चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है, क्योंकि आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप माता महागौरी हैं। देवी महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है, इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। तभी से इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी के नाम से जाना जाने लगा।
ऐसा भी कहा जाता है मां की तपस्या से प्रसन्न होने के बाद भगवान शिव ने माता को गंगा स्नान करने के लिए कहा था। जब माता गंगा स्नान के लिए गई तब उनके शरीर से देवी के ही समान श्याम वर्ण की एक दूसरा स्वरूप प्राकट्य हुआ, जिन्हें माता कौशिकी के नाम से जाना जाता है। एक और स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ था, जिसे मां महागौरी कहा जाता है। मां की पूजा भक्ति करने से व्यक्ति को तमाम दुख कष्ट और समस्याओं से निजात मिल जाता है।
कहा जाता है जो लोग नवरात्रि के 9 दिन व्रत नहीं भी कर सकते हैं, उन्हें नवरात्रि में प्रतिपदा और अष्टमी तिथि के दिन व्रत जरूर रखना चाहिए। ऐसा करने से जातक को 9 दिन के व्रत के समान ही फल की प्राप्ति होती है। चलिए जानते है कि नवरात्रि के आठवें दिन कैसे करें माता का पूजन।
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नवरात्रि के आठवें दिन यानी महाष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा की जाएगी। साथ ही चैत्र नवरात्रि 2023 महाष्टमी को महागौरी पूजा 29 मार्च 2023, बुधवार को की जायेगी। माता की पूजा करने से जातक के घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। साथ ही घर में सुख-सांति बनी रहता है।
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नवरात्रि में मां दुर्गा की विभिन्न स्वरूपों के पूजन का अलग-अलग महत्व होता है। कहा जाता है नवरात्रि के आठवें दिन जो भी भक्त दुर्गा मां के आठवें स्वरूप की विधिवत पूजा करता है, उनके सभी रुके और अटके हुए काम पूरे हो जाते हैं। इसके अलावा, इस दिन जो भी सुहागन महिलाएं माता की पूजा करती हैं और देवी को चुनरी अर्पित करती है, उनके सुहाग की उम्र लंबी हो जाती है। साथ ही मां की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में कोई भी दुख, कष्ट और परेशानियां नहीं आती है। इसके अलावा, देवी की पूजा करने से जातक के परिवार में सुख शांति भी बनी रहती है। साथ ही माता की पूजा करने से जातक के घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास बना रहता है और घर में खुशियां सदैव रहती है।
अष्टमी तिथि के दिन माता की पूजा के बाद कन्या पूजन किया जाता है, उन कन्याओं को देवी शक्ति का दिव्य रूप माना जाता है और विशेष नवरात्रि उपहारों से सम्मानित किया जाता है। भक्त उनके पैर धोते हैं और उन्हें हलवा, पूड़ी, काले चने, आदि का भोग लगाया जाता है। साथ ही उन्हें माता का दिव्य रूप मानकर लाल दुपट्टा, चूड़िया और अन्य चिन्ह भेंट किए जाते हैं। इसके बाद जातक कन्याओं से आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं।
मंत्र:
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र:
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
स्तुति:
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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ध्यान मंत्र:
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्॥
पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्॥
स्त्रोत:
सर्वसङ्कट हन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
कवच मंत्र:
ॐकारः पातु शीर्षो माँ, हीं बीजम् माँ, हृदयो।
क्लीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाटम् कर्णो हुं बीजम् पातु महागौरी माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा माँ सर्ववदनो॥
