देव दीपावली यथा विशिष्ट रूप से देवताओं की दीपावली। खासकर भारत के पूर्वांचल, वाराणसी में मनाये जाने वाला ये पर्व हर साल काशी में मनाये जाने वाले पर्वों में से सबसे ख़ास है। कहते हैं देव दीपावली पर काशी के घाट पर कुछ अलग ही माया होती है। देव दीपावली के त्यौहार पर काशी का विशालकाय रविदास घाट हो या शव दहन के लिए प्रसिद्ध राजघाट, सभी हज़ारों दियों की मनमोहक रौशनी से जगमगा उठते हैं।
सनातन धर्म के पंचांग/ कैलेंडर के पवित्र कार्तिक माह के अंत में हर साल पूरा देश देव दीपावली का उत्सव मनाता है। इसके साथ ही, यह त्यौहार कार्तिक पूर्णिमा के नाम से भी प्रसिद्ध है। भक्तों के अनुसार, कार्तिक माह का महत्व ग्रह और नक्षत्रो से भी अधिक है। साल 2020 में देव दीपावली अथवा कार्तिक पूर्णिमा का त्यौहार 30 नवंबर को मनाया जायेगा। इस साल देव दिवाली का पर्व और गुरुनानक देव जयंती का उत्सव एक ही तिथि को मनाया जायेगा। इस कारण से यह तिथि न सिर्फ हिन्दू धर्म बल्कि सिख धर्म के व्यक्तियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दिवाली के ठीक पंद्रह दिनों के बाद मनाया जाने वाली देव दीपावली पर गंगा नदी के किनारे देवी-देवताओं के सम्मान में एक लाख से ज़्यादा दीपक प्रज्ज्वलित किये जाते हैं। प्राचीन मान्यता के अनुसार, इस पर्व पर देवता गण धरती पर गंगा स्नान के लिए आते हैं। साथ ही, प्राचीन काल में इस तिथि पर भगवान विष्णु ने अपना मतस्य अवतार धारण किया था। यदि इतिहास के पन्ने पलटें तो देव दीपावली के पर्व पर दिए जलने की परंपरा सबसे पहली बार १९८५ में काशी के पंचगंगा घाट पर हुई थी।
प्राचीन कथाओं के अनुसार, त्रिपुरासुर नामाक एक दैत्य से सभी लोकों में प्रत्येक व्यक्ति भयभीत था। साथ ही, स्वर्ग लोक पर भी आतंक फैला दिया। उसने प्रयाग में कठिन तप किया और ब्रह्मा जी के दर्शन देते ही उनसे वरदान माँगा की उसे कोई स्त्री-पुरुष, देवता, दैत्य, जीव-जंतु, निशाचर या पंक्षी न मार पाए। इस वरदान के साथ, वह अमर हो गया और अत्याचार फ़ैलाने लगा। यथा, कार्तिक पूर्णिमा की तिथि को महादेव शंकर ने प्रदोष काल में अर्धनारी रूप में त्रिपुरासुर का वध कर दिया।
मिथिला पंचांग के अनुसार, कार्तिका पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त मंगलवार १२ नवम्बर को रात्रि 7:13 बजे तक है। तथा ज्योतिषियों द्वारा अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 :12 बजे से 11 :55 बजे तक बताया गया है।
कार्तिक माह को दामोदर के नाम से भी जाना जाता है जो की स्वयं भगवान विष्णु के नामों में से एक है। इस माह में पुण्य की महत्वता श्रेष्ठ है। तथापि, प्रत्येक व्यक्ति को यह शुभ कार्य अवश्य करने चाहिए-
देव दीपावली पर्व पर कशी के दश्मेश्वर घर पर आरती और जगमगाते दीपों की सुंदरता की चर्चा पुरे विश्व में है। हलाकि, इसके अलावा भी घाट पर आरती और कशी का प्रत्येक घर दीपक की ज्योति से चमकता है। प्रति वर्ष, लगभग १००,००० तीर्थयात्री नदी के तट पर दीपों के साथ गंगा नदी दर्शन हेतु जाते हैं। साथ ही, घाट पर २१ युवा ब्राह्मण पुजारियों एवं २४ युवा महिलाओं द्वारा आरती की जाती है। तत्पश्चात, पूरी नगरी मंत्रो के उच्चारण और शंखनाद की ध्वनि से मंत्रमुग्ध हो उठती है।
पूर्णतः वाराणसी के पर्यटन पर केंद्रित गंगा महोत्सव प्रति वर्ष पांच दिनों के लिए मनाया जाता है। प्रबोधनी एकादशी से प्रारम्भ हो कर कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले इस पांच दिवसीय महोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष अक्टूबर या नवंबर माह में होता है। इन पांच दिनों में काशी देश-विदेश से आये हर पर्यटक का समपूर्ण ह्रदय के साथ स्वागत करती है और अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है। महोत्सव के दौरान, अनेक कार्यक्रम जैसे शिल्प मेला, शास्त्रीय संगीत, नौका दौड़ इत्यादि का आयोजन भी होता है। महोत्सव के आखरी दिन अनेकों दिए गंगा घाट पर प्रज्ज्वलित किये जाते हैं और इसी के साथ समारोह का समापन होता है।
कार्तिक पूर्णिमा तिथि 2019- 12 नवंबर 2019
पूर्णिमा तिथि आरंभ: ११ नवंबर 2019– शाम ०६ बजकर ०२ मिनट
पूर्णिमा तिथि समापन: १२ नवंबर 2019– शाम ०७ बजकर ०४ मिनट तक
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