Sheetala Ashtami 2023: जानें शीतला अष्टमी 2023 में कब है, उसका महत्व और बसौड़ा व्रत की कथा

Sheetala Maa, Sheetala Ashtami 2023, Basoda 2023, Basoda festival (शीतला मां, शीतला अष्टमी 2023, बसौड़ा 2023, बसौड़ा त्यौहार)
WhatsApp

बसौड़ा को शीतला अष्टमी के रूप में भी जाना जाता है और यह देवी शीतला को समर्पित एक लोकप्रिय हिंदू त्यौहार है। यह हिंदू महीने ‘चैत्र’ के दौरान कृष्ण पक्ष की ‘अष्टमी’ (8वें दिन) को मनाया जाता है। साथ ही ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह मध्य मार्च से अप्रैल के महीने में आता है। यह त्यौहार आमतौर पर होली के आठ दिनों के बाद मनाया जाता है। लेकिन कुछ समुदायों में यह होली के बाद आने वाले पहले गुरुवार या सोमवार को उत्साह के साथ मनाते हैं। साथ ही कुछ जिलों में हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी की पूजा जाती है। लेकिन इन सभी में चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सबसे अधिक शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं शीतला अष्टमी 2023 (Sheetala Ashtami 2023) में कब है, उसका महत्व, और बसोड़ा व्रत की कथा।

शीतला अष्टमी 2023: तिथि और पूजा का समय

शीतला अष्टमी 2023, 15 मार्च 2023, बुधवार को धूम-धाम से मनाई जाएगी। इस दिन लोग शीतला माता की पूजा करते है और बीमारियों से बचने के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है। आइए देखते हैं 2023 में बसौड़ा शुभ मुहूर्त और पूजन का समय।

सूर्योदय15 मार्च 2023 सुबह 06ः39
सूर्यास्त15 मार्च 2023 शाम 18ः31
शीतला अष्टमी तिथी15 मार्च 2023, बुधवार
शीतला अष्टमी पूजा मुहुर्त15 मार्च 2023 06ः31 से 18ः29 तक
शीतला सप्तमी14 मार्च 2023, मंगलवार
शीतला अष्टमी तिथी प्रारम्भ14 मार्च 2023 को 20ः22 बजे से
शीतला अष्टमी तिथी समाप्त15 मार्च 2023 को 18ः45 तक

यह भी पढ़े: होलिका दहन 2023 तिथि, होलिका दहन, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

शीतला अष्टमी का महत्व 

शीतला माता को शांति और समृद्धि का अवतार माना जाता है। कहा जाता है कि जो जातक इस अष्टमी के दिन विधि-विधान से शीतला माता का व्रत करता है, उसे चेचक, फोड़े-फुंसी, बुखार आदि रोगों से मुक्ति मिल जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार बसौड़ा चैत्र के महीने में कृष्ण पक्ष के दौरान अष्टमी (आठवें दिन) के दिन होता है। 

बसौड़ा मौसम में बदलाव के दौरान मनाया जाता है और इस प्रकार इस विशेष समय अवधि को गर्मी के मौसम की शुरुआत भी माना जाता है। इस अवधि के दौरान कई परिवर्तन होते हैं और ऐसे मौसम परिवर्तन के कारण बहुत सारी बीमारियां और संक्रमण हो सकते हैं। देवी शीतला भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और ऐसे संक्रामक रोगों से सुरक्षा प्रदान करती हैं।

इस अष्टमी का उत्सव उत्तर भारतीय राज्यों राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में बहुत प्रसिद्ध है। साथ ही भारत के राजस्थान राज्य में शीतला अष्टमी का त्यौहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है और कई संगीत कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। लोग इस त्यौहार को अत्यधिक उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से जातक कई बीमारियों से बच सकता हैं।

