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Swami Vivekananda Jayanti 2023: स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर जानें उनकी कुंडली के योग, जिनके कारण आज भी है वो युवाओं के आदर्श

“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए”

ये शब्द उस एक महान विचारक के थे, जो केवल अपने शब्दों के बल से जनता में देशभक्ति की भावना जागृत किया करते थे, उन्होंने न केवल लोगों में मातृभूमि से प्रेम बल्कि युवाओं को सदमार्ग दिखाने का कार्य भी किया था। हर साल की तरह स्वामी विवेकानंद जयंती 2023 में भी 12 जनवरी, शनिवार को मनाई जाएगी। इतना ही नहीं, स्वामी विवेकानंद जी ने अपने कई विचारों से युवाओं को प्रेरित किया। इसी वजह से आज भी लोग उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। उन्होंने हमेशा हिंदुत्व से संबंधित अपने विचार व्यक्त किए और उसी पर कायम रहे। यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके कारण हिंदू धर्म का मान बढ़ा। हर साल स्वामी विवेकानंद जयंती 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।

भारत का गौरव स्वामी विवेकानंद जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। अपनी प्रखर बुद्धि, वाणी और आध्यात्मिक शक्ति के बल पर उन्होंने पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया। आज भी वह भारतीय युवाओं के मार्गदर्शक हैं। उनके जन्मदिन के अवसर पर 12 जनवरी को देश भर में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। आज हम अपने इस लेख में स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली का अध्ययन करेंगे और जानेंगे कि ग्रहों की स्थिति का उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा था, वह कौन सी स्थितियां थीं, जिन्होंने उन्हें इतना महान शख्स बनाया।

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स्वामी विवेकानंद कुंड़ली का अध्ययन

  • नामः स्वामी विवेकानंद
  • जन्म तिथिः 12 जनवरी 1863
  • समयः 6ः20ः00
  • जन्म स्थानः कोलकत्ता
  • चन्द्र राशि: कन्या राशि
  • नक्षत्र या तारा नक्षत्र: हस्त
  • राशि/ सूर्य राशि (वेस्टर्न): मकर राशि
  • राशि चक्र चिन्ह/ सूर्य राशि (भारतीय): धनु राशि

विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1883 को भारत के कोलकाता राज्य में हुआ था। ऊपर दी गई लग्न कुंडली के अनुसार जब स्वामी जी का जन्म हुआ उस समय ग्रहों के राजा सूर्य लग्न भाव में धनु राशि में विराजमान थे। बुध और शुक्र ग्रह मकर राशि में द्वितीय भाव में स्थित थे। मंगल ग्रह पंचम भाव में अपनी स्वराशि मेष में स्थित थे। केतु षष्ठम भाव में वृषभ राशि में विराजमान थे। चंद्रमा और शनि दशम भाव में कन्या राशि में विराजमान थे। साथ ही बृहस्पति ग्रह तुला राशि में एकादश भाव में विराजमान थे और राहु द्वादश भाव में स्थित थे और गुरु की राशि धनु का लग्न होने से इनमें कई आध्यात्मिक गुण बचपन से ही विराजमान थे।

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वर्गोत्तम कुंडली

वहीं स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली वर्गोत्तम है, क्योंकि सूर्य उनकी नवमांश कुंडली में भी और लग्न कुंडली में भी एक ही राशि में विराजमान है, इसके साथ ही उनका लग्न भी वर्गोतम है। वर्गोत्तम सूर्य व्यक्ति को पवित्र आत्मा देता है। इसके साथ ही ऐसे व्यक्ति में आत्मविश्वास की भी अधिकता पाई जाती है। ऐसे लोग किसी भी कार्य को करने में घबराते नहीं हैं, उन्हें किसी का भय नहीं होता है। स्वामी जी भी बचपन से ही निर्भिक थे। ऐसे लोगों में देश प्रेम की भावना भी देखी जाती है, जो स्वामी जी के अंदर भी थी। इतना ही नहीं, शारीरिक रूप से भी ऐसे लोग हष्ट-पुष्ट होते हैं।

चंद्र और शनि की युति

दशम भाव, जिसे कर्म भाव भी कहा जाता है में मजबूत शनि की स्थिति व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता दिलाती है। जब शनिदेव के साथ चंद्रमा की युति होती है, तो व्यक्ति में अत्यधिक प्रतिभा देखी जाती है। ऐसे लोग आसानी से किसी भी बात को मानते नहीं हैं जब तक कि उनको पूरी तरह से विषय या स्थिति का पता न लग जाए। सुनी-सुनाई बातों पर ऐसे लोग कभी भी यकीन नहीं करते हैं। स्वामी विवेकानंद के अंदर भी यह गुण कूट-कूट कर भरा था, उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस जी की बातों का भी शुरुआत में यकीन नहीं किया था। लेकिन जब उन्हें पूरी तरह से चीजें समझ में आयीं, तो वह उनके शिष्य बने। ऐसे लोग जिस काम को अपने हाथ में लेते हैं, उसे पूरा करके ही दिखाते हैं। स्वामी जी ने भी अपने जीवन काल में ऐसा ही किया।  

कुंडली में बृहस्पति और मंगल की स्थिति

स्वामी जी की कुंडली में बृहस्पति ग्रह एकादश भाव में विराजमान है, जबकि मंगल ग्रह है उनके पंचम भाव में स्थित है। एकादश भाव में गुरु की स्थिति से यह पता चलता है कि व्यक्ति को ज्ञान एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होगी। वहीं पंचम भाव में स्थित मंगल स्वराशि का है, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में यह व्यक्ति को सफलता दिलाएगा। इसके साथ ही ऐसे व्यक्ति को खेलकूद के क्षेत्र में भी सफलता मिलती है।

