दिशा अनुसार पूजन – सही दिशा में करेंगे देवी-देवताओं का पूजन तो मिलेगा लाभ
ऐसे कई बातें हैं, जो ये निर्धारित करती हैं, कि हमें देवी-देवताओं की पूजा कैसे करनी चाहिए। उन्हीं बातों में से एक बात है, दिशा। हर देवी-देवता के लिए एक दिशा निश्चित की गई है। अर्थात, उनकी प्रतिमा या तस्वीर को उसी निर्धारित दिशा में रख कर ही, उनकी अराधना करना ज़्यादा शुभ होता है। उदाहरस्वरूप, महादेव के शिवलिंग के वेद का मुख हमेशा उत्तर दिशा के ओर ही इशारा करता है। सनातन धर्म में यही नियम है, की उनका मुख उत्तर दिशा के ओर ही होना चाहिए। इसका अर्थ यह है, कि शिव जी उत्तर दिशा में अपनी ऊर्जा को प्रकाशित करते हैं। ऐसे ही, और भी कई देवी व देवताओं के लिए निर्धारित दिशाएं हैं।
कई देवी व देवताओं के लिए निर्धारित दिशाएं
माता दुर्गा को इस पूरे सृष्टि का आदि शक्ति माना गया है। उन्हें देवी आद्या शक्ति भी कहा जाता है। इसके साथ, यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव, भगवान नारायण, ब्रह्माजी या अन्य देवतागण उन्हीं के शक्ति का प्रयोग कर, सब कार्य करते हैं। इनके लिए भी दिशा निर्धारित है। इनकी पूजा दक्षिण दिशा में ही करें। दक्षिण दिशा में ही, संकटमोचन हनुमान की भी पूजा करनी चाहिए। इसलिए इन दोनों को दक्षिण मूर्ति भी बुलाया जाता है।
यदि आपको धन में भगवान का आशीर्वाद चाहिए, तो यह समझ लीजिए कि उत्तर दिशा, धन की दिशा है। इसलिए धन की देवी माता लक्ष्मी, देवता कुबेर या फिर भगवान गणपति की पूजा उत्तर दिशा में ही करें।
देवो के देव, महादेव के शिवलिंग की पूजा ईशान कोण में करनी चाहिए। ईशान कोण को हिन्दू धर्म और वास्तु शास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह कोण उत्तर व पूर्व दिशा के मध्य बनता है। मान्यता है, कि घर में पूजा रूम को भी इसी कोण में बनाना चाहिए।
भगवान विष्णु की आराधना पूर्व दिशा में की जाती है। यही बात, उनके अवतार में आए श्री राम के दरबार पर भी लागू होती है। उनकी पूजा भी पूर्व के ओर करते हुए, की जाती है। वहीं, राधा-कृष्ण की आराधना भी आप पूर्व दिशा में ही करते हैं। सूर्य की उपासना के लिए भी इसी दिशा का चयन करें।
विशिष्ट पूजाओं के लिए निर्धारित दिशा
यदि आपको किसी शत्रु से परेशानी हो रही है, तो उनसे निजात पाने के लिए, आठवीं महाविद्या, मां बगलामुखी को याद करें। उनकी पूजा करने के लिए, उनकी पीठ को दक्षिण के ओर और अपने मुख को भी दक्षिण दिशा में रखकर, उनकी पूजा करें। यही बात, अगर आप दिक्कतों या शत्रुओं से निजात पाने के लिए, भैरव की आराधना करते समय लागू करें तो बेहतर होगा। अपने मुख को दक्षिण दिशा में रखकर ही भैरव की पूजा करें।
यदि आप रात्रि में तांत्रिक कारणों से देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, तो ऐसे में उनके पीठ और अपने मुख को पश्चिम दिशा में रखकर ही पूजन करें।
अगर आपकी कोई भी साधना, प्रेम के सानिध्य को प्राप्त करने के लिए करते हैं, तो संभवतः आप भगवान कृष्ण या मोहन या उनके किसी स्वरूप जैसे कामदेव की आराधना करते हैं। ऐसे मामले में, उनकी पूजा करते समय, अपने मुख को उत्तर-पश्चिम की ओर ही रखें। इसके साथ ही, यदि आप वशीकरण के लिए भी साधना कर रहे हैं, तो अपना मुख उत्तर-पश्चिम दिशा में ही रखें।
यदि आप ऐसी कोई विशिष्ट पूजन करने जा रहे हैं जिसका उद्देश्य काम का सुख प्राप्त करना हो, तो आप अकसर माता पार्वती और भगवान शिव, या राधा-कृष्ण या फिर देवी रति और कामदेव की पूजा करते हैं। यदि आप इनकी पूजा करते हैं, तो इस उद्देश्य से कर रहे हैं, तो इनकी पीठ और अपने मुख की दिशा दक्षिण-पूर्व रखिएगा। इसके अलावा, यदि कोई भी और पूजा शक्ति अर्जित करने या ऊर्जा प्राप्त करने की इच्छा से की जा रही हो, तो दक्षिण-पूर्व दिशा का पालन करता है।
अनिष्ट करने वाले देवता जैसे यमराज या किसी अन्य ऐसे देवता के पूजन के दौरान, अपना मुख दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर रखें।
हर देवी या देवता के सौम्या व उग्र रूप होते हैं। अर्थात, अगर कोई देवता अपने रौद्र रूप में आ जाए, तो उसके उस रूप को उग्र रूप माना जाता है। देवी महाकाली रूद्र रूप में उग्र देवी हैं परन्तु वास्तविकता में माता वैषणनवी हैं। ऐसे ही, कुछ देवताओं के उग्र रूप को ही ज़्यादा जाना जाता है। उदाहरण के तौर पर, महाकाल के उग्र रूप काल भैरव हैं। संकट मोचन हनुमान के भी रूद्र रूप हैं। यदि आप काल भैरव, लाल भैरव, यम या किसी भी उर्ग देवता का पूजन कर रहें हैं, तो दक्षिण मुखी होकर ही करें।
यदि गलती से घर में भगवान के किसी मूर्ति या चित्र को गलत दिशा में रखा है, तो क्या करें?
यदि आपने भूलवश किसी देवी या देवता के तस्वीर या मूर्ति को गलत दिशा में स्थापित किया है, तो इस भूल को सुधारने के लिए, अपने घर के ब्रह्म केंद्र यानी सेंटर प्वाइंट में एक कांच के कटोरे में छोटा सा पारद शिवलिंग स्थापित कर दीजिए। वास्तु शास्त्र हो या और कोई अन्य शास्त्र, सब परमेश्वर भगवान शिव को केंद्र का भी केंद्र मानती हैं। इसलिए इस उपाय को करने से, सभी देवताओं या देवियों की ऊर्जा केंद्र में समाहित हो जाएगी। इससे यह फर्क नहीं पड़ेगा कि आपने उन देवी या देवता की मूर्तियों को किन दिशाओं में रखा है।