इस विधि से करें शीतला अष्टमी 2023 पर शीतला मां की पूजा

  • सुबह उठकर साधारण पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर स्नान करें।
  • स्नान के बाद ऑरेंज रंग के साफ कपड़े पहनें और पूजा के लिए दो थाल सजाएं।
  • फिर एक थाली में दही, बाजरा, रोटी, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे, मठरी, आदि रख लें। दूसरी थाली में आटे का दीपक, रोली, कपड़े का टुकड़ा, अक्षत, सिक्का, मेहंदी, आदि रखें। साथ ही एक छोटा गोल धातु का बर्तन ठंडे पानी से भरकर जरुर रखें।
  • शीतला माता की मूर्ति के सामने एक दीपक बिना जलाए रखें और थाली की वस्तुओं को भोग के रूप में अर्पित करें।
  • इसके बाद नीम के पौधे में जल चढ़ाएं और दोपहर में शीतला माता के मंदिर जाएं और फिर से पूजा करें। मां को जल चढ़ाएं और हल्दी का तिलक भी लगाएं।
  • इसके अलावा, मां को मेहंदी लगाएं और नए वस्त्र पहनाएं। साथ ही बासी भोजन का भोग लगाएं। फिर कपूर जलाकर उनकी आरती करें।
  • शीतला अष्टमी 2023 पर हो सके तो उस स्थान पर जाएं, जहां होलिका दहन करा गया हो और वहां पूजन करें।
  • अंत में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें और गाय को भोजन कराएं।

माता शीतला की पूजा करते समय जरुर करें इन मंत्रों का जाप 

”शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।। 

इस मंत्र का अर्थ है कि शीतला माता सभी की माता है और इस मंत्र के माध्यम से उन्हें नमस्कार करते है।

 ”ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः”

यह मंत्र माता का पौराणिक मंत्र है। इसकी सहायता से जातक को सभी कष्टों से मुक्ती मिल सकती है।

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्। 

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।। 

यह माता का वंदना मंत्र है उनकी पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करना लाभदायक होता है।

माता शीतला को क्यों चढ़ाया जाता है बासी खाद्य पदार्थ? 

मां दुर्गा और मां पार्वती की अवतार माता शीतला बेहद आकर्षक हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, मां शीतला एक गधे की सवारी करती हैं और उनके एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में ठंडे पानी से भरा कलश होता है। माता शीतला ने नीम के पत्तों की माला धारण की हुई है और उनके मुख पर विशेष कृपा है। यह अवतार व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त करता है।

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और शीतला अष्टमी से एक रात पहले खाने का सारा सामान तैयार कर लिया जाता है। अगले दिन यानी अष्टमी के दिन महिलाएं मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाती हैं और घर के सभी सदस्य भी वही भोजन करते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार ताजा भोजन करना और गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए।

यह भी पढ़ें: फरवरी 2023 अंक ज्योतिष राशिफल:जानें जन्मतिथि से कैसा रहेगा आपके लिए यह महीना

शीतला अष्टमी के दौरान किए जाने वाले विशेष कार्यक्रम 

  • परंपरा के अनुसार इस अष्टमी के दिन घर में खाना पकाने के उद्देश्य से आग नहीं जलाई जाती हैं। इसलिए लोग अष्टमी से एक दिन पहले ही खाना बना लेते हैं और उसी बासी खाने को अष्टमी के दिन खाते हैं। शीतला अष्टमी के दिन देवी शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने की अनूठी प्रथा है।
  • भक्त सूर्योदय से पहले जल्दी उठ जाते हैं और स्नान करते हैं। वे शीतला देवी के मंदिर जाते हैं और ‘हल्दी’ और ‘बाजरे’ से देवी की पूजा करते हैं। पूजा अनुष्ठान करने के बाद वे ‘बसोड़ा व्रत कथा’ सुनते हैं। ‘रबड़ी’, ‘दही’ और अन्य आवश्यक प्रसाद देवी शीतला को चढ़ाए जाते हैं। लोग अपने से बड़ों का आशीर्वाद भी लेते हैं।
  • देवी को तैयार भोजन अर्पित करने के बाद, शेष भोजन प्रसाद के रूप में पूरे दिन खाया जाता है और इसे स्थानीय भाषा में ‘बसोड़ा’ के नाम से जाना जाता है। भोजन अन्य भक्तों के बीच भी वितरित किया जाता है और जरूरतमंद लोगों को भी दिया जाता है। इस दिन शीतलाष्टक का पाठ करना भी शुभ माना जाता है।

बसौड़ा व्रत की कथा

शीतला अष्टमी या बसौड़ा के शुभ दिन पर भक्त देवी शीतला की कथा पढ़कर उनकी पूजा करते हैं। शीतला माता को प्रसन्न करने और उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप भी किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला को समाधान और कारण दोनों के रूप में माना जाता है। ये चेचक जैसी महामारियों की देवी हैं।

देवी शीतला के त्यौहार से जुड़ी एक कथा में कहा गया है कि शीतला माता एक यज्ञ से आई थीं। उन्हें भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि जब तक वह अपने साथ विशेष दाल (उड़द की दाल) रखती है, तब तक वह हमेशा मनुष्यों द्वारा पूजी जाएगी। एक बार वह कई अन्य देवताओं के दर्शन कर रही थी और वहां दाल के सभी बीज चेचक के हानिकारक कीटाणुओं में बदल गए। और फिर देवी जिस किसी के भी दर्शन करती, चेचक और ज्वर से पीड़ित हो जाती।

