का अध्ययन किया जाता है। ठीक उसी प्रकार वैदिक ज्योतिष में जातक के जीवन को समझने के लिए कुंड़ली में बन रहे योगों का भी काफी महत्व होता है। आपको बता दें कि कुछ योग ऐसे होते है जो जातक को राजा से रंक बना देते है। वही कुछ योग ऐसे होते है जो जातक को काफी धनी बनाते है। साथ ही कुछ जातकों को जीवनभर अच्छे योग ही मिलते हैं, तो कुछ दुर्भाग्यशाली होते हैं और उनका पूरा जीवन संघर्षों में बीत जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह उनके पूर्व जन्मों के फल के कारण हो सकता है। इसी के साथ जातकों की कुंडली में शुभ व अशुभ दोनो प्रकार के योग बनते हैं।

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बता दें कि कुछ लोगो की कुंड़ली में राजयोग तो बनता है। लेकिन वह बनने के साथ ही भंग हो जाता है। इसी कारण उन राजयोगों का फल जातक को उनकी दशा आने पर भी नहीं मिलता है। साथ ही राजभंग योग के कारण जातक राजयोग के शुभ प्रभावों से वंचित हो जाता है।

आपको बता दें कि राजभंग योग जातक की कुंडली के लिए बिल्कुल भी सही नही होता है। क्योंकि इस योग से जातक के शुभ परिणाम नही मिलते है। साथ जातक की कुंड़ली में शुभ और अशुभ दोनो योग बनते है और यह योग अपने अनुसार जातक को फल देते है। शुभ योग बनने से जातक को शुभ परिणाम प्राप्त होते है और जातक की कुंड़ली में अशुभ योग बनने से उसे अशुभ परिणाम प्राप्त होते है। चलिए जानते है कि जातक की कुंड़ली में कैसे बनता है राजभंग योग और इसका प्रभाव-

क्या होता है राजभंग योग?

आपको बता दें कि राजभंग योग के बनने से जातक की कुंड़ली में राजयोग का बनना बहुत जरुरी होता है। क्योंकि राजयोग बनने के बाद उस योग का भंग हो जाना ही राजभंग योग कहलाता है। साथ ही जब कुंडली के केंद्र त्रिकोण स्वामी ग्रहो के बीच आपस में युति या स्थान परिवर्तन सम्बन्ध बनता है, तो जातक की कुंड़ली में राजयोग बनता है 

इसी के साथ ग्रहों के बीच बनने वाला किसी भी तरह का शुभ योग भी राजयोग के समान माना जाता है। वहीं किसी केंद्र के स्वामी के उच्च, स्वराशि या वर्गोत्तम होकर त्रिकोण में होने पर, त्रिकोण के स्वामी के उच्च, स्वराशि, वर्गोत्तम होकर केंद्र में मौजूद होने पर भी वह ग्रह राजयोगकारक माना जाता है। आपको बता दें कि अन्य कोई भी शुभ योग जब जातक की कुंडली में बनता है, तो वह राजयोग की तरह फल देता है। वहीं केंद्र त्रिकोण के स्वामियों के बीच बनने वाला योग मुख्य रूप से राजयोग माना जाता है।

