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सूर्य को जल (अर्घ्य) दिए जाने का कारण व इसकी विधि

सूर्य के कारण ही पृथ्वी पर जीवन सम्भव है। हिंदू धर्म में सूर्य को अत्यधिक महत्व दिया गया है। वैदिक काल से ही सूर्य की उपासना होती रही है, विष्णु पुराण, भगवत पुराण जैसे ग्रंथों में सूर्य उपासना के विषय में विस्तार से बताया गया है। ज्योतिष विज्ञान में सूर्य को प्रधान ग्रह माना गया है, सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है। सूर्य ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य ग्रह पर अन्य ग्रह का बुरा प्रभाव पड़ने पर पित्र दोष लगता है। कुंडली में सूर्य ग्रह की प्रधानता के कारण जीवन में उन्नति का मार्ग खुलता है, स्वास्थ्य उत्तम रहता है, भावनाएँ नियंत्रण में रहती है, अपना कर्तव्य निभाने की प्रेरणा प्राप्त होती है। ऐसे में सूर्य को अर्घ्य देने की विधि और लाभ के बारे में हम इस लेख में चर्चा करेंगे।

सूर्य को जल (अर्घ्य) क्यों अर्पित किया जाता है?

इसके वैज्ञानिक, आध्यात्मिक व ज्योतिषीय कारण है, जिनके विचार से हम इस क्रिया के महत्व को जान अपनी दिन चर्या का नियमित भाग बनाने के लिए प्रेरित हो सकते है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो सूर्य पृथ्वी पर जीवन का मुख्य कारण है। जीवन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसका एक मात्र श्रोत सूर्य है। सूर्य की ऊर्जा को पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण की सहायता से भोजन में परिवर्तित करते है। फिर वह ऊर्जा भोजन चक्र की सहायता से सम्पूर्ण प्राणी जगत का पोषण करती है।

इसलिए सूर्य जो जीवन दाता या सर्व जीवन का पोषक कहना उचित होगा। सूर्य के कारण ही पृथ्वी पर ऋतुओं का निर्माण होता है। वर्षा हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है यह बताने की आवश्यकता नहीं है।

आध्यात्मिक दृष्टि से सूर्य को अर्घ्य दिए जाने का लाभ

आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है, तेज का प्रतीक है। सूर्य के समान स्वयं को तप की ज्वाला में तपाकर सोना बनाने की प्रेरणा ऋषि मुनि सदा लेते रहे है। नियमित ओर कर्तव्य निष्ठ होने की सीख मनुष्य सूर्य से लेते रहे है। हमारा तेज सूर्य के समान हो यह भी आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले योगी जनों की आशा रहती है। सूर्य आध्यात्मिक जीवन के लिए एक प्रेरणा श्रोत हैं।

ज्योतिष में सूर्य को जल अर्पित करने के लाभ

ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से हम चर्चा कर ही चुके है कैसे सूर्य ग्रहों का राजा है और जिसकी कुंडली में सूर्य प्रधान है उसे धन, बल, बुद्धि, समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती।

सूर्य को अर्घ्य चढ़ाने की विधि

सूर्य को अर्घ्य अर्पण करने का सर्वोत्तम समय प्रातः काल सूर्योदय के पश्चात होता है। फिर भी सुबह 8 बजे से पहले सभी आवश्यक नित्य क्रमों से निवृत होकर, स्नान करने के बाद सूर्य को जल अर्पण करें। सूर्य को अर्घ्य चढ़ाने का अर्थ है आप सूर्य देव के प्रति अपना आभार प्रकट कर रहे है इसलिए अपने मन में सूर्य देव के लिए सम्मान और कृतज्ञता का भाव रखकर जल अर्पण करना चाहिए। सूर्य को जल अर्पण पूर्व दिशा की ओर मुख करके करें।

जल में आप पुष्प और चावल भी मिला सकते है। विशेष कर रविवार के दिन लाल वस्त्र धारण कर धूप, अगरबत्ती से पूजा करनी चाहिए। जल चढ़ाने के लिए हो सके तो ताम्बे के बर्तन का प्रयोग करें। सूर्य को जल चढ़ाते समय गायत्री मंत्र ओर उसके पश्चात निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें।

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर, दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर नमोस्तुते।
सप्ताश्वरथमारूढ़ं प्रचंडं कश्यपात्मजम्, श्वेतपद्यधरं देव तं सूर्यप्रणाम्यहम्।।

सूर्य को अर्घ्य चढ़ाने के लाभ

सूर्य को नित्य प्रतिदिन जल अर्पण करने से हमारे मन में उनके प्रति आदर व्यक्त होता है साथ ही मन में परोपकार की भावना का सृजन होता है। सूर्य को जल अर्पण करने की आदत के कारण सुबह सूर्योदय से पहले उठने की रीति सहज ही हमारे जीवन में आ जाति है। सुबह के शुद्ध वातावरण का लाभ भी हमें प्राप्त होता है। सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है, जल अर्पण करने से सभी ग्रहों का अमंगल प्रभाव कम होता है, घर में सुख समृद्धि का वातावरण बनता है। सूर्य हृदय व नेत्र ज्योति का भी कारक है अतः सूर्य को अर्घ्य अर्पण करने से हृदय व नेत्र से सम्बंधित रोग नहीं होते। पृथ्वी पर गिरती जल की धारा को देखने से नेत्रों की ज्योति तेज होते है। जीवन में विघ्नों का नाश होता है, व्यक्ति के कौशल में निखार आता है।

यह भी पढ़ें- स्वस्तिक: जानिए क्या है स्वस्तिक? इसके लाभ एवं महत्व। कब एवं कहाँ बनाएँ?

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