Liver rog: जानें कौन-सा ग्रह लिवर रोग के लिए जिम्मेदार होता है और इससे जुड़े ज्योतिषीय उपाय
अच्छी सेहत के लिए स्वस्थ लिवर बहुत जरूरी है। लिवर की बीमारी विभिन्न तरीकों से होती है जैसे प्री-हेपेटिक, हेपेटिक और पोस्ट हेपेटिक। लिवर पेट में दाहिनी ओर स्थित होता है, इसलिए ज्योतिष में लिवर जातक की कुंडली में पंचम भाव के अधिकार क्षेत्र में आता है। मानव शरीर में लिवर, पैनक्रियाज के काफी नजदीक है, जो पाचन प्रक्रिया को सुचारू ढंग से चलने में मदद करता है। इसी वजह से अगर आपका लिवर सही तरीके से कार्य नहीं कर रहा है, तो आपका पाचन तंत्र प्रभावित होता है, जिससे आपका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। इससे न सिर्फ स्वास्थ्य बिगड़ता है बल्कि मानसिक परेशानी का भी सामना करना पड़ता है। लिवर रोग जातक के लिए काफी कष्टकारी होता है।
यदि आपकी कुंडली में गुरु कमजोर है, तो आपको लिवर, पीलिया, मोटापा, कैंसर और मधुमेह से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ सकता है। आइए जानते हैं लिवर रोग (Liver rog) के बारें में अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं।
लिवर रोग (Liver rog) के ज्योतिषीय कारक
ज्योतिष में बृहस्पति लिवर और पैनक्रियाज पर शासन करता है, इसलिए यह स्पष्ट है कि ये अंग पंचम भाव और बृहस्पति के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। 9वां तथा 5वां भाव लिवर की बीमारी के लिए जिम्मेदार हैं। राशि चक्र में संबंधित राशियां सिंह और धनु हैं, जिन्हें ये रोग होने की आशंका बहुत अधिक होती है। इसलिए जातक की कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के पीड़ित होने पर जातक लिवर संबंधित रोग से पीड़ित होगा। यदि पंचम और नवम भाव में दु:ख का योग हो, तो रोग अधिक समय लेगा।
जातक की कुण्डली में कई गंभीर और अशुभ योग होते है, जो कुण्डली में दोष और लिवर रोग को उत्पन्न करते हैं।
मुख्य रूप से पैनक्रियाज और लिवर को बृहस्पति ग्रह नियंत्रित करता है। इसलिए इस ग्रह पर कोई भी कष्ट या परेशानी आने पर इसका सीधा प्रभाव लिवर पर पड़ता है। नतीजतन जातक को लिवर संबंधी बीमारी झेलनी पड़ती है।
छठे, आठवें या बारहवें भाव में पंचम भाव के स्वामी की उपस्थिति चाहे अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक, दोनों ही तरह से लिवर की समस्याओं को जन्म देती है।
नवांश में बृहस्पति और शनि की स्थिति से लिवर के रोग होते हैं।
शनि और मंगल द्वारा बृहस्पति की पीड़ा छठे, आठवें या बारहवें भाव में होने से लिवर की बीमारी होती है।
पंचम या नवम भाव के स्वामी की शनि, मंगल, राहु या केतु के साथ युति, लिवर संबंधित बीमारियों की ओर ले जाती है।
लिवर रोग (Liver rog) की बीमारी के लिए कुछ ग्रहों की युति
बृहस्पति यकृत का कारक है। ऐसे में अगर बृहस्पति शनि की दृष्टि से पीड़ित हो या साथ में पंचम भाव या अन्य भाव में स्थित हो, तो लिवर से जुड़े रोग होना तय है।
यदि पंचम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो और किसी पाप ग्रह से पीड़ित हो। इसके अलावा अगर बृहस्पति और शनि नौवें भाव में हों या दोनों ग्रह नवांश में भी हों। इसी तरह अगर मंगल, शनि, राह और केतु 5वें या 9वें स्वामी के साथ युति करें, तो जातक को पीलिया रोग हो सकता है।
