ज्योतिष में हर भाव का अपना अलग महत्व होता है। इसलिए व्यक्ति के बारे में संपूर्ण जानकारी देने से पहले ज्योतिषी हर भाव पर दृष्टि डालता है। अपने पिछले लेख में हमने आपको प्रथम भाव के बारे में जानकारी दी थी। आज अपने इस लेख में हम आपको बताएंगे कि ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के द्वितीय भाव का क्या महत्व होता है और इससे आपके जीवन के किस पक्ष को देखा जाता है।
कुंडली के द्वितीय भाव को धन भाव कहा जाता है और इससे आपकी आर्थिक स्थिति के अलावा आपके पारिवारिक जीवन और वाणी के बारे में विचार किया जाता है।
जिस जातक की कुंडली का द्वितीय भाव मजबूत होता है यानि इसमें शुभ ग्रह विराजमान हों या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति की वाणी में तेज देखा जाता है। ऐसा जातक अपनी वाणी से समाज में परिवर्तन ला सकता है। इसके साथ ही यह भाव धन और परिवार का भी होता है इसलिए द्वितीय भाव की मजबूती व्यक्ति को धन और पारिवारिक जीवन में सुख प्रदान करती है। वहीं यदि यह भाव दुर्बल हो तो व्यक्ति अपनी बात को स्पष्टता से नहीं रख पाता और उसे पारिवारिक जीवन मेंं भी परेशानी होती है।
इस भाव से व्यक्ति की दाईं आँख, भोजन, चेहरा आदि के बारे में भी पता चलता है। व्यक्ति के ग्रहण करने की क्षमता या उसके सीखने की गति क्या होगी इसके बारे में भी यह भाव बताता है। इस भाव में यदि शुभ ग्रह जैसे- शुक्र, बृहस्पति विराजमान हैं तो व्यक्ति आकर्षक होता है। ऐसे लोग किसी भी चीज को तुरंत सीख लेते हैं। वहीं यदि यह भाव दुर्बल हो तो किसी भी चीज को सीखने में व्यक्ति को बहुत समय लग सकता है।
यदि किसी जातक की कुंडली में बुध ग्रह मजबूत है, जिसे की वाणी का कारक ग्रह माना जाता है और द्वितीय भाव पर भी शुभ ग्रहों की दृष्टि है तो व्यक्ति कला के क्षेत्र में अच्छा नाम कमा सकता है। ऐसे लोगों की आवाज में मिठास होती है। यह लोग सामाजिक स्तर पर भी अपनी वाणी से लोगों को प्रभावित कर सकते हैं। वहीं बुध यदि पीड़ित हो तो व्यक्ति को बोलने में दिक्कतें आ सकती हैं। ऐसे लोगों को हकलाने की परेशानी भी हो सकती है।
हमारे इस लेख से आपको ज्ञात हो गया होगा कि कुंडली का द्वितीय भाव कितना महत्वपूर्ण होता है। यदि आपकी कुंडली में यह भाव पीड़ित अवस्था में है तो आप ज्योतिषी परामर्श से निदान पा सकते हैं।
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