Uncategorized

स्वस्तिक: जानिए क्या है स्वस्तिक? इसके लाभ एवं महत्व। कब एवं कहाँ बनाएँ?

स्वस्तिक सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण मांगलिक प्रतीक चिन्ह है। किसी भी शुभ कार्य से पहले इस चिन्ह को बनाया जाता है। क्या आप जानते है स्वस्तिक क्या है, क्यों बनाते हैं और इससे क्या लाभ मिलता है ?

◆ स्वस्तिक क्या है?

यह सनातन धर्म का एक सांकेतिक चिन्ह है जिसमें लम्बी और आड़ी रेखा समकोण पर मिला कर एक विशेष तरीके से और आगे बढ़ाई जाती हैं। इसके चारों कोनो में बिंदु लगाए जाते हैं। इस चिन्ह को परमात्मा स्वरुप तथा अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। विश्व भर में इससे मिलते जुलते चिन्ह हजारों वर्ष पहले से उपयोग में लाये जाते रहे हैं।

◆ क्यों बनाया जाता है?

यह स्वस्तिक शब्द दो शब्दों से बना है – सु + अस्ति – इसका अर्थ है – शुभ हो अर्थात मंगलमय, कल्याणमय और सुशोभित अस्तित्व हो। यह शाश्वत जीवन और अक्षय मंगल को प्रगट करता है।

इसे सभी के लिए शुभ, मंगल तथा कल्याण भावना को दर्शाता है। इसे सुख समृद्धि तथा परमात्मा का प्रतीक माना जाता है। अतः शुभ कार्य में सबसे पहले स्वस्तिक बनाया जाता है।

इसके अलावा यह चारों दिशाओं के अधिपति – पूर्व के इंद्र, पश्चिम के वरुण, उत्तर के कुबेर तथा दक्षिण दिशा के यमराज के अभय एवं आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए बनाया जाता है।

ज्योतिष शास्त्र में स्वस्तिक को प्रतिष्ठा, सफलता और उन्नति का प्रतीक माना गया है। इसका प्रयोग धनवृद्धि , गृहशान्ति, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा, क्लेश, निर्धनता से मुक्ति आदि के लिए भी किया जाता है ।

आर्य समाज के अनुसार स्वस्तिक का चिन्ह ब्राह्मी लिपि में लिखा गया ॐ है। जैन धर्म में इसी सातवे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ तथा अष्टमंगल के प्रतीक के रूप में माना जाता है। भगवान बुद्ध के शरीर पर स्वस्तिक चिन्ह होता है।

यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है तथा सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि करता है जिसे वैज्ञानिक तौर पर भी स्वीकार किया गया है।

◆ स्वस्तिक कब और कहाँ बनाया जाता है?

इस चिन्ह को बहुत मंगलकारी माना जाता है अतः सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले इसे स्थापित किया जाता है। इन जगहों पर स्वस्तिक अवश्य बनाया जाता है –

  • किसी भी प्रकार की पूजा में पटे या चौकी आदि पर।
  • पूजा में रखे गए जल कलश पर।
  • नए घड़े में जल भरने से पहले उस पर।
  • गृह प्रवेश के समय या नववधू के आगमन के समय मुख्य द्वार के दोनों तरफ।
  • विभिन्न पर्व और त्यौहार के समय भित्ति चित्रों में।
  • दीपावली के त्यौहार के समय रंगोली तथा बाँधनवार में।
  • व्यापार के बही खाता पूजन में।
  • तिजोरी , गल्ला या अलमारी में।
  • ऑफिस , दुकान , फैक्ट्री आदि के मुख्य द्वार पर।
  • नवजात शिशु के छठे दिन के उत्सव तथा मुंडन संस्कार के बाद।
  • विवाह के समय पूजा वेदी पर वर वधु के मंगल संग की भावना के लिए।

