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ब्रह्म मुहूर्त- वैद्यकीय शास्त्रों धर्मों में महत्त्व

ब्रम्ह मुहूर्त का अर्थ

ब्रम्ह मुहूर्त शब्द दो शब्दों से बना हे| एक ब्रम्ह और दुसरा मुहूर्त|ब्रम्ह शब्द के वैदिक शास्त्रों में विविध अर्थ बताये गये है जैसे बडा, आत्मा,भगवान,सर्वश्रेष्ठ आदि|और मुहूर्त का अर्थ होता हे समय, वक्त इत्यादी| तो ब्रम्ह मुहूर्त का अर्थ भगवान का यानि सर्वश्रेष्ठ समय|हमारे पुरे दिन के अलग अलग समय में अलग अलग गुणों का प्रभाव रहता हैं| गुण तीन प्रकार के होते है – सत्व, तमो और रज|

सुर्योदय से पहले १ घंटा ३६ मिनट के समय को ब्रम्ह मुहूर्त कहा जाता हैं| उसके बाद जैसे ही सुर्योदय होता हैं| तो सत्व गुण का समय प्रारंभ होता हैं |वो होता हैं सुबह १० बजे तक| उसके बाद आता हैं १० बजे से लेकर छे बजे तक वह होता हैं रजो गुण का समय|और जैसे ही शाम हो जाती हे उसके बाद तमो गुण का प्रभाव शूरू होता हैं|

आप अगर देखे तो ब्रम्ह मुहूर्त का मतलब यह हे की,जैसे ही हम शरीर को विश्राम देकर सवेरे उठते हैं|तो विश्राम के कारण हमारा मन और बुध्दी दोो ही बहुत ही स्थिर ,शांत हो जाते है|

सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक का समय हम रात्र कहे, तो रात के एक चतुर्थांश भाग को ही ब्रह्म मुहूर्त का समय कहा जाता हैं| साधारणतः यह समय ३.३0 बजे से ५.३0 या  ६ बजे तक या फिर सूर्योदय से पूर्व काल तक रहता है|

ब्रम्ह मुहूर्त के काल में क्या होता है?

पृथ्वी का सूर्य और चंद्रमा से कुछ ऐसा नाता होता हैं| की मनुष्य के शरीर में इस ब्रम्ह मुहूर्त के काल में कुछ विशिष्ट प्रकार के शारिरीक बदलाव होते हैं| वैद्यकीय शास्त्रों में यह भी बताया गया है की, हमारे शरीर के मलपदार्थ जैसे, पेशाब में ,इस समय काल में कुछ विशिष्ट गुणधर्म मिलते हैं, जो की दिन में किसी भी गुण के काल में नहीं मिलते |
इस विषय में बहुत सा संशोधन किया जा चुका हे| हमारा संपूर्ण शरीर विशिष्ट अनुकूल वातावरण में स्थिर रहता हैं| इस समय में नैसर्गिक रिती से पिनियल ग्रंथी ओं में मेलाटोनिन नामक रासायनिक द्रव्य तैय्यार होता हैं| हमे इसका बहुत उपयोग होता हैं| क्यूँ की ब्रह्म मुहूर्त के काल में पिनियल ग्रंथी ओं में यह स्त्राव बढ जाता हैं| इस वजह से हमारे शरीर को एक  स्थिरता प्राप्त हो सकती हैं|

वैद्यकीय शास्त्रों में महत्व

आधुनिक वैद्यकीय शास्त्रो में, मेलाटोनिन द्रव को मानसिक  स्थिती का नियंत्रक कहा गया है|  ब्रह्म मुहूर्त के समय में नैसर्गिक रिती से स्थिरता साध्य होती हैं| इस काल में शरीर और मन का अच्छी तरह मेल होता हैं| मन के चंचल स्वभाव और नकारात्मक विचारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है| मन को केंद्रित किया जा सकता है|  इसलिये ब्रह्म मुहूर्त को बडा महत्त्व पूर्ण माना गया है|

इस समय, आध्यात्मिक साधना करने से सर्वाधिक लाभ प्राप्त होतं हैं|ब्रह्म मुहूर्त का मतलब ‘ब्रम्ह पूर्ती काल ‘| हम उसे इस प्रकार भी जान सकते है, की यह समय ऐसा होता हैं,  जिसमे मनुष्य स्वयम् को पुनश्च जान सकता है| आप खुद में ही ब्रम्ह को पाकर खुद का आत्म परीक्षण कर सकते हैं|

भगवद् गीता में समय का विश्लेषण

६ बजते ही सुर्योदय होता हे, वह ज्ञान का समय होता हैं| जैसे की हमारे धार्मिक ग्रंथ भगवद् गीता में बताया गया है| सत्व गुण का लक्षण हे ज्ञान और प्रकाश| रज गुण का लक्षण हे लोभ और अनेक प्रकार की ईच्छाये होती हैं| तो इस रजोगुण के समय में मनुष्य अपने जीवन का निर्वाह करने हेतु अनेक प्रकार से विचार, कार्य कलाप करते रहता हैं| तम गुण के लक्षण हे आलस्य,निद्रा और अज्ञान| और तमोगुणी समय में इनका प्रभाव शूरु होता हैं| इस प्रकार हमारे शास्त्रों में अलग अलग समय को अलग अलग गुणों में विभक्त किया गया है|

सभी धर्मों में ब्रम्ह मुहूर्त का महत्त्व

ब्रम्ह मुहूर्त के काल को सिर्फ सनातन धर्म ही नहीं, बल्की मुस्लिम धर्म में भी इसी समय में अजान पढते हे| गिरिजा घरों में और बौद्धिक धर्म में भी ब्रम्ह मुहूर्त में ही प्रार्थना की जाती हैं| मतलब आध्यात्मिक और पवित्र जीवनशैली के विकास हेतु यह समय बहुत ही महत्त्व पूर्ण हे|

यह भी पढिये – विवाह योग में क्या बन रही हैं बाधा?

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