वैष्णो देवी उत्तर भारत के सबसे पवित्र और पूज्यनीय स्थलों में से एक है। पहाड़ी पर स्थित होने के कारण अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए भी विश्व विख्यात है। मंदिर 5200 मीटर की उचाई और कटरा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद सबसे बड़ा दर्शनीय स्थल है।
वर्तमान कटरा कसबे से 2 किलोमीटर दूर, हर्षाली गांव में माँ वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। निःसंतान होने से वो दुखी थे। कन्या पूजन के दिन, 9 कन्याओ के साथ माँ वहा आ बैठी। सभी कन्याओ के जाने के बाद भी माँ वही बैठी रही और श्रीधर को आदेश दिया की वो सभी को निमंत्रण दे। निमंत्रण में बाबा गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरोनाथ भी उपस्थित हुए।
माता ने एक विशेष प्रकार के पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया। जब वह भैरोनाथ के पास पहुंची तो, भैरोनाथ ने भोजन में मांस और मदिरा लाने का आदेश किया। माता के मना करने पर भैरो ने माता को पकड़ना चाहा। पर माता वायु रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ने लगी। माता ने वहाँ एक गुफा के अंदर प्रवेश कर 9 वर्षो तक तपस्या की।
हनुमान जी ने इस सम्पूर्ण अवधि में माता की रक्षा की और भैरो से युद्ध भी किया। युद्ध में हनुमान जी जब निढाल होने लगे, तब माता ने महाकाली का रूप धारण किया और भैरो का शिर, उसके धड़ से अलग कर दिया।
बाद में माता रानी, श्रीधर के स्वप्न में आयी और उसे संतान का वरदान दिया। श्रीधर भी माता की खोज में निकल पड़ा। गुफा मिलने पर उन्होंने वहा मंदिर का निर्माण कराया और पूजा अर्चना शुरू की।
दूसरी मान्यता यह है की जगत में धर्म की हानि होने और अधर्म की शक्तियों के बढ़ने पर आदि शक्ति के तीनो रूप – माँ दुर्गा, माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी ने अपने सामूहिक तप से एक कन्या की उत्पत्ति की। यह कन्या रामेश्वर में पंडित रत्नाकर के घर पुत्री रूप में आयी।
कई वर्षो से संतानहीन रत्नाकर ने पुत्री को त्रिकुटा नाम दिया। परन्तु भगवान् विष्णु का अंश होने के कारण यह वैष्णवी नाम से विख्यात हुई। जब त्रिकुटा को ज्ञात हुआ की भगवान् विष्णु ने भी राम के रूप में अवतार लिया है, तब वह भगवान् राम को पति मानकर कठोर तप करने लगी।
जब श्रीराम, रावण का वध कर रामेश्वर पहुंचे तब उन्होंने तट पर ध्यान मग्न कन्या को देखा। कन्या ने जब भगवन श्रीराम को उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करने को कहा, तब श्रीराम ने उत्तर दिया ” मैंने इस जन्म में सीता से विवाह किया है और पत्नी व्रत का प्रण लिया है। अब मै कलियुग में कलि के रूप में जन्म लूँगा और तुमसे विवाह करूंगा। उस समय तक तुम हिमालय के त्रिकूट पर्वत पर जा कर तप करो और भक्तो के कष्टों का निवारण करो।”
श्री राम ने उन्हें यह भी आशीर्वाद दिया था की वो त्रिकुटा के रूप में विश्व कल्याण करेगी और अमर हो जाएँगी।
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जिस स्थान पे माँ ने भैरो का वध किया उसे हम पवित्र गुफा और वैष्णो मंदिर के नाम से पूजते है। इस स्थान पर माँ काली दाहिने, माँ सरस्वती मध्य में और माँ लक्ष्मी पिंड के रूप में गुफा में विराजित है। इन तीनो के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो का रूप और अर्ध कुवारी गुफा कहते है।
वध के समय भैरोनाथ का शिर, त्रिकूट पर्वत से 8 किलोमीटर दूर भैरोघाटी में जा गिरा था। अपने वध के बाद, भैरोनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमा मांगी। माँ जानती थी की भैरो की मनसा मोक्ष प्राप्ति की है। माँ ने न केवल भैरो को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त किया, साथ में उसे यह भी आशीर्वाद दिया की तुम्हारे दर्शन के बिना, मेरा दर्शन अधूरा होगा। इस स्थान को भैरोनाथ मंदिर नाम से भी जाना जाता है।
माँ वैष्णव ने धरती में तीर चलाया और उसमें से एक जल धारा का प्रवाह हुआ। माता ने उस धारा में अपने केश धोये थे। कुछ कथाओ में यह भी वर्णन है की तप के समय जब हनुमान जी, माता की रक्षा कर रहे थे, उस समय हनुमान जी की प्यास को शांत करने के लिए माता ने धरती में बाण चलाया था और जल धारा वहां से प्रवाहित हुई।
वैष्णो देवी मंदिर दर्शन के लिए पूरे वर्ष खुला रहता है। मई-जून और नवरात्र के दिनों में अपेक्षाकृत ज्यादा भीड़ रहती है। मानसून और ठण्ड के दिनों में दर्शन करना शुलभ होता है।
जम्मू का छोटा कसबा कटरा, वैष्णो देवी का पड़ाव स्थल है जो की जम्मू से 50 किलोमीटर की दूरी पर है। कटरा से दर्शन स्थल तक की यात्रा में आपको कई पड़ाव मिलते है – बाणगंगा, चारपादुका, इंद्रप्रस्थ, अर्धकुवांरी, गर्भजून, हिमकोटी, सांझी छत और भैरो मंदिर। कटरा से भवन तक की दूरी 13 किलोमीटर है, जिसे आप पैदल तय कर सकते है या फिर आप हवाई मार्ग से यात्रा कर भी इस दूरी को कुछ कम कर सकते है।
कटरा से भवन तक की यात्रा में आप अलग अलग स्थानों पर विश्राम कर सकते है और आगे यात्रा को प्रग्रशित कर सकते है। ये विश्रामस्थल निःशुल्क और किराये दोनों आधार पर उपलब्ध होते है। तीर्थ यात्रियों को यहाँ और भी सुविधाएं मुहैया करवाई जाती है।
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