◆ स्वस्तिक का अर्थ

यह चिन्ह मंगल कामना का प्रतीक होने के अलावा भी कई प्रकार के अर्थ और सन्देश देता है। स्वस्तिक की रेखाओं का समकोण पर मिलना जीवन में संतुलन बनाये रखने का सन्देश है। संतुलन के बिना मानसिक और शरीरिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं जो समाज के लिए सही नहीं हैं।

स्वस्तिक की चार रेखाएं इन्हें भी इंगित करती हैं –

  • ब्रह्मा जी के चार मुख
  • युग चार – सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग तथा कलियु।
  • आश्रम चार – ब्रहचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थान तथा सन्यास आश्रम।
  • चार वेद – ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेदतथा तथा अथर्ववेद।
  • वर्ण चार – ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य तथा शुद्र।
  • चार पुरषार्थ – धर्म , अर्थ , काम तथा मोक्ष।

◆ स्वस्तिक का भगवत स्वरुप

इसको भगवान् विष्णु का स्वरुप माना जाता है जिमसे चार भुजाएं विष्णु की चार भुजाएँ मानी जाती है। मध्य का केंद्र बिंदु विष्णु का नाभि स्थल है जहाँ से कमल उत्पन्न होता है, जिस पर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी सुशोभित होते हैं। विष्णु पुराण में स्वस्तिक को सुदर्शन चक्र का प्रतीक माना जाता है।

इस चिन्ह को भगवान शिव का स्वरुप भी माना जाता है जिसमें खड़ी रेखा को ज्योतिर्लिंग के रूप में देखा जाता है जिसका न कोई आदि ही न अंत तथा आड़ी रेखा सृष्टि का विस्तार दर्शाता है। इसे लिंग रूप में निरंतर सृजन और विकास की मूल प्रेरणा समझा जाता है।

यह धन सम्पदा की देवी लक्ष्मी जी का प्रतीक चिन्ह भी कहा गया है, इसलिए जहाँ भी भगवती लक्ष्मी की पूजा आराधना होती है, वहां स्वस्तिक अवश्य अंकित किया जाता है। यदि देवी की मूर्ति या चित्र न हो तो लाल रंग से यह चिन्ह बनाकर उसकी पूजा देवी के रूप में की जाती है।

◆ स्वस्तिक कहाँ नहीं बनाना चाहिए?

इसका प्रयोग अशुद्ध, अपवित्र और अनुचित स्थानों पर नहीं करना चाहिए। कहा जाता कि स्वस्तिक के अपमान व गलत प्रयोग करने से बुद्धि एवं विवेक समाप्त होकर दरिद्रता, तनाव, रोग तथा क्लेश आदि में वृद्धि होती है।

दाहिनी ओर मुड़ने वाली भुजाओं वाला स्वस्तिक दक्षिणावर्त स्वस्तिक तथा बाईं तरफ मुड़ने वाली भुजाओं वाला वामावर्त स्वस्तिक कहलाता है। वामावर्त स्वस्तिक उल्टा होता है जिसे अमांगलिक और हानिकारक माना जाता है, अतः ऐसा स्वस्तिक नहीं बनाना चाहिए।

यह भी पढ़ें- मारण मंत्र- इन मंत्रों से किया जाता है शत्रुओं का नाश

 4,089 

Share

Recent Posts

  • English
  • Vedic
  • Zodiac Signs

6 Zodiac Signs With Unmatched Adventurous Spirits

1 week ago
  • English
  • Vedic
  • Zodiac Signs

4 Zodiac Signs That Are Masters of Communication

1 week ago
  • English
  • Zodiac Signs

3 Zodiac Signs That Are Unusually Independent

1 week ago
  • English
  • Vedic
  • Zodiac Signs

5 Zodiac Signs Who Are Fiercely Loyal Friends

1 week ago
  • English
  • Vedic
  • Zodiac Signs

7 Zodiac Signs Known for Their Magnetic Charisma

1 week ago