श्वास तो सभी जीवित प्राणी लेते है लेकिन इसके महत्व को जान इस प्रक्रिया को अपने लिए अमृत बनाया जा सकता है। प्राणायाम का अर्थ है श्वसन को नियंत्रित करना। यह तो आपने देखा होगा हमारी साँस हमारी मनोस्थिति और कार्य पर निर्भर करती है। भय या उत्तेजक अवस्था में हमारा श्वसन बहुत तीव्र गति से चलता है ओर जब हमारा मन शांत होता है या हम विश्राम कर रहे होते है तो साँसो की गति धीमी होती है। योग के प्रथम चरण में भी साधक को अपनी साँसों पर नियंत्रण करने का अभ्यास कराया जाता है। योगी को अपनी साँसों पर नियंत्रण का ऐसा अभ्यास हो जाता है की जीवन भर प्रत्येक श्वसन के साथ ऊर्जा एकत्रित होती रहती है।
श्वसन नियंत्रण मात्र योगियों के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए आवश्यक है। यह तो सब जानते है कैसे क्रोध आने पर हमारा मन उत्तेजित हो जाता है हम स्वयं से नियंत्रण खो देते है। ऐसी स्थिति में क्या कभी आपने अपनी साँसो की गति पर ध्यान दिया है। हमारी अनियंत्रित मनोस्थिति का पहला सूचक हमारी उखड़ी साँसें होती है। हम बिना किसी बात के अपनी बहुमूल्य ऊर्जा व्यर्थ गँवा देते है। साँसो का संतुलन मनुष्य के जीवन का संतुलन है। क्रोध आने पर यदि अपना ध्यान अपनी अनियंत्रित श्वसन को सामान्य करने में लगा दिया जाए तो, हम क्रोध के चंगुल के छूट जाएँगे साथ ही अपनी बहुमूल्य ऊर्जा को बचा कर पछतावे से भी बच जाएँगे।
क्रोध में तो मनुष्यों ने अपना सम्पूर्ण जीवन एक क्षण में नष्ट कर दिया है ऐसे में यदि मात्र अपनी साँसों पर ध्यान केंद्रित करने से हमें शांति की निरंतर प्राप्ति हो सकती है तो ऐसा करना ही चाहिए।
जब तक शरीर में श्वास है तब तक प्राण है, श्वसन का हमारे शरीर पर कितना प्रभाव पड़ता है यह समझना बहुत सरल है। यह तो सभी जानते है की जल भोजन ओर वायु यह मनुष्य को जीवित रखने की लिए कितने आवश्यक है इनके से वायु के बिना तो कुछ मिनटों में जीवन लीला समाप्त हो जाती है। लेकिन यदि कोई मनुष्य जनता है कैसे श्वसन को अपने लाभ के लिए प्रयोग किया जाए तो यही श्वसन की क्रिया अमृत बनकर अनेक रोगों से रक्षा करती है। श्वसन प्रक्रिया धीमी होनी चाहिए। दो श्वास के मध्य अंतराल होना चाइए। ब्रह्म मुहूर्त में खुली हवा में श्वास पर पाना ध्यान केंद्रित करने से आत्मिक ऊर्जा का संचय होता है।
नियमित अभ्यास से हमारे फेफड़े शक्तिशाली होंगे, हमारे शरीर की कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन प्राप्त होगा। मस्तिष्क को सर्वाधिक ऑक्सिजन की आवश्यकता होती है इसीलिए प्राणायाम का सर्वाधिक लाभ भी मस्तिष्क को प्राप्त होता है, हमारी स्मरण शक्ति बढ़ती है, विषम परिस्थितियों में हमारा मन स्थिर रहता है। हार्मोंस का पर्याप्त मात्रा में बनाना ओर उससे सम्बंधित ग्रंथियों को स्वस्थ रखने में भी प्राणायाम से लाभ प्राप्त होता है। पाचन क्रिया सुचारु कार्य करती रहती है। बालों का झड़ना व सफ़ेद होना बंद हो जाता है। शरीर का शायद हाई ऐसा कोई अंगतंत्र हो जहां प्राणायाम का प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त ना होता हो।
प्राणायाम सरल भाषा में तो श्वास को नियंत्रित रूप में शरीर के भीतर लेना और नियंत्रित रूप से बाहर छोड़ना ही है, किंतु हम शरीर के किस भाग को इसका लाभ पहुँचना चाहते है ओर किस प्रकार प्राणायाम करते है इसके आधार पर प्राणायाम के अनेक प्रकार है। जैसे भस्त्रिका प्राणायाम, कपालभाति प्राणायाम, बाह्य प्राणायाम, अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, उज्जायी प्राणायाम आदि। ऐसे ही अनेको प्राणायामों में विषय में पतंजलि योग शास्त्र में वर्णित है। किसी एक विधि को अपनी आवश्यकता अनुसार चयन कर यदि उस विधि में ही सिद्धि प्राप्त कर ली जाए तो लाभ जीवन को परिवर्तित करने वाला होगा।
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