धर्म और मान्यताएं दोनों तरह से काम कर सकती हैं। यह राज्य के संसाधनों को उत्पादक क्षेत्रों में परिवर्तित कर सकती हैं अथवा ईमानदारी और दृढ़ता की संस्कृति को विकसित कर सकती हैं। यदि भारत का इतिहास टटोला जाए तो, धर्म से जुड़े घटनाक्रम भारतीय राजनीति को गहराई से प्रभावित करते रहे हैं। प्रश्न यह है कि क्या धर्म वृद्धि में एक निर्धारित कारक हो सकता है? जवाब है कि, यह दोनों तरीकों से काम कर सकता है। जहाँ कुछ मुद्दों पर राज्य के कुछ उपेक्षित हिस्से सकारात्मक परिवर्तन का लुत्फ़ उठाते हैं और ईमानदारी व दृढ़ता की संस्कृति की उत्त्पत्ति होती है।
आर्थिक विकास के विभिन्न अस्थिर कारण हैं। किसी भी विकासशील देश में उन्नति का कोई निश्चित प्रतिरूप नहीं होता। यथा, विकास के लिए स्पष्ट रूप से, अनेक तरह के विचारण आवश्यक हैं। हलाकि, किसी भी देश को सशक्त बनाने और एक जुट करने में उस देश कि संस्कृति और परंपरा का विशिष्ट योगदान होता है। यथा, विकास हेतु सांस्कृतिक निर्धारकों को शामिल करने के लिए व्यापक होना चाहिए।
किसी भी देश की संस्कृति व्यक्तिगत परिणामों को प्रभावित करती है जैसे ईमानदारी, मेहनत करने की इच्छा और किसी भी विदेशी के लिए निष्कपटता। किसी भी देश की आर्थिक व्यवस्था में उस देश की पर्यटन सुविधाओं और पैसा जो विदेशी यात्रा और रहने के लिए अपने खर्चों में योगदान करते हैं का बहुत बड़ा योगदान होता है। यथा, देश के सकारात्मक दृष्टिकोण को ही ध्यान में रखते हुए कोई भी व्यक्ति किसी भी देश में पर्यटन हेतु जाता है। यदि हमारी संस्कृति अपने ही लोगों द्वारा नजरअंदाज होगी या नकारत्मक दृष्टि से देखि और विस्तृत होगी तो फलतः देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा।
देश-विदेश के कई शोधकर्ताओं ने अपनी शोध में पाया कि है जिस भी देश के देशवासी अपने देश के प्रति दृढ भावना रखते हैं, वह शशक्तिकरण के मार्ग पर अग्रसर होता है। उदहारण के लिए, जापान जो की दुनिया भर में सबसे शक्तिशाली देशों में से एक है उसकी सशक्तता के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण वह के लोगो का अपने धर्म में विश्वास, अपनी संस्कृति के प्रति अटूट आदर और अपरिवर्तनवादी स्वभाव है। चाहे वह जापानी भाषा हो या जापानी खाने को ग्रहण करने का तरीका, किसी भी व्यक्ति को एक जापानी कभी अनुष्ठान का पालन न करता हुआ नहीं मिलेगा।
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर के लिए लम्बे समय से विचाराधीन मामले पर फैसला सुनाया, जिसमें देश के उत्तरी हिस्से के लोगों की बड़ी भागीदारी थी क्योंकि यह एक ऐसा विषय था जिसका उनके धर्म और उनके भगवान के साथ सीधा संबंध है। हालाँकि, इस मुद्दे ने देश के कुछ नकारात्मक जंतुओं की कोशिशों के विपरीत, देश के अगल-अलग धर्म के लोगों के बीच सद्भावना का ही रूप दिया।
किसी भी देश का प्रगतिशील होना पूर्णतः उसके देशवासियो पर निर्भर करता है। अगर कोई मुझसे पूछे की भारत में इतनी प्रतिभा, कौशल और बुद्धिमतता के बावजूद क्या है जो इस बेहतर बनाने से पीछे रखता है तो मेरे अनुसार वो है खुद भारतीय और आधुनिकता और पश्चिमी सभ्यता की पहचान के बीच उनका भ्रम।
आज अधिकतर भारतीय युवाओं को यह स्वीकार करने में हिचकिचाहट है कि उन्हें अपनी राष्ट्र भाषा बोलने आती है। दूसरी ओर इस ही आयु वर्ग में लोगों को यह बताना बहुत गर्व का विषय लगता है की उन्हें दूसरे देशों की भाषा जैसे अंग्रेजी/इंग्लिश, जापानी, फ्रेंच और स्पेनिश का भरपूर ज्ञान है। अगर हम खुद ही अपनी संस्कृति को भुलाने की इतनी कोशिशें कर रहे तो कोई दूसरा देश और वहां के लोग कब तक हमसे सम्बंधित देश का और वहां के लोगो का सम्मान करेंगे?
हर देश के अपने-अपने सकारात्मक पहलु और दोष हैं। इस प्रकार, एक व्यक्ति को नकारात्मक की उपेक्षा करनी चाहिए और सकारात्मक परिणाम में योगदान करने के लिए सकारात्मक दिशा में काम करना चाहिए। हमारा देश एक शानदार विरासत मूल्य और एक त्रुटिरहित बुद्धि दोनों रखता है। तत्पश्चात, देश की संस्कृति को बस थोड़ी सी स्वीकृति और सम्मान की आवश्यकता है।
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