ज्योतिष शास्त्र सभी 9 ग्रहों की चाल, 12 राशियों के गुण और 27 नक्षत्रों की गणना के आधार पर ही किसी घटना के बारे में भविष्यवाणी करता है। ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों की अपनी-अपनी भूमिका होती है। सभी का गहन रूप से विश्लेषण कर किसी नतीजे पर पहुंचा जाता है। ज्योतिष गणना में ग्रहों की विशेष भूमिका होती है। सभी 9 ग्रहों में कुछ ग्रह शुभ तो कुछ अशुभ परिणाम देते हैं।
आम धारणा के अनुसार कुछ ऐसे ग्रह हैं जिनका नाम आते ही लोग डर कर कांपने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अगर ये ग्रह कुंडली के अशुभ भाव में आकर बैठ गए तो जीवन में भारी मुसीबते आनी आरंभ हो जाएंगी। इन ग्रहों में राहु, केतु, शनि और मंगल का नाम आता हैं। ज्योतिष शास्त्र में इन्हें पापी और अशुभ फल देने वाला ग्रह माना गया है। हालांकि ये ग्रह हमेशा अशुभ फल ही देते हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता।
कभी-कभी ये पापी और अशुभ ग्रह कुंडली में ऐसे भाव में आकर बैठ जाते हैं जहां से जातक के जीवन में वैभव और तमाम तरह की खुशियां मिलने लगती हैं। जातक रंक से राजा बन जाता है।
आज हम आपको राहु ग्रह के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल राहु 18 महीनों के बाद 23 सितंबर को राहु गोचर 2020 वृषभ राशि में होने वाला है। इस के दौरान, राहु वृषभ राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। राहु के राशि परिवर्तन से सभी जातकों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ने वाला है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु एक ऐसा ग्रह है जो अचानक फल देता है। यह फल शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी।
इसी कारण से राहु का नाम सुनते ही लोग परेशान हो उठते हैं। राहु की चाल से कुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग बनते हैं। राहु की वजह से लोगों की बुद्धि भ्रमित हो जाती है। लेकिन कुछ ऐसी स्थितियां भी बनती है जब राहु न सिर्फ सताता है बल्कि राजपाठ भी दिलाता देता है। राहु की वजह से व्यक्ति सभी तरह का सुख और वैभव को प्राप्त करने लगता है। राहु की जब- जब भी किसी अन्य ग्रह के साथ मिलकर युति बनती है तब शुभ और अशुभ दोनों तरह का योग बनता है।
राहु सभी ग्रहों में ऐसा ग्रह है जो हमेशा उल्टी चाल से ही चलता है। इसकी कोई भी अपनी राशि नहीं होती है। यह जिस राशि के साथ जाता है उस राशि के स्वामी ग्रह के हिसाब से फल देता है। अगर राहु किसी जातक की कुंडली में छठे भाव में आकर बैठता है और कुंडली गुरु लग्न की है तो अष्टलक्ष्मी नाम का शुभ योग बनाता है।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि अगर किसी की कुंडली में ऐसा योग बनता है तो राहु उसके जीवन को धन-दौलत और सुख संपदा से परिपूर्ण कर देता है। अष्टलक्ष्मी योग बनने से राहु का नकारात्मक प्रभाव खत्म हो जाता है और व्यक्ति को शुभ फल मिलने लगता है।
अष्टलक्ष्मी योग की ही तरह लग्नकारक शुभ योग भी राहु के द्वारा बनता है। जब राहु कुंडली के दूसरे, नौवें और दसवें भाव में होता और जातक की कुंडली मेष, कर्क और वृष लग्न की होती है तब लग्नकारक शुभ योग बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी यह योग बनता है तब जातक की कुंडली से राहु का अशुभ प्रभाव खत्म हो जाता है। ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी रहती है और जीवन में ज्यादा परेशानियां नहीं मिलती है।
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली के छठे, तृतीय या फिर एकादश भाव के अलावा लग्न में मौजूद राहु पर शुभ ग्रहों की नजर पड़ रही होती है तो व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होती है। हर मुश्किल काम बहुत ही आसानी के साथ हो जाता है
कपट योग जब शनि और राहु के साथ किसी की कुंडली के ग्यारहवें और छठे भाव में आकर बैठते हैं तो कपट योग बनता है। इस योग के बनने से व्यक्ति किसी का विश्वासपात्र नहीं बन पाता है।
राहु की वजह से यह सबसे खराब योग बनता है। जिन जातकों की कुंडली में यह योग बनता है उसे प्रेत संबंधी तमाम तरह की परेशानियां होती है।
जब गुरु और राहु की युति बनती है तब कुंडली में गुरु चांडाल योग बनता है। यह योग बहुत ही अशुभ योग कहलाता है। इस योग से राहु व्यक्ति को बहुत ज्यादा परेशान करता है।
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