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माता महागौरी से संबंधित दो पौराणिक कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार कहा जाता है कि, देवी महागौरी कन्या अर्थात 16 वर्ष की अविवाहित कन्या थी, जिन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। माता ने कई वर्षों तक घोर तपस्या की और यही कारण है कि उनके त्वचा पर धूल जम गई, जिससे वह काली दिखाई देने लगी। माता की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें विवाह करने का वचन दिया। इसके बाद गंगा नदी के जल से मां पार्वती की मिट्टी और धूल को साफ किया गया, जिसके बाद उनका सफेद रंग पुनः वापिस आ गया और उसके बाद से उन्हें महागौरी नाम से जाना जाने लगा।
देवी से संबंधित दूसरी कथा के अनुसार कहा जाता है कि, शुंभ और निशुंभ नामक दो राक्षस पृथ्वी पर भारी तबाही मचाने लगे थे। उनका अंत केवल माता के हाथो की हो सकता था। तब ब्रह्मा जी की सलाह पर भगवान शिव ने माता पार्वती की त्वचा को काला कर दिया। देवी पार्वती ने अपना रूप रंग पुनः प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की और भगवान से प्रार्थना की।
तब भगवान उनकी प्रार्थना से और तपस्या से प्रसन्न होकर, उन्हें मानसरोवर में स्नान करने की सलाह दी। मानसरोवर झील के पवित्र जल में स्नान करने से माता पार्वती की काली छवि एक बार फिर से श्वेत हो गई। माता के इस रूप को कौशिकी कहा जाता है और आगे जाकर माता के इसी कौशिकी स्वरूप ने शुंभ और निशुंभ दानव का वध किया।
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मेष राशि: मेष राशि: के जातक दुर्गा अष्टमी पर मां दुर्गा कवच का पाठ करें और माता को सिंदूर अर्पित करें।
वृषभ राशि: वृषभ राशि के जातक इस दिन विवाहित महिलाओं को श्रद्धा पूर्वक और अपनी यथाशक्ति अनुसार भोजन जरूर कराएं। साथ ही, उन्हें श्रृंगार की वस्तुएं भेंट के रूप में दें।
मिथुन राशि: मिथुन राशि के जातक मां दुर्गा की विधिवत पूजा करें और उनके बीज मंत्र का जरूर जप करें।
कर्क राशि: कर्क राशि के जातक इस दिन छोटी कन्याओं की पूजा करें और उन्हें भेंट आदि देकर प्रसन्न करें।
सिंह राशि: सिंह राशि के जातक महाअष्टमी के दिन माता को लाल रंग के फूल अवश्य अर्पित करें।
कन्या राशि: कन्या राशि के जातक माता दुर्गा को उनकी प्रिय वस्तुओं का भोग लगाएं और श्रृंगार का सामान भेंट करें।
तुला राशि: तुला राशि के जातक इस दिन देवी के साथ-साथ भगवान गणेश की भी पूजा करें।
वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के जातक दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करें ।
धनु राशि: धनु राशि के जातक विशेष तौर पर इस दिन महिलाओं की सेवा करें और उन्हें भोजन कराएं और उपहार दें।
मकर राशि: मकर राशि के जातक मां दुर्गा की पूजा करें और इस दिन अपने घर में हवन अवश्य करें।
कुंभ राशि: कुंभ राशि के जातक महिलाओं को श्रृंगार का सामान भेंट करें और छोटी कन्याओं को भी प्रसन्न करने के लिए कुछ भेंट अवश्य दें।
मीन राशि: मीन राशि के जातकों को मां दुर्गा का व्रत करना चाहिए और उनके लिए हवन अवश्य करवाए।
चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन कई उपाय किए जा सकते हैं जैसे यज्ञ करना, व्रत रखना, कन्या भोज, संधी पूजा, आदि। माता को लाल चुनरी अर्पित करके या किसी मंदिर में लाल ध्वज देकर देवी की कृपा पा सकते हैं। इसके अलावा, अष्टमी और नवमी तिथि पर शनि का प्रभाव होता है, ऐसे में इस दिन मां की विधिवत ढंग से पूजा करने से शनि दोष से भी छुटकारा मिल सकता है। यथाशक्ति के अनुसार इस दिन महिलाओं को शृंगार का सामान भी अर्पित कर सकते हैं, इससे महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।
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