दीपावली रोशनी का त्यौहार है। यह 5 दिनों का उत्सव है जो भारत और पूरे विश्व में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार अमावस्या को मनाया जाता है। लोगों का मानना है कि देवी लक्ष्मी अंधेरे के बीच में भक्तों के घरों में प्रवेश करती हैं और उन्हें समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
दीपावली पर लोगों द्वारा सुनी जाने वाली कई कहानियां है। जो मेरे पिता जी हर दीपवाली को सुनाते थे, आज मैं उसी पुरातन कहानी को लिख रहा हूँ|
प्राचीन काल में एक राजा था जिसकी सात बेटियां थी। प्रायः वह सुबह उठकर बेटियों से पूछता था की तुम सब किसकी किस्मत का खाती हो । इस पर, उसकी पहली छह बेटियां कहती पिताजी हम आपकी किस्मत का खाती हैं । परन्तु सब से छोटी बेटी कहती कि “पिताजी मैं अपनी किस्मत का खाती हूँ”|
राजा प्रतिदिन अपनी बेटियों से यही प्रश्न पूछता। यथा, छोटी बेटी हमेशा यही उत्तर देती कि में अपनी किस्मत का खाती हूँ। एक दिन राजा को यह सुनकर क्रोध आ गया और उसने अपने राज्य के मंत्री से कहा कि वह अपने सिपाहीओं के साथ जाये और राज्य का सबसे गरीब लड़का ढूंढ कर लाएं। तत्पश्चात, राजा की आज्ञानुसार ऐसा ही किया गया। उन्हें एक झोंपड़ी में एक बहुत ही गरीब लड़का दिखाई दिया जिसे भरपेट खाना भी नहीं मिलता था। इस घटना के बाद, सिपाही उसको राजा के दरबार में ले आये।
राजा ने अगले ही दिन, सबसे छोटी बेटी का विवाह उस गरीब लड़के के साथ करके उसे विदा कर दिया। साथ ही राजा ने कहा “ तुम अपनी किस्मत का खाती हो, “ जाओ और इस गरीब लड़के के साथ अपनी किस्मत का खाओ”।
तत्पश्चात, वह राजा की छोटी बेटी अपने पति के साथ झोपड़ी में चली जाती है। कुछ समय बाद, बहुत सोच विचार कर के वह अपने पति से कहती है आप जब भी घर से बाहर जायँ कुछ न कुछ घर में लेकर आएं। इसके बाद, वह जब भी घर से बाहर जाता तो कभी लकड़िआं और कभी गोबर इत्यादि ले कर आता।
साथ ही, राजा की बेटी भी कुछ न कुछ काम कर लेती और इस तरह दोनों थोड़ा बहुत कमा कर गुजारा करने लगे। एक दिन, राजकुमारी ने अपने पति से बात की और कहा कि वह किसी से कुछ पैसे मांग कर कुछ काम व्यवसाय शुरू करे।
इसके बाद, वह लोगो से पैसे मांगने जाता पर उसको कोई उधार नहीं देता। परन्तु, एक बार एक बजुर्ग ने लोगो से कहा कि राजा ने इसको अपने बेटी दे दी, क्या आप लोग इसे कुछ पैसे नहीं दे सकते। इस पर, उस बजुर्ग ने दया कर के उसे कुछ पैसे दिए। उन पैसो से दोनों ने कार्य करना शुरू कर दिया जिससे उनका अच्छा निर्वाह होने लगा।
एक दिन राजा की पत्नी (रानी) अपने नौलखा हार महल के तालाब के किनारे रख कर नहा रही थी| तभी एक चील उसका नौलखा हार लेकर उड़ जाती है| इसके बाद, वह चील उस हार को राजकुमारी (राजा की लड़की) की झोंपड़ी की छत पर कुछ खाने का सामान पड़ा देखकर उस छत पर बैठ जाती ही|
वह खाते समय नौलखा हार उस झोंपड़ी की छत पर फ़ेंक कर उड़ जाती ही। तत्पश्चात, अगली सुबह राजकुमारी को छत पर कुछ चमकती वस्तु नज़र आती है। इस पर, वह अपने पति को उस वस्तु को लाने के लिए कहती है। जब वह हार राजकुमारी के सामने आता है तो, उस हार को देख कर वह पहचान जाती है कि यह हार उसकी माँ का है। वह अपने पति से कहती है कि वह राजा के दरबार में जाये और राजा को यह हार वापास कर आए।
साथ ही वह कहती है कि यदि राजा कुछ मांगने को कहे तो वह राजा से कहे अभी उसे कुछ नहीं चाहिए| परन्तु, जब आवश्यकता होगी तो वह स्वयं मांग लेगा और राजा से किसी कागज़ पर लिखवा लाये|