कैसे होता है कुंड़ली में राजभंग योग का निर्माण

  • बता दें कि जब सूर्य तुला राशि में दस से कम अंशों का होता है, तो राजभंग योग का निर्माण होता है।
  • साथ ही जब लग्न से छठे भाव में सूर्य तथा चंद्रमा हो एवं उनपर शनि की दृष्टि हो, तो राजभंग योग बनता है।
  • इसी के साथ जब शनि लग्न में या केंद्र में हो उसे कोई भी शुभ ग्रह न देखता हो तथा मंगलवार का जन्म होता है, तो यह योग बनता है।
  • वहीं चंद्रमा तथा मंगल मेष राशि में स्थित हो और उनपर शनि की दृष्टि हो और उसे कोई अन्य शुभ ग्रह न देखता हो, तो राजभंग योग बनता है।
  • साथ ही केंद्र में चंद्रमा, शनि तथा सुर्य हो, तो राजभंग योग बनता है।
  • जब शनि केंद्र में हो और चंद्रमा लग्न में हो तथा गुरू बारहवें भाव में स्थित होता है, तो राजभंग योग बनता है।
  • वहीं नवमेश बारहवें भाव में हो और पाप ग्रह केंद्र में मौजूद हो तो राजभंग योग बन जाता है।
  • जब गुरू, राहु या केतु के साथ हो तथा उस पर शनि, मंगल या सूर्य में से किन्ही दो ग्रहों की दृष्टि होती है, तो राजभंग योग बनता है।
  • साथ ही जब नवमेश बारहवें भाव में हो और पाप ग्रह केंद्र में हो, तो राजभंग योग का निर्माण होता है।
  • इसी के साथ गुरू, राहु या केतु के साथ हो तथा उस पर शनि, मंगल या सूर्य में से किन्ही दो ग्रहों की दृष्टि होती है, तो राजभंग योग बन जाता है।
  • बता दें कि मकर राशि में गुरू हो तथा उसपर पापग्रह दृष्टि होने पर राजभंग योग बनता है।
  • साथ ही लग्न का स्वामी नीच राशि में होकर सूर्य के साथ स्थित हो और उसपर शनि की दृष्टि होती है, तो राजयोग भंग हो जाता है।
  • इसी के साथ कोई भी दो पापग्रह दशम भाव में स्थित होते है और दशमेश पर शुभग्रहों की दृष्टि न हो, तो राजयोग भंग हो जाता है।
  • जब नवमेश द्वादशस्थ हो और तीसरे भाव में पाप ग्रहों हो तथा बारहवें भाव का स्वामी दूसरे भाव में स्थित होता है, तो राजयोग भंग योग होता है।
  • इसी के साथ सप्तम भाव में बुध, शुक्र हो और पंचम स्थान में गुरू हो तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तथा चंद्रमा से अष्टम भाव में पाप ग्रह हो, तो राजयोग भंग हो जाता है।
  • जब लग्नेश, चंद्र लग्नेश, नवमेश, सूर्य, चंद्र तथा गुरू शत्रु राशियों में स्थित होता है, तो राजयोग भंग होता है।
  • वहीं दशम भाव में चंद्रमा, सप्तम भाव में शुक्र तथा नवम भाव में पाप ग्रह होता है, तो राजयोग भंग होता है।
  • साथ ही शुक्र, बुध तथा चंद्रमा केंद्र स्थानों में हो और जन्म लग्न में राहु विद्यमान होता है, तो राज योग भंग हो जाता है।
  • जब सप्तम भाव में सूर्य और चंद्रमा हो तथा उन्हे शनि देखता हो, तो राजयोग भंग होता है।
  • साथ ही गुरू या सूर्य नीच राशि में होकर केंद्र में स्थित हो तथा पाप ग्रह से दृष्टि हो, तो राजभंग हो जाता है।
  • इसी के साथ केंद्र में सभी पाप ग्रह हो और उन पर शुभग्रहों की दृष्टि न हो तथा गुरू अष्टम भाव में हो, तो राजयोग भंग  हो जाता है।
  • वहीं चंद्र एवं बुध दशम में हो, पाप ग्रहों में से किन्ही दो पाप ग्रहों की दृष्टि हो तथा एक पाप ग्रह साथ में हो एवं शुभ ग्रहों की दृष्टि से रहित हो तो राजयोग भंग हो जाता है।
  • यदि लग्नेश चंद्रमा से पंचम स्थान में हो या दूसरे भाव में हो तथा पाप ग्रह चंद्रमा से अष्टम भाव में हो एवं चंद्रमा दशम भाव में होता है, तो राज योग भंग हो जाता है।
  • जब लग्नेश क्षीण हो तथा उसे अष्टमेश देखता हो एवं गुरू, सूर्य के साथ में हो, तो राजभंग योग बनता है।
  • वहीं चतुर्थेश एवं अष्टमेश साथ में हो तथा षष्ठेश से देखे जाते है, तो राजयोग भंग होता है।
  • दशमेश पांचवें भाव में स्थित हो तथा लग्नेश नीच राशि में स्थित होता है, तो राजभंग योग होता है।
  • जब चतुर्थेश पाप ग्रह के साथ में होकर अस्त हो, तो राजयोग भंग होता है।
  • साथ ही शुक्र, गुरू अस्त हों तथा लग्नेश पाप ग्रह के साथ हो, तो राजभंग योग होता है।
  • वहीं शुभ ग्रह षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव में हो, पाप ग्रह केंद्र तथा त्रिकोण में हो तथा दूसरे भाव का स्वामी निर्बल हो, तो राजयोग भंग होता है।
  • साथ ही दूसरे भाव का स्वामी तथा लग्नेश नीच राशि में स्थित हो और नवमेश सूर्य के साथ अस्त हो, तो राजयोग भंग हो जाता है।
  • वहीं कोई भी तीन ग्रह नीच राशि में हो या अस्त हो तथा लग्नेश शत्रु स्थान में हो या निर्बल हो, तो राजभंग योग होता है।

राजभंग योग का फल

आपको बता दें कि जातक की कुंडली में कितने ही शुभ एवं प्रबल योग बनते हो। अगर जातक की कुंडली में राजभंग योग बनता है, तो यह योग कुंड़ली में बनने वाले सभी शुभ योगो के प्रभावों को कम कर देता है। और जातक को शुभ योग का कोई भी शुभ फल नही मिलता है। इसी के साथ जातक की जन्म कुंडली में यदि राजभंग योग होता है, तो वह सभी शुभ एवं प्रबल योगों का नाश कर देता है। और व्यक्ति को दरिद्री, कामी, क्रोधी, सौभाग्यहीन वं मलिन बना देता है। साथ ही इस योग के कुंड़ली में बनने से जातक आलसी, विवादी, पाप कामों में जुड़ना, दुष्टात्मा तथा निन्दक हो जाता है। राजभंग योग जातकके जीवन में सघर्ष की मात्रा को बढ़ा देता है। साथ ही जातक को शुभ परिणाम भी नही मिलते है।

उपाय

  • आपको शनि देव की पूजा करनी चाहिए।
  • साथ ही आपको शनि या राहू से जुड़ी चीजों का दान करना चाहिए। इससे आपको शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।
  • इसके लिए शानिवार के दिन सरसों का तेल अपने ऊपर से घुमाकर शनिदेव के चरणों में चढा दें।
  • साथ ही जातक को शानिवार के दिन सरसों के तेल का दीपक भी जलाना चाहिए।
  • साथ ही गुरु, शुक्र जो भी ग्रह आपकी कुंड़ली में राजयोग बना रहा है उस ग्रह को मजबूत करना चाहिए।
  • शुक्र को मजबूत करने के लिए आपको ॐ शुं शुक्राय नम:। मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • वहीं आपको गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए ॐ बृं बृहस्पतये नमः। मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • साथ ही आपको भगवान शिव की अराधना भी करनी चाहिए।

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