Festival

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पहली कथा

एक समय की बात है, एक गांव में एक युवक नामकरण संस्कार के लिए गुरु के पास गया। युवक के पिता ने उसे एक सम्मानित गुरु का चयन करने को कहा था। वे युवक के पिता गुरु के द्वारा उनके पुरखों और धार्मिक गुरु वंदना करने का प्रभावी तरीका जानना चाहते थे।

युवक ने गुरु के पास पहुंचते ही उन्हें अपने पिता के संकल्प के बारे में बताया और उनसे गुरु पूजा और आशीर्वाद प्राप्त करने की भी मांग की। गुरु ने युवक को ध्यान से सुना और उन्हें अपनी कठिनाइयों के बारे में बताया। गुरु ने कहा, “मेरे द्वारा प्राप्त किया गया ज्ञान आपके अंतिम समस्या का समाधान करेगा। लेकिन इसके लिए आपको एक महीने तक मेरे साथ गुरुकुल में रहना होगा और विवेक और आचरण में सुधार करना होगा।”

युवक ने गुरु के आदेश का पालन किया और एक महीने तक गुरुकुल में रहकर अध्ययन किया। उसके अंतिम दिन, गुरु ने उसे बुलाया और उसे आशीर्वाद दिया। गुरु ने कहा, “अब तुम मेरे शिष्य हो और तुम्हारा नाम ‘गुरुप्रेम’ होगा।”

युवक ने गुरु के पास पहुंचते ही उन्हें धन्यवाद दिया और अपने पिता के पास लौट गया। उसके पिता ने खुशी से उसे गले लगाया और कहा, “तूने एक सच्चे गुरु की पहचान की है और उसके मार्ग पर चलना सीखा है। गुरु तेरे जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाएगा और तुझे सभी धार्मिक और सामाजिक गुणों को प्राप्त करने में सहायता करेगा।”

इस कथा से प्रकट होता है कि गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु के आदर्श के प्रतीक होता है, जो शिष्य को ज्ञान के मार्ग पर चलने में मदद करता है और उसे सही दिशा में आगे बढ़ाने की शक्ति प्रदान करता है।

यह भी पढ़ें: जया पार्वती व्रत 2023: जानिए तिथि, समय और अनुष्ठान

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी दूसरी कथा

गुरु पूर्णिमा कथा अत्यंत महत्वपूर्ण एक पवित्र पर्व है जो हिंदू धर्म में मनाया जाता है। इस पर्व का उद्देश्य गुरु की महत्ता और आदर्शता को समझाना है और उन्हें धन्यवाद देना है। गुरु पूर्णिमा पर हिन्दू भक्त अपने गुरु को श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं।

एक बार की बात है, आदि शंकराचार्य अपने एक शिष्य के साथ गुरु का महत्व सिद्ध करने के लिए एक यात्रा पर निकले। वे एक गांव पहुंचे और वहां एक विद्यालय में एक प्राचार्य के रूप में जाने का निर्णय लिया।

प्राचार्य ने आदि शंकराचार्य को उत्साहपूर्वक स्वागत किया और उन्हें एक प्रश्न पूछा, “क्या आपके गुरु ने आपको शिक्षा दी है?”

आदि शंकराचार्य ने उसे देखा और कहा, “मेरे गुरु ने मुझे अनमोल शिक्षा दी है, लेकिन वह कहीं नहीं हैं।”

प्राचार्य ने हैरान होकर पूछा, “वे कहां हैं?”

आदि शंकराचार्य ने बताया, “मेरे गुरु मेरे भीतर हैं। वे मेरे अंतरात्मा में स्थित हैं।”

प्राचार्य ने विस्मित होकर पूछा, “तो आप ने कैसे उनसे शिक्षा प्राप्त की?”

आदि शंकराचार्य ने कहा, “मेरे गुरु ने मुझे सिर्फ एक वेद मंत्र सिखाया था, ‘तत्त्वमसि’, जिसका अर्थ है, ‘तू वही है’। उन्होंने मुझे यह सिखाया कि मैं आत्मा हूँ और परमात्मा और मैं एक हूँ। उन्होंने मुझे अपनी अनुभूति दिलाई, जिससे मैंने अपने अंतरात्मा को पहचाना और परमात्मा की प्राप्ति की।”

इस कथा से प्रकट होता है कि गुरु का महत्व अत्यंत उच्च होता है। गुरु हमें दिशा देते हैं, ज्ञान का प्रकाश दिलाते हैं और हमें सही मार्ग पर ले जाते हैं। गुरु के आदर्श अनुसरण करने से हम आत्मिक और आध्यात्मिक विकास कर सकते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, गुरु पूर्णिमा पर्व पर हम गुरु के प्रति अपना आदर व्यक्त करते हैं और उनके श्रीचरणों में अपना सर्वस्व समर्पित करते हैं।

अधिक के लिए, हमसे Instagram पर जुड़ें। अपना साप्ताहिक राशिफल पढ़ें।

 2,322 

Share

Recent Posts

  • Zodiac Signs

4 Most Positive Zodiac Sign

29 mins ago
  • Zodiac Signs

4 Most Negative Zodiac Sign

3 hours ago