राहु 9 ग्रहों में से एक छाया ग्रह है। अक्सर राहु को दुख का घोतक या अशुभ ग्रह माना जाता है। परंतु यह हमेशा बुरा फल नहीं देता यदि ये ग्रह कुंडली में उत्तम हो तो जातक को इससे अच्छे परिणाम मिलते हैं। राहु का प्रभाव सभी 12 भावों में अलग-अलग होता है।
जब भगवान विष्णु की प्रेरणा से देव-दानवों ने क्षीर सागर का मंथन किया तो उसमें से बहुमूल्य रत्नों के अतिरिक्त अमृत भी निकल। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवों व दैत्यों को मोह लिया और अमृत बांटने का कार्य स्वयं ले लिया तथा पहले देवताओं को अमृत पान कराना आरम्भ कर दिया। स्वरभानु नामक राक्षस को संदेह हो गया और वह देवताओं का वेश धारण करके सूर्यदेव तथा चन्द्रदेव के निकट बैठ गया।
विष्णु जैसे ही स्वरभानु को अमृतपान कराने लगे सूर्य व चन्द्र ने विष्णु को उनके बारे में सूचित कर दिया। क्योंकि वे स्वरभानु को पहचान चुके थे। भगवान विष्णु ने उसी समय सुदर्शन चक्र द्वारा स्वरभानु के मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। पर इस से पहले अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले में चली गयी थी जिस से वह सर तथा धड दोनों रूपों में जीवित रहा। सर को राहु तथा धडृ को केतु कहा जाता है।
ज्योतिष में राहु ग्रह को एक पापी ग्रह माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहु ग्रह को कठोर वाणी,अधर्म, दुष्ट कर्म, त्वचा के रोग, जुआ, यात्राएं, चोरी, धार्मिक यात्राएं आदि का कारक कहते हैं। जिस व्यक्ति की जन्म पत्रिका में राहु अशुभ स्थान पर बैठा हो, अथवा कमज़ोर हो तो यह जातक को इसके नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में इस ग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन मिथुन राशि में यह उच्च होता है और धनु राशि में यह नीच भाव में होता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु ग्रह मजबूत होता है थो इससे जातक को बहुत अच्छे परिणाम मिलते है। इससे व्यक्ति को अध्यात्म,शांति तथा मोक्ष का रास्ता मिलता है। परंतु इसके विपरीत अगर कुंडली में यह ग्रह कमज़ोर होता है तो इसे नकारात्मकता तथा असफलता का घोतक माना जाता है।
यदि राहु प्रथम भाव में स्थित हो तो जातक कार्यो को करने मे कुशल, दूसरों के प्रभाव से अपनी इष्ट-पूर्ति करने वाला, निचले स्वभाव का , स्वजन-वचक, सन्तान हीन नीच कर्म करने वाला , कष्ट-सहिष्णु, अत्यधिक कामी, स्त्रियों के द्वारा कार्य साधन करने वाला, कुकर्मी, धर्म का वेश धर कर अधर्म करने वाला मित्र-विरोधी भी हो सकता है । वक्र चाल रखने वाला और धूर्त होता है । ऐसे जातक जीवन में असफल रहते हैं।
पहले भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
अगर यह ग्रह द्वितीय भाव में हो तो जातक मिथ्या-वादी, अभिमानी, निर्भय, बकवादी, पुत्र-चिन्ता से युक्त,स्व-कुटुम्ब का विनाश देखने वाला, दुःख भोगने वाला,भ्रमण-प्रिय, कठोर-स्वभाव का, संग्रही, धन की रक्षा करने वाला, परदेश में धन कमाने वाला, अल्प-सन्ततिवान्, कृपण, कटु-भाषी, राजकोप-भाजन तथा अल्प-धनी होता है।इस भाव में राहू कई बार जातक को अकस्मात एवं बहुत धन सम्पत्ति भी प्राप्त करा देता है ।
दूसरे भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
कुंडली का तीसरा घर जिसे पराक्रम भाव भी कहते हैं, इस भाव को राहु का पक्का घर माना जाता है। इस भाव में छाया ग्रह हो तो जातक पराक्रमी, अत्यन्त प्रभावशाली, महायशस्वी, प्रवासी, ऐश्र्यवान्,स्मरण शक्ति में कमी वाला, अल्प-सन्ततिवान्, मातृ-सुखहीन,बलवान, राजमान्य, अनेक शत्रुओं वाला, परन्तु शत्रुजयी, परम प्रतापी, विलासी, विद्वान,दृढ़-विवेकी, योगाभ्यासी, अरिष्ट नाशक, सब प्रकार के सुखों से युक्त, भाग्योदय के समय अत्यधिक धन प्राप्त करने के कुशल, विलासी, विद्वान, भाई तथा पशुओं की मृत्यु होना भी सम्भव, पिशाच भय रहित होता है।
