जब हम लड़का लड़की के भावी वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली मिलान करते है तो आमतौर पर गुण मिलाये जाते है। अधिकतम 36 गुणों में से 18 गुणों के मिलने पर विवाह को स्वीकृति दे दी जाती है। परन्तु, अक्सर देखा गया है की 30-32 गुणों के मिलने के बाद भी अलगाव हो जाता है या तलाक हो जाता है। ऐसा क्यों?
हमारा ऐसा मानना है कि सिर्फ गुण के मिलने की संख्या के आधार पर ही विवाह को मान्यता नहीं देनी चाहिए। वैवाहिक जीवन से सम्बन्ध रखने वाले ग्रहों की स्थिति पर विचार करना अत्यंत आवश्यक है। इस प्रकार, सर्वप्रथम, कुंडली में ग्रहों का आंकलन करना बहुत आवश्यक है। साथ ही, कुंडली के भावो का भी ध्यान रखना चाहिए तत्पश्चात ही गुणों को देखना चाहिए क्यूंकि गुण तो एक मांगलिक और नॉन मांगलिक के भी मिल जाते है परन्तु ग्रहों के आधार पर जीवन भर आनंद मिलता है अथवा कष्ट झेलने पड़ते है। साथ ही साथ आगे आने वाली दशाये भी देखनी चाहिए।
वैवाहिक जीवन के सम्बन्ध में कुंडली में तीन ग्रहों कि अहम भूमिका होती है ब्रहस्पति, शुक्र और मंगल। एक खुशहाल शादी के लिए यह ग्रह अच्छी स्थिति में होने चाहिए। स्पष्ट रूप से, यदि विशेष रूप से प्रत्येक ग्रह के बारे में चर्चा करें बृहस्पती को सुखी पारिवारिक जीवन का कारक माना जाता है। इस कारण से, वर वधु की दोनो की कुंडली में गुरु ग्रह का पाप रहित होना आवश्यक है।
इसके अलावा, वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली में सप्तम भाव को देखा जाता है। विशेष रूप से, सप्तम भाव को पाप प्रभाव से रहित होना चाहिए। इसके अलावा, सप्तम भाव का सम्बन्ध सूर्य, शनि, मंगल, राहू, केतु से नहीं होना चाहिए अन्यथा अलगाव का विषय हो सकता है क्युकी ये प्रथकता कारक ग्रह माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त, सप्तमेश कुंडली के 6, 8,12 भाव में नहीं होना चाहिए। साथ ही सप्तम भाव का स्वामी जिस नक्षत्र में हो उस नक्षत्र का स्वामी भी 6 , 8 ,12 भाव में नहीं होना चाहिए।
सप्तम भाव में षष्ठेस, अष्टमेष या द्वादशेश का स्थित होना, सप्तम भाव पापयुक्त अथवा सप्तम भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव होना और किसी प्रकार की शुभ-दृष्टि न होने पर, वैवाहिक जीवन के दुखी रहने को दर्शाता है।
शुक्र ग्रह जोकि पति पत्नी के अन्तरंग संबंधो का कारक होता है उसका भी बलि होना जरुरी है पति-पत्नी दोनों की ही कुण्डली में शुक्र पूर्ण रुप से पाप प्रभाव से मुक्त हो तब ही विवाह के बाद संबन्धों में सुख की संभावनाएं बनती है। इसके साथ-साथ शुक्र का सामथर्यवान व शुभ होना भी जरूरी होता है।
यदि सप्तम भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो और शुक्र से संबंध बना रहा हो, तो वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है। सप्तम भाव पर शनि, मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की दृष्टि या युति है तो वैवाहिक सुख में कमी रहती है। जब शुक्र बली हों, पाप प्रभाव से मुक्त हों, किसी उच्च ग्रह के साथ किसी शुभ भाव में बैठा हो तो, अथवा शुभ ग्रह से दृ्ष्ट हों तो दाम्पत्य सुख में कमी नहीं होती है।
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