जब नवांश लग्न से पंचम और नवम भाव मंगल, शनि, राहु और केतु से पीड़ित हो। यदि बृहस्पति छठे, आठवें, बारहवें भाव में स्थित हो और शनि, मंगल आदि पाप ग्रहों से पीड़ित हो, तो रोग गंभीर रूप ले लेगा।
अशुभ ग्रह दशा के कारण प्रभावित करने वाले रोग
सूर्य ग्रह
सूर्य को हड्डियों का कारक ग्रह माना गया है।
यह पेट, दाहिनी आंख, हृदय, त्वचा, सिर और जोड़ों पर शासन करता है।
सूर्य की दशा के दौरान जातक को उसके द्वारा नियंत्रित शरीर के अंगों से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक कमजोर सूर्य शरीर के अंगों से संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं को देने की प्रवृत्ति रखता है।
सूर्य की दशा और अन्तर्दशा के दौरान जातक तेज बुखार, मानसिक बीमारियों और पिछले रोगों के पुनरावर्तन से भी पीड़ित हो सकता है।
चंद्र ग्रह
चन्द्रमा को मन और हृदय का कारक ग्रह माना गया है।
यह हृदय, फेफड़े, बायीं आंख, स्तन, मस्तिष्क, रक्त, शरीर के तरल पदार्थ, ट्यूब फीडिंग, आंतों, वृक्क और लसीका वाहिनी (lymph duct) पर शासन करता है।
चंद्रमा के कमजोर स्थिति में होने के कारण नींद न आना, बुद्धि की कमी, दमा और रक्त संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। कमजोर चंद्रमा के कारण जातक को मधुमेह, मासिक धर्म, अपेंडिक्स, फेफड़े के विकार, खांसी और उल्टी से संबंधित समस्याएं भी होती हैं।
मंगल ग्रह
रक्त, मज्जा, ऊर्जा, गर्दन, नसें, जननांग, गर्दन, लाल रक्त कोशिकाएं, गुदा, स्त्री अंग और शरीर की ऊर्जा का स्तर मंगल के शासन में आता है। पीड़ित मंगल कारक तत्वों से संबंधित समस्या देता है।
इनके अलावा मस्तिष्क विकार, चोट, विषाक्तता, आंखों में दर्द, खुजली, खून का थक्का जमना, स्त्री जननांग रोग, कमजोर हड्डियां, ट्यूमर, बवासीर, छाले, घुटने की समस्या आदि भी कमजोर मंगल के कारण होते हैं।
बुध ग्रह
बुध छाती, तंत्रिका तंत्र, त्वचा, नाभि, नाक, पित्ताशय, नसों, फेफड़ों, जीभ, बाहों, चेहरे और बालों का कारक है। पीड़ित बुध अपने कारक तत्वों से संबंधित समस्याएं देता है।
यह कुंडली में कमजोर होने पर मांसपेशियों और छाती से संबंधित समस्याएं भी देता है।
वहीं जातक की कुंडली में बुध की कमजोर स्थिति के कारण व्यक्ति को टाइफाइड, , हैजा, चक्कर आना आदि रोगों का सामना करना पड़ सकता हैं।
बृहस्पति ग्रह
बृहस्पति, जांघों, वसा, मस्तिष्क, यकृत, गुर्दे, फेफड़े, कान, जीभ, स्मृति, प्लीहा (एक अंग है जो सभी रीढ़धारी प्राणियों में पाया जाता है) आदि का कारक है।
कुंडली में पीड़ित बृहस्पति अपने कारक तत्वों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं देता है।
कमजोर बृहस्पति कान, मधुमेह, जीभ, याद्दाश्त और पैनक्रियाज से संबंधित रोग भी दे सकता है। बृहस्पति, जातक को मधुमेह देने में भूमिका निभाता है।
शुक्र ग्रह
साथ ही शुक्र मुख, आंखों की रोशनी, जननेंद्रिय, मूत्र, वीर्य, शरीर, तेज और कांति, कंठ और ग्रन्थियों का कारक है।
वहीं शुक्र की दशा और अन्तर्दशा में जातक को संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है। शुक्र दृष्टि का कारक भी है।
इस प्रकार पीड़ित शुक्र नेत्र विकार भी देता है। कमजोर शुक्र के कारण जननेंद्रिय रोग, गले के रोग, शरीर की चमक कम होना, नपुंसकता, बुखार, सुजाक (gonorrhea), उपदंश (syphilis), गठिया, खून की कमी आदि रोग होते हैं।
