हिन्दू परंपरा के अनुसार ललाट को सूना नहीं रखना चाहिए। किसी प्रकार का तिलक या टीका अवश्य लगाना चाहिए। हम लोगों के माथे पर तरह-तरह के तिलक देखते हैं। हम अक्सर लोगों के माथे पर चंदन का तेजस्वी तिलक देखते है जो कि गोपी चंदन से लगाया जाता है। आज हम आपको गोपी चंदन लगाने का महत्व, लाभ एवं पौराणिक कथा के बारे में बताएंगे।
गोपी चन्दन द्वारका के पास स्थित गोपी सरोवर की रज है, जिसे वैष्णवों में परम पवित्र माना जाता है। स्कन्द पुराण में उल्लेख आया है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों की भक्ति से प्रभावित होकर द्वारका में गोपी सरोवर का निर्माण किया था, जिसमें स्नान करने से उनको सुन्दर का सदा सर्वदा के लिये स्नेह प्राप्त हुआ था। इसी भाव से अनुप्रेरित होकर वैष्णवों में इस चन्दन का तिलक मस्तक पर लगाया जाता है।
आज हिन्दुओं के घर से तिलक लगाने की परम्परा लुप्त हो चुकी है, कुछ वैष्णवों को छोड़कर सभी बिना तिलक लगाए ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं। क्या आप जानते हैं कि तिलक लगाने के पीछे क्या तथ्य है, तिलक लगाना केवल एक परम्परा नहीं है इसके पीछे पुरातन काल की एक घटना का ज़िक्र आता है।
कई सालों पहले की बात है एक राजा था बड़ा ही दुराचारी और कठोर प्रवृति का उसके राज्य में सभी दुखी थे, उसके पडोसी राज्य के राजा भी, उसके पड़ोस के राजा ने विचार किया की अगर इस राजा का अंत कर दिया जाये तो सारी समस्या ही समाप्त हो जायेगी। परन्तु वह जानता था कि इस दुराचारी और कठोर प्रवृति के राजा को युद्ध में हराना लगभग असम्भव है।
इसलिए उस राजा को मारने के लिए पडोसी राज्य के राजा ने षड्यंत्र रचा। राजा ने अपने गुप्तचरों से उस राजा की दिनचर्या की जानकारी जुटाने के लिए कहा। गुप्तचरों की जानकारी के आधार पर राजा ने आज्ञा दी की जब वह दुराचारी राजा संध्या को जंगल में वन-विहार को निकले तो उसी समय उसकी ह्त्या कर दी जाये।
राजन के कहे अनुसार सैनिकों ने राजा के घुड़सवारी करते समय उस राजा पर हमला किया और राजा का सर धड़ से अलग कर दिया, इस हमले से राजा का सर दूर जा गिरा। जहाँ राजा का सर जाकर गिरा वहीं एक संत मस्तक पर गोपी चन्दन तिलक लगा रहे थे। संत के तिलक लगाने के दौरान गोपी चन्दन तिलक की कुछ बुँदे धरती पर गिर गयी। जिस जगह संत के द्वारा लगाया जाने वाला तिलक गिरा ठीक उसी जगह उस राजा का सर आकर गिरा, जिससे गोपी चन्दन राजा के सर पर लग गया।
इस राजा को यमराज के पास ले जाया गया। जहाँ राजा के जीवन का हिसाब-किताब देखा गया। राजा ने अपने जीवन में एक भी पुण्य का कार्य नहीं किया था जिसके कारण राजा को “कुंभीपाक” नरक में डाला गया।
कुंभीपाक नर्क सभी नारकों में सबसे खतरनाक नरक है, जहाँ आत्मा को एक बड़ी से कढ़ाई में खौलते हुए तेल में डाला जाता है,खौलते हुए तेल से होने वाली पीड़ा असहनीय होती है जिसे बयाँ नहीं किया जा सकता है। कुम्भीपाक नरक में जैसे ही उस राजा को तेल में डाला गया तो जिस भट्टी पर तेल खौल रहा था उसकी अग्नी एकाएक शांत हो गयी तथा तेल की ऊष्मा समाप्त हो गयी।
यह विचित्र घटना देखकर सभी अचम्भित हुए। इस घटना की जानकारी धर्मराज को दी गयी, धर्मराज भी सोच में पड़ गए आखिर ऐसा क्यों हुआ। उसी समय वहाँ नारदजी का आगमन हुआ। नारदजी को सारा दृष्टांत सुनाया गया, नारदजी ने सारी बात जानकार अपनी दिव्य दृष्टि से सारी घटना को देखा। सारी घटना को जानकार नारदजी ने धर्मराज से कहाँ की अन्त समय में इस राजा को गोपी चन्दन का स्पर्श प्राप्त हुआ। गोपी चन्दन के प्रभाव से ही कुम्भीपाक नरक की भट्टी की अग्नि शांत हुई है ऐसा धर्मराज को बताया।
गोपी चन्दन के इस प्रभाव को जानकार सभी अति-प्रसन्न हुए और श्री हरी की जय-जयकार की ध्वनि यमलोक में गूंजने लगी।
दोस्तों इसीलिए हमारे सनातन धर्म में तिलक को इतना महत्त्व दिया गया है, यही नहीं सनातन धर्म में प्रचलित सभी परम्परों के पीछे कोई न कोई कारण आपको अवश्य मिलेगा। इसी कारण हमारे पूर्वज कभी बिना तिलक नहीं रहते थे इतना ही नहीं कई लोग तो बिना तिलक के रात्रि में सोते भी नहीं थे क्योंकि उनका यही मानना था की क्या पता मौत कब आ जाये और कब इस शरीर को छोड़कर यमलोक प्रस्थान करना पड़े। ऐसे में तिलक लगा हुआ हो तो यमलोक में भी जीव को दुःख नहीं भोगना पड़ता।
तिलक लगाने के वैज्ञानिक तथ्य भी है कई वैज्ञानिकों ने शोध किया है की जो लोग तिलक लगाते है उनमे क्रोध की भावना कम होती हैं तथा तिलक मस्तिष्क को ढंडा बनाये रखता है। तो आप भी तिलक लगाए और तिलक लगाने से होने वाले फायदों को आनंद ले।
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