तीसरे भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
जातक की कुंडली में राहु चतुर्थ भाव में रहने पर वह असंतोषी, दुःखी, व्यर्थ – विवादी, अभिमानी,क्रूर एवं मिथ्याचारी, अल्पभाषी, यात्री, परदेश वासी, बन्धु हीन, मातृ सुखहीन, मित्र विमुख, नीच संगी, कम बोलने वाला बनाता है। इसी के साथ पेट की बीमारी बनी रहती है एवं माता को कष्ट रहता है।
चौथे भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
अगर राहु जातक की कुंडली में रहने पर भाग्यशाली बनाता है। शास्त्रों एवम पुराणों को समझने वाला रहता है परंतु इसी के साथ मति मंद रहती है,अधिक परिश्रम करके भी कम लाभ पाने वाला, विद्याघ्ययन में रूचि वाला, धर्म-कर्म से रूचि रखते हुए भी यश न पाने वाला, कुल तथा धन का नाशक, कुमार्गगामी, मित्र रहित, धनहीन एवं कुटुंब का धन समाप्त करने वाला निकलता है।
पांचवें भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
जातक की कुंडली में राहु छठवें भाव में रहता है तो जातक सभी रोगों से मुक्त,बहादुर एवं बड़े-बड़े कार्य करने वाला रहता है। अरिष्ट निवारक के साथ शत्रुहन्ता एवं कमर दर्द से पीड़ित रहता है।
छठवे भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
जातक की कुंडली में यह ग्रह यदि सप्तम भाव में हो तो व्यापार में जातक को हानि, दुष्कर्म की प्रेरणा, अहंकारी,चतुर के साथ लोभी एवं दुराचारी बनाता है। सबसे ज्यादा प्रभाव गृहस्थ पर पड़ता है। स्त्री कष्ट अथवा स्त्री नाशक बनाता है।
सातवें भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
इस भाव में राहु हो तो जातक कभी लाभ और कभी हानी पाने वाला, धन के रहते हुए भी उसका सुख न पाने वाला, केवल एक ही बार भाग्योदय वाला तथा बारम्बार हानि पाने वाला स्वजनों से दूर रहने वाला, अपवाद तथा क्लेश पाने वाला, पापकर्म करने वाला मायावी, ढ़ीठ, परदेशवासी, क्रोधी,दुर्बल अथवा पुष्ट शरीर वाला होता है।
आठवे भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
इस भाव में राहु हो तो जातक सामान्यतः धर्मानुरागी, धर्म-कर्म करने वाला लेकिन कई बार उसको भंग कर अधार्मिक बन जाने वाला , व्यर्थ परिश्रमी, भाग्यहीन, अपवित्र, बन्धुजनों होते हुए भी दुर्बद्धि, अल्प सुखभोगी, तीर्थाटन करने वाला, प्रवासी तथा द्ररिद्र होता है। उसकी पत्नी अधार्मिक होती है।
नौवें भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
इस भाव में छाया ग्रह हो तो जातक अत्यन्त अभिमानी, सदैव म्लेच्छों की संगति में रहने वाला, परधन-लोभी, चिन्तातुर, दीन, मलिन, व्यर्थ विवादी, मन स्ताप से जलने वाला स्त्री की मर्जी के अनुसार चलने वाला, लोक निन्दित, चोर, दुष्ट, क्रूर तथा अपमानित होता है।
दसवे भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
जातक की कुंडली में यह ग्रह यदि ग्यारहवें भाव में अनियमित कार्यकर्ता, मितव्ययी,विद्वान, म्लेक्ष्छ शासक द्वारा सम्मानित, ऐश्वर्यशाली, विनोदी, परिश्रमी, व्यवसायी, विवाद-विजयी, राजद्वार से प्रतिष्ठा एवं लाभ पाने वाला, अच्छा वक्ता बनाता है। इसी के साथ आलसी, क्लेशी एवं चंद्रमा से युक्ति हो तो राजयोग दिलाता है।
ग्यारवे भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
जातक की कुंडली में यह ग्रह यदि द्वादश भाव में हो तो चिंताशील एवं विवेकहीन बनाता है। परिश्रमी, कलह-प्रिय सज्जनों का द्वेषी, दुर्जनों का मित्र, नेत्र-रोगी, चर्म-रोगी, पाँव में चोट खाने वाला, सेवा-कर्म करने वाला, उद्योग करते रहने पर भी सिद्धि न पाने वाला, सेवक के साथ जातक कामी होता है। मूर्ख जैसा व्यवहार करता है।
बारहवें भाव में अशुभ राहु का उपाय:-
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