स्वामी विवेकानंद भी बचपन से काफी प्रतिभाशाली थे, वह आध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ खेलकूद जैसी गतिविधियों में भी हिस्सा लेते थे। एकादश भाव में बृहस्पति ग्रह के होने से स्वामी विवेकानंद के अंदर कला के प्रति भी रुझान था, क्योंकि बृहस्पति शुक्र की राशि में विराजमान है, इसलिए वह अच्छे गायक भी थे। शुक्र को कला, सौंदर्य आदि का कारक ग्रह माना जाता है।

शुक्र और बुध की स्थिति

द्वितीय भाव को वाणी का भाव कहा जाता है और बुध ग्रह संचार एवं वाणी का कारक ग्रह है। द्वितीय भाव में शुक्र और बुध के विराजमान होने से शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इन दोनों ग्रहों के द्वितीय भाव में होने के कारण स्वामी जी में प्रखर वाणी और बातों में स्पष्टता देखी जाती थी और अपनी वाणी, तर्क और ज्ञान के कारण ही वह पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुए और उन्होंने अपने देश का नाम भी पूरी दुनिया में रोशन किया।

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कुंडली में राहु केतु

विवेकानंद जी की कुंडली में केतु छठे भाव में है, जबकि राहु द्वादश भाव में विराजमान है। यह स्थिति भी अनुकूल है।  द्वादश भाव को अचेतन मन से जोड़कर देखा जाता है। अचेतन मन पर पड़ी धूल जब दूर हो जाती है, तो ऐसे में राहु और केतु अच्छे फल देते हैं। स्वामी जी ने भी अपने गुरु की मदद से और योग का सहारा लेकर अपने अज्ञान को मिटा दिया था।

देश का गौरव हैं स्वामी जी

स्वामी विवेकानंद जयंती 2023ः कुल मिलाकर देखा जाए, तो स्वामी विवेकानंद जी की कुंडली आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए बहुत अनुकूल थी। उनका लग्न धनु राशि का था जो कि गुरु की राशि है। इसलिए उन्होंने अपने देश का नाम रोशन किया और भारत को विश्व गुरु की का दर्जा दिलाया। अपनी प्रखर वाणी से उन्होंने पूरे विश्व को चकित किया और अमेरिका इंग्लैंड और भारत के कई प्रांतों में उन्होंने भाषण दिए और लोगों को प्रभावित किया।

आज भी उनके व्यक्तित्व और उनके विचारों पर कई पुस्तकें लिखी जा रही हैं और कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। सिर्फ भारतीय लेखकों ने ही नहीं बल्कि भारत से बाहर की लेखकों ने भी उनके व्यक्तित्व को लेकर और उनके विचारों को लेकर पुस्तकें लिखी हैं। उनके प्रसिद्ध विचारों में से एक है उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक आपको लक्षण मिल जाए आज के समय में उनके द्वारा कही गई यह बात भारत के कई युवाओं के लिए प्रेरणा का काम करती है।

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स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी खास बातें

  • स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।
  • वर्ष 1871 में वह स्कूल गए, जब वह आठ साल के हो चुके थे। इसके बाद उन्होंने 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
  • नरेंद्र नाथ दत्ता ने 25 साल की उम्र में परिवार को छोड़कर साधु बनने का फैसला किया। त्याग के बाद उनका नाम स्वामी विवेकानंद रखा गया।
  • 1881 में, स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में एक दूसरे से मिले। यहाँ, रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि मानव सेवा को कभी भी दान नहीं समझना चाहिए बल्कि इसे ईश्वर की पूजा माना जाना चाहिए।
  • रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात के दौरान, स्वामी विवेकानंद ने उनसे सवाल किया कि क्या उन्होंने भगवान को देखा है। रामकृष्ण परमहंस ने उत्तर दिया कि उन्होंने उन्हें देखा था। वह ईश्वर को उतना ही स्पष्ट रूप से देख सकता था जितना कि वह उन्हें देख सकते था। फर्क सिर्फ इतना था कि वह उन्हें और गहराई से देख सकते थे।
  • जब स्वामी विवेकानंद ने धर्म संसद में अमेरिकियों को भाइयों और बहनों के रूप में संबोधित किया, तो लोगों ने शिकागो के संस्थान में 2 मिनट तक लगातार तालियां बजाईं और यह 11 सितंबर, 1893 को हुआ। इस दिन को आज भी एक ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जाता है।
  • रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1 मई, 1897 को कोलकाता में हुई थी और स्वामी विवेकानंद द्वारा 9 सितंबर, 1898 को बेलूर में गंगा के तट पर रामकृष्ण मठ की स्थापना की गई थी।

स्वामी विवेकानंद जी का निधन

  • स्वामी विवेकानंद को शुगर और अस्थमा था। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि ये बीमारियां उन्हें 40 साल से ज्यादा जिंदा नहीं रहने देंगी। उनकी भविष्यवाणी सच हुई और उन्होंने 04 जुलाई, 1902 को रामकृष्ण मठ में अंतिम सांस ली। उस समय वह सिर्फ 39 वर्ष के थे।
  • उनका अंतिम संस्कार बेलूर में एक नदी के किनारे हुआ। उसी गंगा के उस पार स्वामी विवेकानंद के गुरु माने जाने वाले रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार किया गया था।
  • हर साल, स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है और इसकी शुरुआत 1985 में हुई थी।

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