हिंदू कैलेंडर 2023 के अनुसार ‘पूर्णिमा’ वह दिन है, जो दो चंद्र पखवाड़ों के बीच विभाजन को चिह्नित करती है। नई शुरुआत के लिए इस दिन को शुभ माना जाता है। साथ ही ‘पूर्णिमा’ एक नेपाली शब्द है, जिसका अर्थ होता है पूरा चांद। हिंदू कैलेंडर के अनुसार चंद्र चरण तब होता है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में संरेखित होते हैं, जिसे सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली के तालमेल के रूप में भी जाना जाता है। इसी के साथ हिंदू धर्म में पूर्णिमा को काफी महत्वपूर्ण माना जाता हैं। आइए जानते हैं पूर्णिमा 2023 की तिथि सूची और पूर्णिमा व्रत 2023 का महत्व। साथ ही पढ़ें पूर्णिमा से जुड़ी भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कथा।
जब चंद्र मास पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है, तब हिंदू कैलेंडर को पूर्णिमांत चंद्र सौर कैलेंडर कहा जाता है। इस कैलेंडर का पालन हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश राज्यों में किया जाता है। जब चंद्र मास अमावस्या के दिन समाप्त होता है, तो हिंदू कैलेंडर को अमंता चंद्र-सौर कैलेंडर के रूप में जाना जाता है। इस कैलेंडर का पालन असम, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल राज्यों में किया जाता है।
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तिथि | पूर्णिमा व्रत 2023 | पुर्णिमा 2023 | तिथि का समय |
06 जनवरी 2023, शुक्रवार | पौष पूर्णिमा व्रत | पौष पूर्णिमा | 06 जनवरी 02:14 से 07 जनवरी 04:37 तक |
05 फरवरी 2023, रविवार | माघ पूर्णिमा व्रत | माघ पूर्णिमा | 04 फरवरी 21:29 से 05 फरवरी 23:58 तक |
07 मार्च 2023, मंगलवार | फाल्गुन पूर्णिमा व्रत | फाल्गुन पूर्णिमा | 06 मार्च 16:17 से 07 मार्च 10:04 तक |
05 अप्रैल 2023, बुधवार | चैत्र पूर्णिमा व्रत | 05 अप्रैल 09:19 से 06 अप्रैल 10:04 तक | |
06 अप्रैल 2023, गुरुवार | चैत्र पूर्णिमा | 05 अप्रैल 09:19 से 06 अप्रैल 10:04 तक | |
05 मई, 2023 शुक्रवार | वैशाख पूर्णिमा व्रत | वैशाख पूर्णिमा | 04 मई 23:44 से 05 मई 23:03 तक |
03 जून 2023, शनिवार | ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत | 03 जून 11:16 से 04 जून 09:11 तक | |
04 जून 2023, रविवार | ज्येष्ठ पूर्णिमा | 03 जून 11:16 से 04 जून 09:11 तक | |
03 जुलाई 2023, सोमवार | आषाढ़ पूर्णिमा व्रत | आषाढ़ पूर्णिमा | 02 जुलाई 20:21 से 03 जुलाई 17:08 तक |
01 अगस्त 2023, मंगलवार | अधिक पूर्णिमा व्रत | श्रावण अधिक पूर्णिमा | 01 अगस्त 03:51 से 02 अगस्त 00:01 तक |
30 अगस्त 2023, बुधवार | श्रावण पूर्णिमा व्रत | 30 अगस्त 10:58 से 31 अगस्त 07: 05 तक | |
31 अगस्त 2023, गुरुवार | श्रावण पूर्णिमा | 30 अगस्त 10:58 से 31 अगस्त 07:05 तक | |
29 सितंबर 2023, शुक्रवार | भाद्रपद पूर्णिमा व्रत | भाद्रपद पूर्णिमा | 28 सितंबर 18:49 से 29 सितंबर 07:05 तक |
28 अक्टूबर 2023, शनिवार | अश्विनी पूर्णिमा व्रत | अश्विनी पूर्णिमा | 28 अक्टूबर 04:17 से 29 अक्टूबर 01:53 तक |
27 नवंबर 2023, सोमवार | कार्तिक पूर्णिमा व्रत | कार्तिक पूर्णिमा | 26 नवंबर 15:53 से 27 नवंबर 14:45 तक |
26 दिसंबर 2023, मंगलवार | मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत | मार्गशीर्ष पूर्णिमा | 26 दिसम्बर 05:46 से 27 दिसम्बर 06:02 तक |
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हिंदू धर्म में पूर्णिमा बेहद ही महत्वपूर्ण और पवित्र दिन होता है। और इस दिन व्रत रखने से जातक को विशेष लाभ प्राप्त होता है। आपको बता दें कि जो भी जातक पूर्णिमा के दिन व्रत करता है उसके शरीर, मन और आत्मा पर कई तरह के सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। इतना ही नहीं पूर्णिमा के दिन व्रत करने से जातक के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव भी पड़ता है।
