यदि कोई मनुष्य दुःखी रहता है तो वह उसका ही दोष हैं| क्यूँ की परमात्मा ने हम सबको हर्षोल्हासित रहने की लिये ही इस संसार की रचना की हैं|जब जब जीवन में संकट आते है, तब तब उसका निवारण भी साथ ही जन्म लेता है| हम कल के संकट के लिये आज योजना बनाते हैं|सिर्फ किसी बात के लिये चिंता करने से उसका हल कभी नही निकल पाता | समस्या से बाहर निकलने हेतु चिंतन, मनन यह अत्यंत उपयोगी रहता है |
मनुष्य प्राणी के विचार कभी खत्म नहीं होते| हमेशा विचारों में ही उलझा रहता है| यह उसका स्वभाव ही बन गया है| विचार करना गलत नहीं हैं |परंतु ऐसा कहा जाता है, जब चिंतन चिंता में बदल जाती है, तब गलत विचार जन्म लेते है| कुछ लोग अपना जीवन चिंता में व्यतीत करते हैं, और कुछ जीवनभर चिंतन करते रहते हैं| हजारो लोग चिंता करने में ही अपना समय बिता देते हैं| मात्र, चिंतन कर के जीवन व्यतीत करने वाले दो – चार ही लोग रहते हैं| चिंता करने से क्या दुष्परिणाम रहते हैं| यह हम सबको पता रहता है| परंतु, फिर भी हम चिंता में ही डूबे रहते हैं|
हमारे धर्म शास्त्रों में बहुत से ग्रंथों , साहित्यों और अनेक रचना ओं में चिंता करने के नकारात्मक परिणाम बहुत से तत्त्वज्ञानी यों ने अपने अपने परी से बताये हुंये हैं|भगवद् गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं की भविष्य की चिंता करना व्यर्थ हैं| कारण, भविष्य की चिंता करते हुंये मनुष्य वर्तमान काल का समय ऐसे ही गवा देता है| वर्तमान में जीवन जिने के लिये वह तैय्यार नहीं हो पाता| और इसी वजह से भविष्य का जीवन काल अधिक दुःखदायक बनता है| क्यूँ की वर्तमान काल में केवल चिंता करते रहने में ही अपना सारा समय और जीवन दोनों ही व्यर्थ कर देते है| इसीलिए वर्तमान में वह मनुष्य कभी सुखी नही रह सकता और भविष्य में भी उसे सुख नहीं मिल सकता|
जिस मनुष्य को आत्मज्ञान का परिचय नहीं, वह मनुष्य भगवंत का दिव्य स्वरुप कभी जान पायेगा? और आत्मज्ञान प्राप्ती के लिये चिंता की नही, बल्की चिंतन करने की आवश्यकता रहती हैं|
इसी वजह से हमारे संस्कृती में चिंतन और मनन पर ज्यादा जोर दिया गया है|
ईसे बढाने के लिये बहुत सारे उपाय दिये गये है| चित्त और चेतना इसमे विभिन्नता पाई गयी है| चित्त मनुष्य की विभिन्न वृत्तीयों को नियंत्रित करता हैं और चेतना, चैतन्य प्रज्ज्वलित करने में सहायक होती हैं, यही मनुष्य के जीवन का उद्देश बताया गया है|
चिंतन करने से हमारे विचार सशक्त होकर बुध्दी को तेजस्वी बनने मे भी सहायता करता हैं| मानसशास्त्र के एक संशोधन के अनुसार ऐसा बताया गया है| की, फिकीर करना अगर छोड दिया जाए|तो हम अपने विचारों को और मजबुत बना सकते हैं| चिंता यानी चिता के समान होती हैं| वह मनुष्य के जीवन और विचारों को भस्म करती है| इसीलिये ऐसा कहा जाता है की, चिंतन किजिये|चिंता करने में कोई अर्थ नहीं हैं| लेकीन, जरुरी बातों के लिये चिंता करना आवश्यक भी बताया गया हैं|
हर बात पर चिंता जताना यह मुर्खता का लक्षण माना गया है| किसी भी समस्या का निराकरण करने और विवेकपूर्ण निर्णय लेने हेतु चिंतन यही एकमात्र योग्य और उपयुक्त मार्ग हैं| चिंतन करने वाले इंसान को कितनी भी बडी मुसीबत भी आ जाए, फिर भी वह रास्ता निकाल पाता हैं| जो हो रहा है,उसकी व्यर्थ ही फिक्र करने से बेहतर उसे एक अनुभव मानकर चले| चिंता की अग्नी से बाहर निकलना यही सच्ची बुद्धिमानता हैं| कैसे होगा?, क्या होगा? ऐसे विचार करने से बेहतर हैं की, यह कैसे करना चाहिए? और इसके लिये क्या करना चाहिए? ,यह विचार सर्वश्रेष्ठ रहता हैं|धर्म और अध्यात्म हमे यही मार्ग पर चलना सिखाते हैं| इस मार्ग का अनुसरण करने से अपना जीवन एक अलग ऊचाईं पर ले जाकर समाधान,त्यागता की भावना, चैतन्य प्राप्ती और आनंद की वृद्धी होने में बहुत सहायता होती हैं|
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