अगले दिन राजकुमारी का पति दरबार में जाकर राजा को नौलखा हार वापस करता है। इस पर राजा बहुत खुश हो जाता है और कहता है – बेटा मै बहुत खुश हूँ “ जो चाहिए मांग लो”। वह कहता है राजन मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए परन्तु आप मुझे लिख कर दे दें कि, जब आवश्यकता होगी में मांग लूंगा और राजा उस को कागज़ पर लिख कर दे देता है।
कुछ समय पश्च्यात दीपावली आने वाली होती है तो राजकुमारी अपने पति से कहती है आप यह राजा का लिखा हुआ वरदान लेकर दरबार जाओ और राजा से कहो कि अब वरदान मांगने का समय आ गया है। साथ ही, वह अपने पति से राजा को यह कहने के लिए कहती है कि राजा को कहना कि दीपावली की रात को किसी के घर मै रौशनी नहीं होनी चाहिए और शाम होने के बाद किसी के घर चुल्लाह नही जलना चाहिए।वह राज दरबार जाता है और राजकुमारी द्वारा कही बात राजा से कहता है। इस पर, राजा एक बार असमंजस में पड़ जाता है पर वह अपने वरदान से मुकर नहीं सकता था।
तत्पश्चात, सारे शहर में राजा के कहे अनुसार ढिंढोरा पिटवा दिया जाता है कि दीपवाली कि रात को किसी के घर दिया और चुल्लाह न जले। राजा कि आज्ञा का पालन किया गया और पुरे राज्य में किसी के घर रौशनी नहीं हुई।
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कुछ समय बाद, दीपावली पूजन का समय हुआ। राजा कि छोटी बेटी, दीपवाली की रात को झोपड़ी में दीपक जलाती है। इससे उसकी झोपड़ी दीयों से जगमग हो जाती है। साथ ही, लक्ष्मी जी का विधिवत पूजन किया जाता है।
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जब आधी रात हो जाती है तो झोपड़ी का दरवाजा खटखटाया जाता है। राजकुमारी और उसका पति पूछते है -कौन है ? बाहर से आवाज आती है- ” मै लक्ष्मी हूँ “। राजकुमारी कहती है- माँ यदि आप लक्ष्मी है तो आप भीतर आ जाओ।लक्ष्मी के अंदर आते ही घर में ख़ुशी कि लहर दौड़ आती है। घर में जो भी सामान होता है, सोने का हो जाता है और लक्ष्मी जी दंपत्ति को आशीर्वाद देकर प्रस्थान कर जाती है।
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गरीब व्यक्ति और राजा कि बेटी राज्य में ज़मीन लेकर और अत्यंत भव्य घर बना कर रहने लग जाते है। एक दिन राजा की सवारी और उनकी सेना राज्य में उनके घर के पास से जाने वाले होते है। इस पर, राजकुमारी अपने पति से कहती है आप राजा को न्योता देकर आओ कि उनका और उनकी सेना का भोजन उनके घर पर है और वह सभी यहीं भोजन करें।
कुछ समय बाद, राजा सभी सैनिको के साथ उनके घर आता है। राजा और सिपाहियों को आदर-सत्कार के साथ भिन-भिन प्रकार के व्यंजन परोसे जाते है। थोड़ी ही देर में, राजकुमारी घुंगट मुँह पर ओढ़ कर के और हर बार नई पोशाक पहनकर अपने पिता के लिए भोजन लेकर आती है। राजा से कुछ समय बाद राजा ने अपनी उत्सुकुता को शांत करने के लिए उसके पति से पूछा कि यह कौन है। उसी समय राजकुमारी आती है और कहती है ” पिताजी में इनकी पत्नी हूँ “।
वह कहती है कि, देखिये आपने मेरा विवाह एक निर्धन से किया था। परन्तु, मैंने अपने भाग्य से सब कुछ कमा और पा लिया है। इस पर, राजा ने अपनी बेटी को आशीर्वाद दिया और कहा संसार में हर कोई अपनी किस्मत का खाता है। इससे दीपावली और भाग्य के संयोजन के विषय में सीख मिलती है साथ ही, यह पता चलता है कि भाग्य को परिश्रम और बुद्धि से बदला जा सकता है।
अतः जिस प्रकार दीपावली के उपलक्ष पर, लक्ष्मी जी कि कृपा राजकुमारी और उसके निर्धन पति पर हुई उसी प्रकार हर किसी पर लक्ष्मी कि कृपा बनी रहे।
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