भारतीय संस्कृती में १६ संस्कार बताये गये है, जिसमे विवाह संस्कार का भी समावेश किया हुआ हैं|कई बार विवाह होने में बहुत सारे संकटों का सामना करना पडता है और कभी कभी शादी होने के बाद रिश्ते भी तुट जाते हैं|ऐसे लोगों को वैवाहिक जीवन का सुख नहीं मिल पाता|यह सब कुछ ग्रहों के प्रभाव की वजह से होता हैं|
ज्योतिष शास्त्र के नुसार कुंडली में सप्तम स्थान की वजह से ही विवाह में देरी होती हैं और विघ्न भी आते हैं| कई बार इसी वजह से शादी होकर भी अच्छा जीवन साथी नहीं मिल पाता | कुंडली में सप्तम गृह यह दर्शाता हैं कि विवाह कब होगा| किस दिशा में विवाह होने की ज्यादा संभावना हैं | जब एक से अधिक अशुभ ग्रहों का सप्तम स्थान पर प्रभाव रहता हैं ,तब विवाह होने में देरी होती हैं|
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अगर किसी ग्रह की दशा या अंतर्दशा विवाह के लिये उपयुक्त हो तो गोचर ग्रहों की भी जानकरी आवश्यक रहती हैं| जिसमे गुरु व शनी इनके सहाय्य की भी जरुरत रहती हैं| जब गुरु और शनी के गोचर से , सप्तम की दृष्टी से या उनकी स्थिती के संबंध से कुंडली में विवाह योग उत्पन्न होता हैं| तब जिस स्थान से ग्रहों का गोचर भ्रमण रहता है उस स्थान से संबंधित अष्टकवर्ग रेखा भी होनी चाहिए| अन्यथा गोचर ग्रहों की अनुकूलता होने से भी विवाह होने में देरी होती हैं| चंद्रमा व मंगल का संबंध पंचम या नवम स्थान होना चाहिए| शुभ व सुखी वैवाहिक जीवन के लाभ व व्यय स्थान भी शुभ रहने चाहिए| षष्ठ और दशम स्थान भी विवाह में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं|
सप्तम स्थान से यह निष्कर्ष निकलता हैं की आपका विवाह किस उम्र में और किस दिशा में होने की संभावना हैं|
चंद्रमा ,शुक्र, बुध व गुरु यह सभी शुभ ग्रह माने गये है| इनमे से कोई भी एक ग्रह यदि सप्तम स्थान पर हो तो विवाह में आने वाली सभी बाधाये समाप्त हो सकते हैं|अगर इन ग्रहों से अलग कोई और ग्रह भी हो तो विवाह में परेशानीया आती हैं|
राहू, मंगल, रवि , शनि इत्यादी अशुभ ग्रह माने गये है| इनमे से कोई भी ग्रह यदि सप्तम स्थान से किसी भो प्रकार से संबंध हो तो वह विवाह के लिये अशुभ ही माना जाता है|
सप्तम स्थान पर यदि बुध ग्रह हो तो विवाह जल्दी होने की संभावना होती हैं| यदि बुध ग्रह पर अन्य कोई भी ग्रह का प्रभाव ना हो तो २० से २५ की आयु तक विवाह का योग आता हैं|
अगर किसी के कुंडली में सप्तम स्थान पर शुक्र, गुरु या फिर चंद्रमा हो तो २४ से २५ की उम्र के बीच विवाह संपन्न हो सकता है|
गुरु यदि सप्तम स्थान पर हो तो विवाह उम्र के २५ वे साल में होती हैं| गुरु पर यदि रवि या मंगल का प्रभाव हो तो साल दो साल का विलंब हो सकता है |और अगर राहू या शनी का प्रभाव हो तो २ साल से भी ज्यादा का विलंब हो सकता है|