वहीं लोग इस पवित्र यानी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। साथ ही पूर्णिमा के दिन व्रत करने से जातक को कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे शरीर के चयापचय को संतुलित करना, एसिड सामग्री को नियंत्रित करना, सहनशक्ति को बढ़ाना और पाचन तंत्र को साफ करना आदि। जो जातक पूर्णिमा 2023 (Purnima) का व्रत रखते हैं, उन्हें पूर्णिमा से एक दिन पहले यानी चतुर्दशी तिथि से ही यह व्रत करना शुरू कर देना चाहिए। हालांकि, यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि पूर्णिमा तिथि किस दिन से शुरू हो रही है। यदि पूर्णिमा चतुर्दशी से शुरू होती है, तो यह निर्भर करता है कि पूर्णिमा मध्याह्न से शुरू होती है या नहीं।
ऐसा माना जाता है कि चतुर्दशी तिथि मध्य काल या मध्याह्न से अधिक नहीं होनी चाहिए, अन्यथा यह पूर्णिमा तिथि को दूषित करती है। पूर्णिमा तिथि को उत्तर भारत में पूरे चांद के रूप में वर्णित किया गया है। हालांकि, दक्षिण के क्षेत्रों में इसकी परिभाषा थोड़ी अलग है। यहां इसे पूर्णिमा के दिन के रूप में जाना जाता है और इस दिन रखे जाने वाले व्रत को पूर्णिमा व्रत कहा जाता है। इस दिन व्रत सुबह से शाम तक किया जाता है। हालांकि, पूर्णिमा व्रत के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मान्यताएं और अनुष्ठान हो सकते हैं।
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हिंदू शास्त्रों में पूर्णिमा के दिन को काफी पवित्र दिन माना जाता है। साथ ही इस दिन किए जाने वाले कार्य भी जातक को शुभ फल प्रदान करते हैं। और पूर्णिमा व्रत को रखते समय जातक भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। इसी के साथ यह पूर्णिमा व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्रमा के दर्शन करने के बाद समाप्त हो जाता है।
एक समय की बात है जब भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी बैकुण्ठ धाम में विराजमान थे। तभी अचानक देवी लक्ष्मी के सुंदर रूप को देखकर भगवान विष्णु मुस्कुराने लगे। और देवी लक्ष्मी को ऐसा लगा कि भगवान विष्णु उनके सौन्दर्य की हंसी उड़ा रहे हैं। माता लक्ष्मी ने इसे अपना अपमान समझा और बिना सोचे-समझे भगवान विष्णु को शाप दे दिया कि आपका सिर धड़ से अलग हो जाएगा।
माता लक्ष्मी के शाप का परिणाम यह हुआ कि एक बार भगवान विष्णु युद्ध करते हुए बहुत थक गए, तो उन्होंने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे धरती पर टिका दिया और उस पर सिर लगाकर सो गए। और कुछ समय बाद जब देवाताओं ने यज्ञ का आयोजन किया, तो भगवान विष्णु को निद्रा से जगाने के लिए धनुष की प्रत्यंचा कटवा दी गई। और धनुष की प्रत्यंचा कटते ही उसका प्रहार भगवान विष्णु की गर्दन पर हुआ, जिसके कारण उनका सिर धड़ से अलग हो गया।
इसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर आदिशक्ति का आह्वान किया। और देवी ने बताया कि आप भगवान विष्णु के धड़ में घोड़े का सिर लगा दें। उसके बाद देवताओं ने विश्वकर्मा के सहयोग से भगवान विष्णु के धड़ पर घोड़े का सिर लगा दिया और इसके बाद भगवान के इस रुप को हयग्रीव अवतार के रुप से जाना जाने लगा। दरअसल माता लक्ष्मी का शाप और इस अवतार के पीछे भगवान विष्णु की अपनी ही माया थी, क्योंकि इस अवतार के जरिए भगवान विष्णु को एक बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य करना था।
आपको बता दें कि इस अवतार के रुप में भगवान विष्णु ने हयग्रीव नाम के एक दैत्य का वध किया, जिसे देवी से यह वरदान प्राप्त हुआ था कि उसकी मृत्यु केवल उसी व्यक्ति के हाथों से हो सकती है, जिसका सिर घोड़े का और बाकी शरीर मनुष्य का होगा। इस प्रकार भगवान विष्णु का यह अवतार लेना सफल हुआ। और भगवान विष्णु ने इस अवतार को लेकर राक्षस हयग्रीव से वेदों को वापस लेकर ब्रह्मा जी को सौंप दिए थे।
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