बसौड़ा को शीतला अष्टमी के रूप में भी जाना जाता है और यह देवी शीतला को समर्पित एक लोकप्रिय हिंदू त्यौहार है। यह हिंदू महीने ‘चैत्र’ के दौरान कृष्ण पक्ष की ‘अष्टमी’ (8वें दिन) को मनाया जाता है। साथ ही ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह मध्य मार्च से अप्रैल के महीने में आता है। यह त्यौहार आमतौर पर होली के आठ दिनों के बाद मनाया जाता है। लेकिन कुछ समुदायों में यह होली के बाद आने वाले पहले गुरुवार या सोमवार को उत्साह के साथ मनाते हैं। साथ ही कुछ जिलों में हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी की पूजा जाती है। लेकिन इन सभी में चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सबसे अधिक शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं शीतला अष्टमी 2023 (Sheetala Ashtami 2023) में कब है, उसका महत्व, और बसोड़ा व्रत की कथा।
शीतला अष्टमी 2023, 15 मार्च 2023, बुधवार को धूम-धाम से मनाई जाएगी। इस दिन लोग शीतला माता की पूजा करते है और बीमारियों से बचने के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है। आइए देखते हैं 2023 में बसौड़ा शुभ मुहूर्त और पूजन का समय।
सूर्योदय | 15 मार्च 2023 सुबह 06ः39 |
सूर्यास्त | 15 मार्च 2023 शाम 18ः31 |
शीतला अष्टमी तिथी | 15 मार्च 2023, बुधवार |
शीतला अष्टमी पूजा मुहुर्त | 15 मार्च 2023 06ः31 से 18ः29 तक |
शीतला सप्तमी | 14 मार्च 2023, मंगलवार |
शीतला अष्टमी तिथी प्रारम्भ | 14 मार्च 2023 को 20ः22 बजे से |
शीतला अष्टमी तिथी समाप्त | 15 मार्च 2023 को 18ः45 तक |
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शीतला माता को शांति और समृद्धि का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि जो जातक इस अष्टमी के दिन विधि-विधान से शीतला माता का व्रत करता है, उसे चेचक, फोड़े-फुंसी, बुखार आदि रोगों से मुक्ति मिल जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार बसौड़ा चैत्र के महीने में कृष्ण पक्ष के दौरान अष्टमी (आठवें दिन) के दिन होता है।
बसौड़ा मौसम में बदलाव के दौरान मनाया जाता है और इस प्रकार इस विशेष समय अवधि को गर्मी के मौसम की शुरुआत भी माना जाता है। इस अवधि के दौरान कई परिवर्तन होते हैं और ऐसे मौसम परिवर्तन के कारण बहुत सारी बीमारियां और संक्रमण हो सकते हैं। देवी शीतला भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और ऐसे संक्रामक रोगों से सुरक्षा प्रदान करती हैं।
इस अष्टमी का उत्सव उत्तर भारतीय राज्यों राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में बहुत प्रसिद्ध है। साथ ही भारत के राजस्थान राज्य में शीतला अष्टमी का त्यौहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है और कई संगीत कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। लोग इस त्यौहार को अत्यधिक उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से जातक कई बीमारियों से बच सकता हैं।
”शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।।
इस मंत्र का अर्थ है कि शीतला माता सभी की माता है और इस मंत्र के माध्यम से उन्हें नमस्कार करते है।
”ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः”
यह मंत्र माता का पौराणिक मंत्र है। इसकी सहायता से जातक को सभी कष्टों से मुक्ती मिल सकती है।
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
यह माता का वंदना मंत्र है उनकी पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करना लाभदायक होता है।
मां दुर्गा और मां पार्वती की अवतार माता शीतला बेहद आकर्षक हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, मां शीतला एक गधे की सवारी करती हैं और उनके एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में ठंडे पानी से भरा कलश होता है। माता शीतला ने नीम के पत्तों की माला धारण की हुई है और उनके मुख पर विशेष कृपा है। यह अवतार व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त करता है।
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और शीतला अष्टमी से एक रात पहले खाने का सारा सामान तैयार कर लिया जाता है। अगले दिन यानी अष्टमी के दिन महिलाएं मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाती हैं और घर के सभी सदस्य भी वही भोजन करते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार ताजा भोजन करना और गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए।
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शीतला अष्टमी या बसौड़ा के शुभ दिन पर भक्त देवी शीतला की कथा पढ़कर उनकी पूजा करते हैं। शीतला माता को प्रसन्न करने और उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप भी किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला को समाधान और कारण दोनों के रूप में माना जाता है। ये चेचक जैसी महामारियों की देवी हैं।
देवी शीतला के त्यौहार से जुड़ी एक कथा में कहा गया है कि शीतला माता एक यज्ञ से आई थीं। उन्हें भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि जब तक वह अपने साथ विशेष दाल (उड़द की दाल) रखती है, तब तक वह हमेशा मनुष्यों द्वारा पूजी जाएगी। एक बार वह कई अन्य देवताओं के दर्शन कर रही थी और वहां दाल के सभी बीज चेचक के हानिकारक कीटाणुओं में बदल गए। और फिर देवी जिस किसी के भी दर्शन करती, चेचक और ज्वर से पीड़ित हो जाती।
देवताओं ने उन्हें इन कीटाणुओं के साथ पृथ्वी पर आने के लिए कहा। देवी शीतला पृथ्वी पर चली गईं, जहां वे पहली बार राजा विराट के राज्य में पहुंचीं। वहां जाकर माता ने राजा से एक ऐसी जगह की पेशकश की जहां उनकी पूजा की जा सके। चूंकि राजा भगवान शिव के पक्के भक्त थे, इसलिए उन्होनें माता शीतला को भगवान शिव से ऊपर सर्वोच्च स्थान देने से इनकार कर दिया।
इसके बाद शीतला माता क्रोधित और नाराज हो गईं और इस तरह लगभग पचहत्तर प्रकार की चेचकों को मुक्त कर दिया। इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग इस महामारी की चपेट में आए और उनमें से कई की मौत भी हो गई। इस पर राजा विराट को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने देवी से क्षमा मांगी। जिसके बाद देवी ने सभी लोगों को ठीक किया। इसलिए, मान्यता है कि शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए बसोड़ा का व्रत अवश्य करें और इस दिन बासी भोजन का सेवन करना चाहिए।
बसौड़ा शब्द वास्तव में ‘बासी’ को संदर्भित करता है। यह परंपरा है कि बसौड़ा के दिन लोग रसोई में आग नहीं जलाते हैं। इस त्यौहार से एक दिन पहले पूरा खाना तैयार किया जाता है और बसौड़ा के दिन लोग बासी भोजन ही ग्रहण करते हैं। कुछ परिवार या समुदाय बसौड़ा मनाने के लिए कुछ विशेष प्रकार का भोजन भी तैयार करते हैं कुछ खास पारंपरिक मिठाई जैसे गुलगुले या मीठी चीला भी बनाई जाती है।
देश के अधिकतर हिस्सों में यह पर्व शीतला अष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त शीतला माता की पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य, महामारी रोगों से सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, यह चेचक की देवी हैं और इस दिन उनकी पूजा करने से भक्त इस तरह के कष्टों से बच सकते है।
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साल | तिथि |
2024 | 2 अप्रैल 2024, मंगलवार |
2025 | 22 मार्च 2025, शनिवार |
2026 | 11 मार्च 2026, बुधवार |
2027 | 30 मार्च 2027, मंगलवार |
2028 | 18 मार्च 2028, शनिवार |
2029 | 7 मार्च 2029, बुधवार |
2030 | 26 मार्च 2030, मंगलवार |
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