यदि शुक्र ग्रह सप्तम स्थान पर हो और उसपर यदि रवि या मंगल का प्रभाव हो| तो भी विवाह 2 साल तक आहे जा सकता है| इसीप्रकार शुक्र पर यदि शनि का प्रभाव हो तो एक साल और राहू का प्रभाव हो तो शादी को दो साल तक विलंब हो सकता है|
चंद्रमा सप्तम स्थान पर होकर उसपर मंगल या रवि इनमे से कोई भी एक ग्रह का प्रभाव हो| तो शादी उम्र के छब्बिसवे साल में होने की संभावना रहती हैं | इसीप्रकार शनि का प्रभाव मंगल पर होने से विवाह में तीन साल तक विलंब हो सकता है| और राहू का प्रभाव हो तो सत्ताईस वे साल की उम्र में विवाह हो सकता है पर उसमे में भी बहुत से विघ्न आते हैं|
मंगल, राहू और केतु इनमे से कोई एक ग्रह भी यदि सप्तम स्थान पर हो| तो वैवाहिक जीवन का सुख मिलने में बहुत देर होती हैं|
मंगल दोष यह भी एक बडा कारण हैं| जिसकी वजह से भी विवाह में देरी होती हैं| और वैवाहिक जीवन में स्त्रीसुख का नाश भी करता हैं |
सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह या गुरु, शुक्र इत्यादी ग्रहों की दृष्टी आने से विवाह की समास्याये नष्ट होने में मदद होती हैं|सप्तमेश केंद्र या त्रिकोण में रहने से भी विवाहकारक होता हैं|भाग्येश सप्तम स्थान पर या फिर सप्तमेश भाग्य में रहने से भी विवाह हो जाता है|
यदि चतुर्थेश अधिपती की युती में या फिर उसकी दृष्टी में हो तो जीवनसाथी व्यावसायिक रहता हैं |
इसीप्रकार यदि सप्तमेश द्वितीय, पंचम, भाग्य, दशम या लाभ के स्थान पर हो और चंद्रमा, बुध या फिर शुक्र इनमे से कोई भी सप्तमेश हो|तो साथीदार बिझनेस में होशियार रहता है|
यदि अपने कुंडली में चतुर्थेश द्वितीय या फिर व्यय स्थान पर हो|तो जीवनसाथी नोकरी करने वाला रहता है|अगर सप्तमेश और चतुर्थेश नवमांश कुंडली में उच्च या स्वराशीस हो|परस्पर मिलाव या फिर दृष्टी में हो तो जोडीदार नोकरी में उच्चाधिकारी के पद पर रहता है|
यदि शनि का संबंध चतुर्थ से होता हो तो साथीदार नोकरी करने वाला रहता है|
कुंडली में सप्तम स्थान पर अगर राहू या केतु हो| सप्तमेश सप्तम, अष्टम या फिर व्यय स्थान पर हो|और नवमांश कुंडली में बलहीन हो तो जीवनसाथी सामान्य नोकरी करने वाला रहता है |
जन्म कुंडली में सप्तमेश अगर चतुर्थ, पंचम, भाग्य या दशम स्थान पर स्थित हो तो साथीदार अच्छे परिवार से रहता है |
यदि सप्तमेश उच्च स्थान का हो और केंद्र में या फिर त्रिकोण में स्थित हो|तो जीवनसाथी शिक्षित, धनवान व प्रतिष्ठित युक्त रहता है|
भगवान शंकर के साथ माता पार्वती का भी पूजन करे| माता पार्वती का पूजन विशेषतः कन्या ओं के लिये हैं|हर रोज विघ्नहर्ता गणेश एवं रिद्धी सिद्धीचे पूजन करे|विशेषतः गुरुवार के दिन भगवान श्रीविष्णू और लक्ष्मीदेवी का एकत्रित पूजन करे|विवाह में बाधा उत्पन्न करने वाले ग्रह गुरु, शनि और मंगल इन सभी ग्रहों के उपाय करे|
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