मंगली दोष का विचार कुडली मिलान के अंतर्गत किया जाता है। मंगल दोष को कुज दोष , भौम दोष , मांगलिक दोष आदि नामों से भी जाना जाता है। दक्षिणी भारत में इसे कलत्र दोष के नाम से जाना जाता है। यदि किसी जातक की कुंडली मंगली दोष से प्रभाबित है तो उसे मांगलिक कहा जाता है।
वर-वधु की कुंडली मिलान के समय मांगलिक विचार किया जाता है। यदि, वर-वधु की कुंडली में 1 ,4, 7, 8 व 12 वें भाव में मंगल स्थित हो तो मंगली दोष होता है। इस स्थिति में दाम्पत्य जीवन में बाधाएं आ सकती है।
किसी भी जातक के जीवन में यह समस्या तब ही होगी जब मंगल किसी भी शुभ ग्रह के प्रभाव में नहीं होगा। यदि शुभ ग्रह का प्रभाव बुध, गुरु, शुक्र की युति यादृष्टि हो तो दाम्पत्य जीवन घातक नहीं होगा। परन्तु, दक्षिण भारत में द्वितीय भावगत मंगल को भी मांगलिक माना जाता है।
इस कारण वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भावों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। प्रथम भाव सेस्वस्थ्य, द्वितीय भाव से धन, कुटुंब,वाणी व मारक क्षमता को दर्शाता है। साथ ही, चतुर्थ भाव सुख व भौतिक सुख सुविधों व सप्तम भाव काम व दाम्पत्य जीवन को भी दर्शाता है।
इस प्रकार अष्टम भाव वधु के लिये सौभाग्य या पति व स्वयं की आयु का भाव है। यथार्थ, द्वादश भाव शैय्या सुख का कारक है l साथ ही, फलित ज्योतिष ग्रन्थों में दिए गये मंगल दोष परिहार मंगल दोष को नष्ट नहीं कर सकते है। हालाँकि, इसकी तीव्रता में कमी ला सकते है। फिर भी, कुछ विशेष परिस्थितियों में मंगल दोष जातक की कुंडली में स्वत न्यून या निरस्त हो सकता है।
यदि मंगल चार राशियों अर्थात मेष, कर्क, तुला व मकर में हो तो मंगल दोष नहीं होता है। यदि, जातक की जन्म कुण्डली में मंगल स्वराशि मेष व वृश्चिक या उच्च राशि मकर में स्थित हो अथवा नवांश में स्वराशि या उच्च राशिगत हो तो मंगलदोष समाप्त हो जाता है।
साथ ही, यदि मंगलदोष्क्त भावों में मित्र ग्रह सूर्य ,चंद्र व गुरु की राशियों में स्थित हो, तो भीमंगलदोष नहीं होता है। यदि मंगल कर्क राशि में नीच राशिगत या सूर्य राशि सिंह में हो तो भी मंगल दोष निरस्त हो जाता है। अस्त, वक्री या बुध की राशिओं मिथुन , कन्या में स्थित होने से मंगल दोष निरस्त हो जाता है। मंगल दोषोक्त भावों के स्वामी जातक की कुंडली में केन्द्रया त्रिकोण में स्थित होने से मांगलिक दोष नहीं होगा।
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कुंडली में केवल बली मंगल की स्थिति ही दोषपूर्ण होती है। अथवा कुंडली में निर्बल मंगल दोषरहित होता हैI यदि जातक की कुंडली में केन्द्र भावों में चन्द्रमा हो तो भी मंगलदोष निरस्त हो जाता है। ऐसे ही कुछ औरअवस्थाओं में मांगलिक दोष निरस्त हो जाता है। जैसे, मंगल कुंडली के प्रथम भाव में मेष राशी में, चतुर्थभाव में वृश्चिक राशी में, सप्तम भाव में मकर या वृष राशीमें अष्टम भाव में कर्क या कुम्भ राशी में और द्वादश भाव में धनु राशी में स्थितहोने से भी मांगलिक दोष निरस्त हो जाता है।
अर्थात जन्म कुंडली में मंगल अनिष्टस्थानों में बलबान होकर पड़ा होगा तभी वह दोषकारी होगा। अन्यथा, दुर्बल होने, शुभ ग्रह से दृष्ट होने या सूर्य के साथ अस्त या वक्री होने पर दोषकारी नहीं होगा। उत्तर भारतीय परम्परा के अनुसार प्रथम भावविराजित मंगल होने पर मंगल दोष होता है। हालाँकि, दक्षिण भारत की परम्परा के अनुसारद्वितीय भाव में मंगल की स्थिति भी मांगलिक दोष का कारण माना जाता है।
परन्तु आधुनिक ज्योतिषी लग्न वद्वितीय भाव में स्थित मंगल को मंगली मानते है। आधुनिकविद्वानों का मतानुसार पुरुष व स्त्री दोनों की कुण्डली में भिन्न भिन्न भावों में मंगलदोष माना है। स्त्री की कुण्डली में प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम,सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव में मंगल की स्थितिमंगलदोष निर्मित होता है।
स्त्री के लिए अष्टम भाव का महत्व 7वें भाव से कम नहीं है, क्योंकि अष्टम भाव से स्त्री के मांगल्य का विचारकिया जाता है। अत: पति सुख के लिये कन्या की जन्म कुंडली में अष्टम भाव का महत्व सप्तम भाव से अधिक होता है। साथ ही, पुरुष की कुण्डली में सप्तम भाव व स्त्री की कुण्डली में सप्तम व अष्टम भाव मंगल द्वारा प्रभावित होते है।
इस प्रकार 12 लंग्नो (मेष से मीन) तक केवल 72 स्थितियों में मंगल की स्थिति मंगल दोष का निर्माण करती है। यदि द्वितीयभाव में स्थित मंगल को भी लिया जाये कुंडली में 60 स्थितियों में मंगल दोष निरस्स्त हो जाता है। अत: मात्र 12 स्थितियों में ही मंगलदोष प्रभावी रहता है।
मंगल दोष के सैधान्तिक पक्ष के साथ साथ व्यावहारिक व पारंम्परिक पक्ष का भी अध्ययन करना अति आवश्यक है। व्यवहार में मंगल दोष के साथ अनेक मान्यताएं, अवधारणाऐ , नियम व शोध हो चुकें हैं। यथार्थ, इस बारे में हमारे विद्वानों के मतानुसार मंगलदोष के निर्धारण के लिए लग्न कुंडली के साथ चन्द्र एवम शुक्र कुंडली से मंगली दोषका निर्धारण किया जाता है।
इसमें चन्द्रमा व शुक्र जिस भाव में स्थित हो उस भाव को लग्न मानकर चन्द्र व शुक्र कुंडली का निर्माण किया जाता है। हमारे कुछ विद्वानों की मान्यता है की मंगल दोष सप्तमेश से भी देखा जाना चाहिए।अर्थात सप्तमेश कुण्डली में जिस भाव में स्थित हो उससे 1,4,7,8 व 12 वें भाव में मंगल हो तो मंगल दोष होता है। परन्तु, वर्तमान में यह मान्यता स्वीकार नहीं है।
ज़्यादातर, देखा गया है कि यहाँ हर दुसरे या तिसरे जातक को कहा जाता है कि आपकी कुंडली में मंगल दोष हैl जबकि, हमारे अनुभव के अनुसार पाया गया है कि लगभग लाख मे से दस जातक हैं जो पूर्ण मांगलिकदोष से प्रभावित होते हैं।
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