सनातन संस्कृति में श्री राम एवं रामायण, भक्तों के हृदय में विशेष स्थान रखते हैं। वह इसलिए क्योंकि प्रभु श्री राम को मर्यादापुरुषोत्तम की उपाधि प्राप्त है और रामायण जीवन में आनंद, वेग, पीड़ा और ऐसे कई विषयों का विस्तृत विवरण है। प्रभु श्री राम की लीला जन्म, माता जानकी से विवाह और रावण वध तक ही सिमित नहीं है। रामायण से जुड़े ऐसे अनसुने तथ्य भी मौजूद हैं जिन्हें न तो टीवी पर दिखाया गया और न ही सुनाया गया। रामायण से जुड़े यह अनसुने तथ्य केवल आप पवित्र वैदिक ग्रंथों में ही पढ़ सकते हैं। प्रभु श्री राम से और उनकी लीलाओं से अधिकांश लोग परिचित हैं, किन्तु रामायण में ऐसे भी पात्र एवं कथा उपस्थित हैं जिनके विषय में जानने के लिए श्री रामचरितमानस व अन्य ग्रंथों को पढ़ना आवश्यक है।
आइए! रामायण से जुड़े कुछ अनसुने तथ्य को जानने की कोशिश करते हैं जिनसे आप भी परिचित नहीं होंगे-
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सनातन धर्म में श्री राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, लेकिन उनके तीनों अनुज लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के अवतरण के विषय में बहुत कम लोगों को ज्ञान है। राम के छोटे भाई लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना जाता है। आपको बता दें कि क्षीर सागर में जिस आसन पर भगवान विष्णु विराजमान हैं वह भगवान शेषनाग ही हैं। इसके अतिरिक्त भरत और शत्रुघ्न भगवान विष्णु के हाथ में सुदर्शन चक्र और शंख के अवतार हैं।
टीवी पर दिखाई गई रामायण कथा में लक्ष्मण रेखा या माता सीता को बचाने के लिए लक्ष्मण द्वारा खींची गई रेखा का वर्णन किया गया है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि भ्राता लक्ष्मण द्वारा खींची गई रेखा का वर्णन न तो वाल्मीकि रामायण में मिलती है और न ही रामचरितमानस में। किन्तु रामचरितमानस में एक चंद में रावण की पत्नी ने इस छंद का जिक्र किया है।
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सघुवंशी कुल के महान राजा दशरथ के 4 सुपुत्रों के विषय में सभी को ज्ञात होगा। किन्तु इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि श्री राम की एक बहन भी थीं। उनकी बहन सभी भाइयों से बड़ी थी और उनका नाम शांता था। ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि अंग देश के राजा रोमपाद की कोई संतान नहीं थी। इसलिए राजा दशरथ ने उन्हें अपनी पुत्री गोद लेने के लिए प्रदान की।
राजा रोमपाद और उनकी पत्नी वार्शिनी ने पुत्री शांता को बहुत स्नेह से पाला। उन्होंने माता-पिता के सभी कर्तव्यों का पालन किया और शांता का विवाह ऋषि श्रृंग से रचाया।
लंकापति रावण को सभी राक्षसों में सबसे शक्तिशाली माना जाता था और वह सभी असुरों का राजा भी था। यह बात सत्य है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था और यह भी सत्य है कि वह सभी वेदों का ज्ञाता था। रामायण कथा से यह ज्ञात होता है कि रावण को वीणा बजाना बहुत पसंद था लेकिन उसने कभी भी अपनी कला पर विशेष ध्यान नहीं दिया। रावण के ध्वज पर वीणा एक प्रतीक के रूप में अंकित थी क्योंकि वह एक उत्कृष्ट वीणा वादक था।
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वैदिक कथाओं में यह वर्णित है कि माता जानकी पृथ्वी में समा गई थीं। जिसके कुछ समय बाद प्रभु श्री राम ने भी सरयू नदी के जल में समाधि लेकर पृथ्वी का परित्याग कर दिया।
जब श्री राम 14 वर्ष बाद अयोध्या लौटे और राजा बने तब एक दिन यम देवता एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने के लिए उनके पास अयोध्या आए। बात शुरू करने से पहले, यम देवता ने भगवान श्री राम से वचन लिया कि उनके बातचीत के मध्य कोई भी यहां नहीं आएगा। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई उस समय यहां आता है तो आपको(श्री राम को) उसे मृत्यु दंड देना होगा। मर्यादापुरुषोत्तम राम ने यम देव को यह वचन दिया और भ्राता लक्ष्मण से कहा कि बातचीत के दौरान कोई भीतर नहीं आएगा। अगर कोई अंदर आता है, तो उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा।
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लक्ष्मण अपने ज्येष्ठ भाई के आदेश पर द्वारपाल बन जाते हैं। किन्तु उसी समय ऋषि दुर्वासा किसी कारण से आते हैं और राजा राम से मिलने की इच्छा व्यक्त करते हैं। भाई एवं राजा के आदेश का पालन करते हुए लक्ष्मण ऋषि दुर्वासा मना करते है, जिसपर ऋषिवर क्रोधित हो जाते हैं और समस्त अयोध्या को श्राप देने की चेतावनी देते हैं। यह बात सुनकर भ्राता लक्ष्मण अयोध्यावासियों को ऋषि के श्राप से बचाने के लिए स्वयं का बलिदान देना उचित समझते हैं। जिसके उपरांत वह अंदर जाकर श्री राम को ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना देते हैं।
अब श्रीराम के समक्ष दुविधा आ खड़ी होती है क्योंकि उन्होंने राजा के रूप में यम देव को वचन दिया जिसके अनुसार मृत्यु दंड अनुज लक्ष्मण को मिलना था। जब प्रभु श्री राम ने अपने कुलगुरु वशिष्ठ से इस समस्या का समाधान करने के लिए कहा, तब गुरु उन्हें समझाते हैं कि लक्ष्मण को मृत्युदंड नहीं देना चाहिए बल्कि उनका परित्याग करना चाहिए जिससे श्री राम पाप करने से भी बच जाएंगे और भ्राता लक्ष्मण भी जीवित रहेंगे।
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यह सुनकर भाई लक्ष्मण ने श्री राम से कहा कि वह उनका परित्याग न करें। उन्होंने भगवान राम से कहा कि प्रभु से दूर रहने से बेहतर वह मृत्यु को गले लगा लेंगे। किन्तु श्री राम ने भारी मन से लक्ष्मण का परित्याग किया।
कथा के अनुसार एक बार कुम्भकर्ण ने कठोर यज्ञ किया और यज्ञ की समाप्ति के उपरांत, परमात्मा ब्रह्म प्रकट हुए और कुम्भकर्ण से वरदान मांगने के लिए कहा। यह सुनने के बाद देवराज इंद्र डर गए, उन्हें भी था कि कुम्भकर्ण इंद्रासन मांग सकता है। देवराज इंद्र ने माता सरस्वती से मदद करने की विनती की। माता सरस्वती कुंभकर्ण की जीभ पर बैठ गईं और अपनी इच्छा बताते समय कुंभकर्ण ने ‘इंद्रासन’ के बजाय ‘निंद्रासन’ (नींद) माँगा। इसी कारण से कुम्भकर्ण छह माह तक लगातार सोता था।
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