देवताओं ने उन्हें इन कीटाणुओं के साथ पृथ्वी पर आने के लिए कहा। देवी शीतला पृथ्वी पर चली गईं, जहां वे पहली बार राजा विराट के राज्य में पहुंचीं। वहां जाकर माता ने राजा से एक ऐसी जगह की पेशकश की जहां उनकी पूजा की जा सके। चूंकि राजा भगवान शिव के पक्के भक्त थे, इसलिए उन्होनें माता शीतला को भगवान शिव से ऊपर सर्वोच्च स्थान देने से इनकार कर दिया।

महामारी का प्रकोप

इसके बाद शीतला माता क्रोधित और नाराज हो गईं और इस तरह लगभग पचहत्तर प्रकार की चेचकों को मुक्त कर दिया। इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग इस महामारी की चपेट में आए और उनमें से कई की मौत भी हो गई। इस पर राजा विराट को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने देवी से क्षमा मांगी। जिसके बाद देवी ने सभी लोगों को ठीक किया। इसलिए, मान्यता है कि शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए बसोड़ा का व्रत अवश्य करें और इस दिन बासी भोजन का सेवन करना चाहिए।

भारत के विभिन्न भागों में बसौड़ा का उत्सव 

बसौड़ा शब्द वास्तव में ‘बासी’ को संदर्भित करता है। यह परंपरा है कि बसौड़ा के दिन लोग रसोई में आग नहीं जलाते हैं। इस त्यौहार से एक दिन पहले पूरा खाना तैयार किया जाता है और बसौड़ा के दिन लोग बासी भोजन ही ग्रहण करते हैं। कुछ परिवार या समुदाय बसौड़ा मनाने के लिए कुछ विशेष प्रकार का भोजन भी तैयार करते हैं कुछ खास पारंपरिक मिठाई जैसे गुलगुले या मीठी चीला भी बनाई जाती है।

देश के अधिकतर हिस्सों में यह पर्व शीतला अष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त शीतला माता की पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य, महामारी रोगों से सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, यह चेचक की देवी हैं और इस दिन उनकी पूजा करने से भक्त इस तरह के कष्टों से बच सकते है।

  • राजस्थान: राजस्थान में विभिन्न स्थानों पर विशेष शीतला माता मेले का आयोजन किया जाता हैं। साथ ही इस दिन लोग इन मेलों में पूरे उत्साह के साथ आते हैं और त्यौहार का पूरा आनंद लेते हैं। वे माता शीतला का आशीर्वाद लेने के लिए उनकी पूजा भी करते हैं। मालपुआ, केर सांगरी, पूरी, रोटी और गुलगुले बसौड़ा के मुख्य खाद्य पदार्थ हैं।
  • मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश के शीतला माता शक्ति धाम में हर साल बसौड़ा के पर्व पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला देश भर से बहुत सारे पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करता है।
  • गुजरात: गुजरात के लोग देवी शीतला की पूजा करते हैं और बसौड़ा का त्यौहार मनाने के लिए विशेष खाद्य सामग्री तैयार करते है।

यह भी पढ़े: इस पूजा विधि से करें महाशिवरात्रि 2023 पर भगवान शिव को प्रसन्न, मिलेगा मनचाहा वरदान

साल 2024 से 2030 के बीच की शीतला अष्टमी तिथि 

सालतिथि 
20242 अप्रैल 2024, मंगलवार
202522 मार्च 2025, शनिवार
202611 मार्च 2026, बुधवार
202730 मार्च 2027, मंगलवार
202818 मार्च 2028, शनिवार
20297 मार्च 2029, बुधवार
203026 मार्च 2030, मंगलवार 

अधिक के लिए, हमसे Instagram पर जुड़ें। अपना साप्ताहिक राशिफल पढ़ें।

 10,096 

WhatsApp

Posted On - February 8, 2023 | Posted By - Jyoti | Read By -

 10,096 

क्या आप एक दूसरे के लिए अनुकूल हैं ?

अनुकूलता जांचने के लिए अपनी और अपने साथी की राशि चुनें

आपकी राशि
साथी की राशि

अधिक व्यक्तिगत विस्तृत भविष्यवाणियों के लिए कॉल या चैट पर ज्योतिषी से जुड़ें।

Our Astrologers

1500+ Best Astrologers from India for Online Consultation