शनि ग्रह
शनि पैरों, जोड़ों की हड्डियों, मांस, मांसपेशियों, अंगों, दांतों, त्वचा, बाल, कान, घुटने आदि का कारक है।
कुंडली में पीड़ित शनि इसके कारक तत्वों से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं देता है।
शारीरिक कमजोरी, मांसपेशियों में कमजोरी, पेट में दर्द, अंगों में चोट लगना, त्वचा और पैरों के रोग, जोड़ों में दर्द, अंधापन, बालों का रूखा होना, मानसिक चिंता होना, पक्षाघात, बहरापन कमजोर शनि के कारण होता है।
राहु ग्रह
राहु पैर, श्वास, गर्दन, फेफड़े आदि का कारक है।
पीड़ित राहु श्वास, फेफड़े, अल्सर, पैर आदि से संबंधित समस्याएं देता है।
यह मोतियाबिंद, छाले, हकलाना, प्लीहा आदि भी पैदा कर सकता है। राहु के कारण कैंसर भी होता है। .
केतु ग्रह
केतु उदर और पंजों का कारक है।
यह फेफड़े, बुखार आदि से संबंधित रोग भी देता है। आंत में कीड़े, कान की समस्या, नेत्र विकार, पेट दर्द, शारीरिक कमजोरी, मस्तिष्क विकार आदि भी पीड़ित केतु के कारण होते हैं।
केतु रहस्यमयी रोग भी देता है, जिनका मूल कारण पता नहीं चल पाता है।
सभी ग्रह से जुड़े आसान ज्योतिषीय उपाय
सूर्य ग्रह के लिए उपाय
गरीब और जरूरतमंद बीमार लोगों की सेवा करें।
प्रतिदिन सुबह सूर्य को अर्घ्य दें।
सूर्य के बीज मंत्र “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः” का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।
सूर्य देव से संबंधित वस्तुओं का दान करें।
प्रतिदिन कम से कम 5 मिनट नग्न आंखों से भगवान सूर्य को देखें।
जन्म कुंडली में सूर्य ग्रह को शांत करने और उसके अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन सूर्य ग्रह शांति पूजा करवाएं।
चंद्रमा ग्रह के लिए उपाय
प्रतिदिन शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं और यदि संभव न हो, तो हर सोमवार को ऐसा करें। जब तक आपको रोग से छुटकारा न मिल जाएं, तब तक उपाय करें। साथ ही डॉक्टर की सलाह भी जरूर लें।
महिलाओं का सम्मान करें।
प्रतिदिन ध्यान और योग करें।
प्रतिदिन मां का आशीर्वाद लें।
चंद्र ग्रह के बीज मंत्र “ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः” का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।
चंद्र ग्रह से संबंधित चीजों का दान करें।
जन्म कुंडली में चंद्रमा ग्रह को शांत करने और उसके अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ऑनलाइन चंद्र ग्रह शांति पूजा करवा सकते हैं।
मंगल ग्रह के लिए उपाय
हर मंगलवार को मंदिर जाएं और मिठाई का दान करें।
मंगलवार के दिन बजरंग बाण का पाठ करें।
अपने घर या आसपास नीम का पेड़ लगाएं और उसकी सेवा करें।
हर मंगलवार को बंदरों को केला खिलाएं।
साथ ही हर समय अपने साथ लाल रुमाल रखें।
महीने में कम से कम एक बार रक्तदान अवश्य करें।
मंगल ग्रह के बीज मंत्र “ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नमः” का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।
मंगल ग्रह से संबंधित चीजों का दान करें।
जन्म कुंडली में मंगल ग्रह को शांत करने और उसके अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए ऑनलाइन मंगल ग्रह शांति पूजा करवाएं।