भारतीय शास्त्रानुसार होलाष्टक होली दहन से पहले आठ दिनों का वो क्रम है जिसमे कोई भी शुभ काम नही किया जाता है। होलाष्टक फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्ठमी से लेकर होलिका दहन के बीच के आठ दिनों कि अवधि को कहा जाता है। शास्रीय मान्यता के अनुसार होलाष्टक में नामकरण, विद्या आरम्भ, कर्ण छेदन, अन्न प्रासन्न उप नयन संस्कार, विवाह गृह प्रवेश तथा वस्तु पूजन आदि मांगलिक कार्य वर्जित है। होलाष्टक की मान्यता उत्तर भारत मे अधिक मानी जाती है।
होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य न होने के पीछे ज्योतिषीय मान्यता भी है। ज्योतिषशास्त्र अनुसार फाल्गुन माह की अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूनम को राहु उग्र रूप लेकर मलीन हो जाते हैं।
इस कारण से, व्यक्ति गलत निर्णय भी ले सकता है। ऐसा न हो इसलिए इन आठ दिनों में किसी भी शुभ काम का फैसला लेने की मनाही होती है। क्योंकि होली का खुमार होता है और फाल्गुन अष्टमी से आठ दिन व्यक्ति का मस्तिष्क अष्ट ग्रहों की नकारात्मक शक्ति के क्षीण होने पर सहज मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल आदि द्वारा प्रदर्शित की जाती है।
होली के आठ दिन पूर्व होलिका दहन वाली जगह पर गंगा जल छिड़क कर उसे पवित्र कर लिया जाता है और वहां पर सुखी लकड़ी,उपले ओर होली का डंडा स्थापति कर लिया जाता है। तत्पश्चात, होलाष्टक से लेकर के होलिका दहन के दिन तक प्रति दिन उसी जगह कुछ लकड़िया डाली जाती है। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकड़ियों का बड़ा ढेर बन जाता है।
एक कथा के अनुसार भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के अपराध में काम देव को शिव जी ने फाल्गुन की अष्ठमी को भस्म कर दिया था। प्रेम के देवता, कामदेव के भस्म होते ही पूरा संसार शोक के भर गया। इस पर, कामदेव की पत्नी रत्ती ने क्षमा याचना की और आठ दिन का कठिन तप किया। इससे प्रसन्न हो कर, शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवत करने का आश्वासन दिया। इस घटना के बाद, खुशियां मनाने के लिए लोग रंग खेलने लगे।
हिन्दू पुराणों के अनुसार जब दानवो के राजा हिरणाकश्यप ने देखा कि उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु की आराधना में लीन है तो उन्हें अत्यंत क्रोध आया। इस बात पर, उन्होंने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रहलाद को अपनी गोद मे लेकर अग्नि में बेठ जाए। होलिका को यह वरदान था कि वह अग्नि में जल नही सकती है। लेकिन, जब वह प्रहलाद को गोद मे लेकर अग्नि में बैठी तो वह पुरी तरह जल कर राख हो गई। दूसरी तरफ, भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को एक खरोच तक नही आयी। तब से इसे अब तक एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन में लकड़ियों को होलिका समझ कर उनका दहन किया जाता है। इसमें सभी हिन्दू परिवार समान रूप से भागीदार होते हैं।
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